कीमत / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
एक आदमी को अपने खेत में खुदाई के दौरान संगमरमर की सुन्दर मूर्ति मिली। वह उस मूर्ति को बेचने के लिए एक कलेक्टर के पास ले गया जो सुन्दर वस्तुओं का शौकीन था। कलेक्टर ने मोटी रकम देकर उस मूर्ति को खरीद लिया।
मोटी रकम के साथ लौटते हुए वह आदमी अपने आप से कह रहा था कि जीवन में पैसों का कितना महत्त्व है। पत्थर से काटकर बनाई गई बेजान मूर्ति के लिए, जो वर्षों से धरती में बेकार दबी हुई थी, कोई कैसे इतने रुपए दे सकता है।
दूसरी ओर कलेक्टर मूर्ति को देखते हुए सोच रहा था-कितनी सुन्दर मूर्ति है! जैसे अभी बोल पड़ेगी। वर्षों की मीठी नींद के बाद भी कितनी ताजा लग रही है। इतनी कीमती वस्तु को सिर्फ़ रुपयों के बदले कोई कैसे दे सकता है? रुपया तो हाथ की मैल के सिवा कुछ भी नहीं है।