कुँवर नटुआ दयाल, खण्ड-20 / रंजन
अंगप्रदेश की इस लोकगाथा में कई क्षेपक हैं, जिन्हें पीढ़ियों ने समय-समय पर मूल गाथा में पिरोया है।
मूल कथा तभी समाप्त हो जाती है, जब वीरा या बहुरा के भ्रम का निवारण होता है। किसी पाठ में वीरा को निर्बल-असहाय कर दिया है तो किसी में नटुआ दयाल के द्वारा उसका वध करा दिया है।
कथा के एकमात्र खलनायक जयसिंह के भी कई क्षेपक हैं; जैसे-शंखाग्राम से नटुआ दयाल की वापसी-यात्र में, पड़ोसी राजाओं से सांठ-गांठ कर उसे प्रताड़ित करने की कथा और अंत में वीरा के संग ही उसकी मृत्यु का प्रकरण।
अंगप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित इस लोकगाथा में कथा-स्तर पर विभिन्नता के बाद भी कथा-सार एक ही है, जिसके आधार पर ही मैंने यह कहानी कही है।
बहुरा गोढ़िन का अंचल 'बखरी-सलोना' आज भी हमारे अंगप्रदेश में इसी नाम से अवस्थित है और बहुरा की कथा सुनाते उसके स्थलों के अवशेष आज भी सुरक्षित हैं।