कुंडली / अशोक भाटिया
‘आज फैसले का दिन है। लेकिन समझ नहीं आता, कैसे क्या किया जाए !’ करमचंद सोचता जा रहा है।
दरअसल उसकी बेटी के लिए एक रिश्ता आया है। सब चीज़ें ठीक लग रही हैं। उम्र, कद-काठी, देखने में भी अच्छा है। पढ़ाई और सैलरी के बारे उनके पड़ोसी चावला जी से भी सारी रिपोर्ट ठीक-ठाक मिली है।
चाय पीते हुए दोनों सोच रहे हैं – कैसे क्या करें? पहला रिश्ता है, वो भी बेटी का।
रीना ने कहा – शुकर हाउ, सब कुछ ओ.के.हो गया है। मेरा विचार है कि अब देर न करें। बस एक बार आप पं. रामप्रसाद से मिल आओ। गुण तो मिला लिए थे, अब बारीकी से जांच लें। तभी अगला कदम उठायें।’
करमचंद ने कहा – लडके वालों ने कुंडली मिलाकर ओ.के.कर दिया –बहुत है। तुम जानती हो, अपना इन चीज़ों में विश्वास नहीं है।’
-देखो, पहला रिश्ता है। उम्र-भर का साथ होता है। मन में कोई वहम नहीं रहना चाहिए।’ रीना ने बिस्कुट की प्लेट आगे बढाते हुए कहा था। यही बात बेटी भी दोनों से कह चुकी थी।
करमचंद सोच में पड़ गया था। सरदार कौन-सी कुंडली मिलते हैं? वो क्या तरक्की नहीं कर रहे? सब गुण और कुंडलियाँ धरी रह जाती हैं। वह रीना से बोला – तुम्हें मालूम है न! हमारे पिचाली वाले सब गुण वगैरा मिलाकर ही बहू लाये थे। फिर भी तलाक हो गया। बताओ, क्या मतलब है कुंडली मिलाने का?’
रीना ने भी फौरन कहा था –‘उन्होंने ऐरे-गैरे को कुंडली दिखाई होगी। रामप्रसाद तो जाना-माना ज्योत्षी है। ’वह चाय का आखरी घूँट पीकर बोली थी –‘बस आप अभी चले जाओ। आधे घंटे का ही रस्ता है ...
आज फैसले का दिन है। करमचंद सोचता जा रहा है....उसके लिए यह सबसे मुश्किल काम है। आज तक वह समाज में इसे पाखंड कहकर इसकी खिलाफत करता रहा है.....कोई जान-पहचान का मिल गया तो क्या कहेगा?....क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हें!...रिश्ता तो अच्छा है, लेकिन वह कुंडली...
वह ज्योतिषी के यहाँ पहुंचा तो भीड़ न पाकर हैरान भी हुआ और खुश भी। नमस्ते करके उसने अनमने भाव से दोनों बच्चों की कुंडली के कागज़ उनके सामने रख दिए और हाथ बांधकर बैठ गया।
पं. रामप्रसाद ने कागज़ उलटे-पलते, फिर उँगलियों पर गिनती करने लगे। तभी भीतर से उनकी बेटी पानी लेकर आई। उसे सफेद कपड़ों में देख करमचंद को ताज्जुब हुआ।
-पंडत जी यह क्या? बिटिया की तो पिछले साल ही शादी हुई थी!’
रामप्रसाद पीड़ा से दहल गए-आप देख ही रहे हैं। विधि का विधान कौन टाल सकता है?’
करमचंद सोच में पड़ गया। क्या कहे, क्या करे? वह सिर खुजलाने लगा। फिर उठकर बोला- पंडितजी, बच्चों की कुंडली लौटा दीजिए।’
कागज़ लेकर वह तीर की तरह उनके घर से बाहर निकल आया।