कुंभ पर्व और पुनर्जन्म की अवधारणा / जयप्रकाश चौकसे

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कुंभ पर्व और पुनर्जन्म की अवधारणा
प्रकाशन तिथि :03 जनवरी 2019


मान्यता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की बूंदें इलाहाबाद की धरती पर गिरीं इसलिए वहां कुंभ का आयोजन होता है। कुछ और नगरों में भी कुंभ पर्व मनाया जाता है। उज्जैन में कुछ समय पूर्व सिंहस्थ मेले के लिए सरकार द्वारा दिए गए धन में घपले की बात भी उठी थी परंतु बल्लेबाजी हमारा राष्ट्रीय शगल है। अब यह कोई मुद्‌दा ही नहीं रह गया है। इलाहाबाद को प्रयागराज ही कहे जाने का आदेश जारी हो चुका है। कुंभ मेले में लाखों लोग आते हैं। विदेशों से भी अनेक लोग इस उत्सव को देखने आते हैं।

कुंभ मेले पर एक कथा फिल्म बनाने का विचार बिमल रॉय कर रहे थे परंतु उनकी मृत्यु के बाद कुंभ नामक पटकथा उनके वंशज खोज नहीं पाए। इसकी कुछ जानकारी गुलजार को है। यह संभव है कि वह मात्र कथा विचार था और पटकथा नहीं लिखी गई थी। साहित्य में कुंभ प्रेरित कहानियां और उपन्यास लिखे गए हैं। भैरप्पा के उपन्यास 'दायरे अपनी-अपनी आस्थाओं के' में पुनर्जन्म के साथ ही कुंभ का प्रसंग भी है।

एक दंपति ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया। यज्ञ कराने वाले एक महाराज के त्रिशूल में सोने के सिक्के भरे थे। यह बात यजमान को महाराज ने बताई थी। कई दिन तक चले इस यज्ञ में पति ने अवसर पाकर सोने के सिक्के निकालकर त्रिशूल में कंकर पत्थर भर दिए। जब महाराज कुंभ के अवसर पर इलाहाबाद पहुंचे तब उन्होंने कंकर-पत्थर देखे। वो तो वहां गरीबों को भोज देना चाहते थे। उन्होंने श्राप दिया कि इस हेरा-फेरी को करने वाले व्यक्ति को पुत्र रत्न प्राप्त होगा परंतु युवा होने पर यह व्यक्ति अपनी सारी संपत्ति लेकर कुंभ आएगा और साधनहीन लोगों को भोजन कराएगा।

दरअसल, हम आशीर्वाद और श्राप हटा दें तो हमारे आख्यानों का आधार ही नहीं रहेगा। बहरहाल, भैरप्पा के इस रोचक उपन्यास में पुनर्जन्म की अवधारणा पर अत्यंत रोचक कथा कही गई है। कुंभ का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास का केंद्रीय पात्र 36 वर्ष की महिला है, जिसका पति 18 वर्ष पूर्व रहस्यमय परिस्थितियों में मारा गया है। उस समय महिला गर्भवती थी। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि 18 वर्ष के युवा की शक्ल सूरत उसके दिवंगत पति से मिलती है। इतना ही नहीं वह युवा ग्राम पंचायत में उपस्थित हर व्यक्ति को पहचान लेता है। गांव का पूरा विवरण देता है। सब स्वीकार करते हैं कि यह पुनर्जन्म है। अत: पंचायत का फैसला है कि युवा इस घर में उसी स्त्री के पति की तरह रह सकता है।

वृद्ध दंपति प्रसन्न हैं कि उनका एकमात्र पुत्र पुनर्जन्म द्वारा उनके पास लौट आया है परंतु स्त्री को संकोच है कि वह युवा को पति के रूप में कैसे स्वीकार करे। युवा व्यक्ति स्त्री से कहता है कि उसकी पीठ के मध्य भाग पर एक बड़ा मस्सा है। वह उसे शरीर की अंतरंग बातें बताता है। इसके बाद स्त्री को पुनर्जन्म द्वारा पति के लौटने का विश्वास हो जाता है। वे सामान्य पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं। कुछ समय पश्चात उसी स्त्री का पुत्र विश्वविद्यालय से छुट्‌टियों में घर लौटता है। विज्ञान का छात्र पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करता। उसको लगता है कि उसकी मां अपने से 18 वर्ष छोटे युवा के साथ दांपत्य जीवन बिता रही है। उसे यह अनैतिक लगता है। उस स्त्री की दुविधा यह है कि उसके नए पति और पुत्र दोनों की आयु 18 वर्ष है। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि उस ग्राम में राधा-कृष्ण के मंदिर से राधा की सोने से बनी मूर्ति चोर ले गए थे और वर्तमान में नई मूर्ति बनकर आई है और उसकी स्थापना होने जा रही है। 18 वर्ष पूर्व स्त्री का पति चोरों के पीछे भागा था और चोरों ने उसकी हत्या कर दी थी। वर्तमान स्थापना समारोह में भी चोर आते हैं और युवा उन्हें पकड़वा देता है तथा पहले चोरी की गई जो मूर्ति एक कुएं में फेंक दी गई थी, वह भी प्राप्त होती है। यह सारे कार्य वह युवा करता है, जिसका पुनर्जन्म हुआ है। विज्ञान का छात्र भी इस घटनाक्रम पर विश्वास करने लगता है।

आश्चर्य की बात यह है कि पश्चिम में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता परंतु सबसे अधिक पुस्तकें और फिल्में इस पुनर्जन्म अवधारणा पर पश्चिम में ही बनी हैं। 'हिंदुइज्म' नीरद चौधरी की किताब में लेखक कहता है कि हमारे यहां लोगों को जीवन के भोग विलास में इतना आनंद आता है कि हम इस पृथ्वी पर बार-बार आना चाहते हैं। इसलिए हमारे यहां पुनर्जन्म अवधारणा बनी है। सारे पात्र कुंभ स्नान के लिए जाते हैं। कुंभ में पंडितों के पास वहां आने वाले की पूरी जानकारी वंशावली में दर्ज रहती है।