कुआँ खोदने वाला / सुकेश साहनी
झोपड़ी हैरान थी, उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था-महल खुद चलकर उसके दरवाजे पर आया था, उसके आगे मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा था,‘‘मेरा कुआँ सूख गया है, सभी जल भण्डार खत्म हो गए हैं....चलकर मेरे कुएँ की खुदाई कर दो ,ताकि जरूरत भर का पानी उसमें आ जाए....तभी मेरे प्राणों की रक्षा हो सकेगी।...मैं तुम्हारा यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलँगा।’’
झोपड़ी का दिल पसीज गया, वैसे भी उसे तो रोज कुआँ खोदकर पानी पीने की आदत थी।
उसने महल के कुएँ को गहरा करने के लिए दिन रात एक कर दिया, अंततः उसकी मेहनत रंग लाई,कुएँ में जल स्रोत फूट पड़ा।
यह देखकर महल की आँखों में चमक आ गई। इस बार उसने कुएँ पर शक्तिशाली पम्प लगवा दिया। देखते ही देखते वहाँ फव्वारे चलने लगे, बावड़ियाँ पानी से लबालब भर गईं। महल झोपड़ी को भूलकर ‘स्वीमिंग पूल’ में पानी से अठखेलियाँ करने लगा।
मतलब पूरा होते ही महल के आँख फेर लेने से झोपड़ी के दिल पर ठेस लगी थी। वह उदास मन से लौट आई।
प्यास लगने पर झोपड़ी ने अपने कुएँ में देखा तो देखती रह गई-कुआँ सूख गया था। महल के कुएँ पर लगे पम्प ने उसके पानी को खींच लिया था। झोपड़ी मन मसोसकर रह गई।
वह बहुत थकी हुई थी, पर उसने हिम्मत नहीं हारी, तत्काल अपने कुएँ की खुदाई में जुट गई। लेकिन इस बार जल स्तर (चुआन) इतना नीचे चला गया था कि कई दिनों की कड़ी मेहनत के बावजूद वह उस तक नहीं पहुँच सकी।
निर्जलीकरण की वजह से झोपड़ी मूर्छित होकर गिर पड़ी।
नहीं, झोपड़ी को कुछ नहीं हुआ था। ऐन वक्त पर महल ने उसे बचा लिया था। झोपड़ी को आज भी महल के यहाँ पानी के एवज में मजदूरी करते देखा जा सकता है।