कुछ नई परिभाषाएँ / राजकिशोर
साहित्यकार: पुराने जमाने का लेखक, जो अब भी किसी-किसी शहर में पाया जाता है; ऐसा लेखक, जिसका सम्मान उसकी उम्र के कारण किया जाता है; वह लेखक, जिसकी पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हों; सम्मान, पुरस्कार आदि देने के लिए सबसे सुरक्षित नाम।
लेखक: जो कभी-कभी लिखता है; जो साहित्यिक गोष्ठियों में आता-जाता है; जिसका नाम समय-समय पर जारी होने वाले वक्तव्यों में अनिवार्य रूप से शामिल रहता है; जो किसी लेखक संघ का सदस्य है।
आलोचक: जो कविता, कहानी, उपन्यास आदि नहीं लिख सकता, फिर भी लेखक कहलाना चाहता है; जो किसी भी पुस्तक में दोष निकाल सकता है; जिसकी भाषा लेखकों की भी समझ में न आए; जिससे लेखक मन ही मन घृणा करता है, पर जिसे प्रसन्न रखने की पूरी कोशिश करता है; जो समकालीन रचनाएँ नहीं पढ़ता; विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग का प्रोफेसर।
गुट: लेखकों का गिरोह; एक-दूसरे की तारीफ करने के लिए स्थापित किया गया वह समूह, जिसकी अध्यक्षता कोई बुजुर्ग लेखक करता है; जिसके एक सदस्य पर हमला होते ही पूरा समूह टूट पड़ता हो, साहित्य में संप्रदायवाद।
पत्रिका: अपनी भड़ास निकालने के लिए प्रकाशित की गई पंजिका; जिसकी रचनाएँ कहीं और न छपती हों, ऐसे लेखक द्वारा निकाला गया नियमित पत्र; एक नशा, जो जल्दी नहीं छूटता; घर फूँक तमाशा देखने की साहित्यिक शैली।
अनियतकालीन: वह पत्रिका, जिसके प्रकाशन में एक प्रकार की नियमितता हो; ऐसी पत्रिका जो पर्याप्त विज्ञापन जुट जाने पर ही निकाली जाती है।
पारिश्रमिक: जिसे देने का वादा किया जाए; वह न्यूनतम राशि, जिससे लेखक की स्टेशनरी का खर्च निकल आए; कोलकाता के एक सांस्कृतिक संस्थान द्वारा दिए गए अनुदान का लघुतम अंश; वह राशि, जिसके कारण सरकारी पत्रिकाओं में रचनाओं की कमी नहीं होती।
प्रकाशक: वह व्यक्ति, जो पुस्तकें छापने और बेचने का ऐसा धन्धा करता है जिसके लिए सिर्फ साक्षर होना काफी है; लेखन से ज्यादा लाभप्रद कार्य; लेखकों का ‘मेरा दोस्त मेरा दुश्मन’, वह व्यापारी जिसे बड़े लेखक अपने घर बुलाते हैं और जो छोटे लेखकों को अपने दफ्तर में बुलाता है; गरीब लेखक और गरीब पाठक के बीच की वह कड़ी, जो लगातार संपन्न होता जाता है।
पुस्तक: दोनों तरफ जिल्द से बँधे हुए काले-सफेद पन्ने, जिनकी संख्या तय करती है कि कौन कितना बड़ा लेखक है; जिसे छपवाने के लिए प्रकाशक को पैसे देना अनिवार्य न हो; जिसका पहला और आखिरी पाठक उसका प्रूफरीडर हो।
पाठक: विलुप्त हो रहे जीवों में अग्रणी; जो किताबें खरीद कर पढ़ना नहीं चाहता; जिसकी तलाश में लेखक मारे-मारे फिरते हैं; जो कभी-कभी पुस्तक मेले में प्रकट होता है; जिसके नाम पर, जिसके लिए नहीं, साहित्य लिखा जाता है।
पाठिका: जो हर लेखक का सपना है, पर किसी-किसी को ही नसीब होती है; जिसका एक पत्र पचास पाठकों के पत्रों पर भारी पड़ता है; जो अक्सर कस्बों में पाई जाती है; और महानगरों से जुड़ना चाहती है; वह युवती, जो लेखक बनना चाहती है, जिसके नाम पर कई खिलंदड़े पाठक लेखकों की नींद हराम कर देते हैं।
फ्लैप: एक से दो पृष्ठ की वह सामग्री, जिसमें लेखक को अपनी प्रशंसा खुद करने की अपरिमित छूट होती है; पुस्तक के बारे में प्रकाशक द्वारा लिखवाई गई वह सामग्री, जिसका अर्थ उस पुस्तक का लेखक भी नहीं समझता, जिसे पढ़ कर गागर में सागर है या सागर में गागर, यह तय करना मुश्किल हो जाए।
विशेषांक: वह भारी-भरकम अंक, जिसके संपादन का कष्ट संपादक स्वयं नहीं उठाना चाहता।
वार्षिक शुल्क: उन लोगों से वसूल की जाने वाली वह रकम, जिन्हें पत्रिका मुफ्त भेजना संपादक को अपने हित में नहीं लगता।
पहला संस्करण: अकसर अंतिम संस्करण।
पुस्तक समीक्षा: जिसे लिखने के लिए किसी प्रकार की विशेषज्ञता जरूरी न हो; ऐसी समीक्षा जो पुस्तक पढ़े बिना की जा सकती हो; फ्लैप की सामग्री का सरल भाषा में अनुवाद।
लेखिका: लेखक बनने की इच्छा रखने वाली स्त्री; संपादकों के इर्द-गिर्द पाई जाने वाली स्त्री, आलोचकों द्वारा बनाया गया मिथक, जो कभी-कभी यथार्थ में बदल जाता है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी: वह संगोष्ठी, जिसमें दिल्ली, भोपाल और लखनऊ के लेखक भाग लेते हैं।
प्रगतिशील: जो जनवादी नहीं है।
जनवादी: जो प्रगतिशील नहीं है।
जन संस्कृतिवादी: जो न प्रगतिशील है और न जनवादी।
कलावादी: एक साहित्यिक गाली; गैर-मार्क्सवादी लेखक; अंतर्वस्तु से अधिक शिल्प पर ध्यान देने वाला कवि। स्त्री सौन्दर्य पर रीझने वाला और अपने को ऐसा बताने वाला (भी) कवि।
दलित साहित्य: आत्मकथा का एक विशेष प्रकार; वह साहित्य जो दलितों द्वारा गैर-दलितों के लिए लिखा जाता है।
नारीवाद: पुरुषों का ध्यान आकर्षित करने के लिए स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला विशेष प्रकार का लेखन; जाति प्रथा का नया संस्करण, जिसमें सिर्फ दो जातियों - पुरुष और स्त्री - का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है; वह पुरुष विरोधी कार्रवाई, जो परिवार के बाहर की जाती है।
रॉयल्टी: प्रकाशक द्वारा प्रसिद्ध लेखकों को दी जाने वाली वार्षिक राशि; वह राशि जो अपेक्षा से हमेशा कम होती है; वह राशि, जिसकी नए लेखकों को कामना भी नहीं करनी चाहिए; वह शब्द, जो अधिकतर प्रकाशकों की डिक्शनरी में नहीं पाया जाता।
लोकार्पण: दिल्ली के लेखकों की आत्मरति का एक नमूना; विज्ञापन का खर्च किए बगैर पुस्तक का विज्ञापन करने की प्रकाशकीय विधि; पीने-पिलाने के जुगाड़ की भूमिका।
पुरस्कार: जो दिया नहीं, लिया जाता है; जो एक बार मिलता है तो मिलता ही जाता है; वृद्ध लेखकों को मिलने वाली एकमुश्त पेंशन; जिन्हें नहीं मिलती, वे घोषणा करते रहते हैं कि मैं पुरस्कार नहीं लेता; जिसके बारे में सबको पता होता है कि इस बार वह किसे मिलने जा रहा है।
महत्तर सदस्यता: दिल्ली के वयोवृद्ध लेखकों को साहित्य अकादेमी द्वारा दिया जाने वाला अन्तिम सम्मान; वह सम्मान जिसे पाने के बाद लिखना जरूरी नहीं रह जाता; जिसे पाए बिना अनेक लेखक गुजर जाते हैं।