कुछ रोचक अदालती फैसले / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :07 अप्रैल 2018
अरसे पहले 'हिन्दू' नामक दक्षिण भारत से प्रकाशित अखबार में एक पुरानी फिल्म का कथासार प्रकाशित हुआ था। राजनर्तकी के भव्य महल से थोड़ी दूर एक धोबी का घर था। राजनर्तकी की सेविकाएं उससे कपड़े धुलवाती थीं। प्राय: वह उनसे पूछता था कि राजनर्तकी के साथ वक्त गुजारने के लिए कितनी स्वर्ण मुद्राओं की आवश्यकता होती है। वह उन्हें अपनी बचत का ब्योरा भी देता था। सेविकाएं सारी बातें राजनर्तकी को बतातीं और उनके बीच यह परिहास का विषय बन गया था। कुछ माह बाद धोबी ने बचत करना छोड़ दिया और कारण पूछे जाने पर उसने बताया कि अब राजनर्तकी उसके सपनों में आने लगी है। बचत की कोई आवश्यकता नहीं है। राजनर्तकी ने राजा से शिकायत की कि सपनों में आने के एवज में उसे धोबी से धन दिलाया जाए। पहले तो राजा ने इसे परिहास समझा परंतु बार-बार राजनर्तकी की जिद के कारण धोबी को दरबार में बुलाया गया। राजा द्वारा पहले कभी दिए गए वचन के आधार पर रानी ने उस दिन न्याय देने का अधिकार प्राप्त किया। रानी अपने पति के दिल में राजनर्तकी के प्रति आसक्ति को जानती थी परंतु कोई सौतिहा डाह उसे छू भी नहीं गया था।
राजनर्तकी ने धोबी से पांच सौ स्वर्ण मुद्राओं की मांग की। अपराध था स्वप्न में बिना आज्ञा अभिसार का। रानी ने दरबार में एक बड़ा आईना और पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं बुलवाईं और आईने के सामने स्वर्ण मुद्राएं रख दीं। राजनर्तकी को आदेश दिया कि आईने में स्वर्ण मुद्राओं की छवियों को वह बतौर अपने 'पारिश्रमिक' के उठा सकती है, क्योंकि स्वप्न में अभिसार का मुआवजा आईने में दिखने वाली छवि ही हो सकती है। रानी के इस न्याय से राजनर्तकी स्तब्ध रह गई और धोबी ने राहत की सांस ली। न्याय इस तरह भी किया जा सकता है। दंड विधान में सजा से सुधार का आदर्श इस तरह जुड़ा है, जिससे प्रेरित फिल्म थी शांताराम की 'दो आंखें बारह हाथ'।
एक कथा इस तरह है कि एक सक्षम व योग्य सिपाही ने तैश में आकर एक दुकानदार को गलत तौल की शंका के आधार पर थप्पड़ मार दिया। मामला दरबार में पहुंचा। रानी ने दुकानदार से कहा कि थप्पड़ के बदले थप्पड़ मार सकते हो परंतु प्रहार समान होना चाहिए। थोड़ा भी जोर से या थोड़ा हल्का थप्पड़ मारने पर वह दंड का भागी होगा। इस मसले पर दूसरे ढंग से शेक्सपीयर की पोर्शिया ने सूदखोर महाजन से कहा कि वक्त पर कर्ज अदाएगी नहीं करने के अपराध में करारनाने के अनुसार वह शरीर से एक पौंड मांस निकाल सकता है परंतु रक्त की एक बूंद भी नहीं निकलनी चाहिए, क्योंकि करारनामे में केवल मांस निकालने की बात लिखी गई है।
एक अन्य प्रसंग में एक योद्धा से अनायास एक भूल हो गई तो रानी उसे दंड से बचाना चाहती थी। अत: उसने फैसला दिया की स्त्री को सबसे अधिक क्या पसंद है- इस प्रश्न का उत्तर खोजकर लाने के लिए योद्धा को एक वर्ष का समय दिया। शर्त है कि उत्तर वही होना चाहिए, जो रानी एक सीलबंद लिफाफे में दर्ज कर रही हैं, क्योंकि इस प्रश्न के अनेक उत्तर हो सकते हैं। इस तरह रानी ने उस योद्धा को राज्य की सीमा से भागकर कहीं और बसने का अवसर दिया परंतु योद्धा समय सीमा में लौटा और उसका दिया उत्तर रानी द्वारा सीलबंद लिफाफे में रखे उत्तर से अक्षरश: मिलता भी था। योद्धा दरबार की सजा से बच जाने के बावजूद रोने लगा। कारण पूछने पर उसने बताया कि एक निहायत ही बदसूरत और बूढ़ी स्त्री ने उसे सही उत्तर इस शर्त पर बताया था कि उसे उससे विवाह करना पड़ेगा।
योद्धा उस बदशक्ल बुढ़िया से विवाह करने से बचने के लिए मृत्युदंड भी स्वीकार करना चाहता था परंतु उसे शर्त के अनुसार विवाह करना पड़ा। बदशक्ल बुढ़िया स्वयं दरबार में गिरते-पड़ते पहुंच गई थी। सुहागरात की प्रक्रिया में बुढ़िया खूबसूरत अप्सरा के स्वरूप में प्रगट हुई। दरअसल, वह स्वर्ग से किसी भूल के कारण निष्कासित कर दी गई थी। स्वर्ग में भी लोगों से भूल हो जाती है, क्योंकि स्वर्ग धरती की ही अनुकृति हो सकती है। बकौल शैलेन्द्र 'आदमी है आदमी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर'।
फ्रांस में क्रांति के बाद राज परिवार और उससे जुड़े हुए लोगों को सरेआम दंडित किया गया। एक फरसे से गर्दन काट दी जाती थी। इस दंड विधान और न्याय प्रक्रिया में हजारों लोग मारे गए। दशकों बाद गहन जांच पड़ताल से ज्ञात हुआ कि उनमें से अधिकांश निर्दोष थे। मसलन एक परिवार को मार दिया गया क्योंकि उनके घर में क्वीन मैरी एंटोनेट का स्कार्फ पाया गया। दरअसल, रानी की एक यात्रा में उसका स्कार्फ उड़ गया था और जिसे मिला उसने अपने घर में रख लिया था। हर क्रांति के चक्र में गुनहगार के साथ निर्दोष भी दंडित हो जाते हैं जैसे आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।
लिओन यूरिस की किताब 'क्वीन्स कोर्ट सेवन' में एक डॉक्टर ने पचास हजार पौंड की मानहानि का मुकदमा उस पत्रकार के खिलाफ दायर किया है, जिसने अपने लेख में लिखा था कि यह वही डॉक्टर है जिसने नाजी जेल में पुरुषों के अंडकोष और स्त्रियों के गर्भाशय निकाल दिए थे। जज महोदय जान गए थे कि डॉक्टर दोषी है परंतु उसके खिलाफ यथेष्ठ सबूत नहीं थे। अत: उन्होंने फैसला दिया कि पत्रकार डॉक्टर महोदय को मानहानि स्वरूप एक पेन्स दे। पचास हजार पौंड की मानहानि के दावे में मात्र एक पेन्स देने का फैसला संभवत: नाजी डॉक्टर के गाल पर थप्पड़ की तरह पड़ा।
भांति-भांति की अदालतों में नाना प्रकार के फैसले हुए हैं। कुछ लोग झूठी गवाही देने को एक व्यापार की तरह करते हैं। सलीम-जावेद की लिखी फिल्म 'ईमान धरम' में नायक की रोजी-रोटी ही झूठी गवाही देना है।