कुत्ते वाला घर / सुकेश साहनी

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आलीशान कोठी के गेट को खोलने के लिए उसने हाथ बढ़ाया ही था कि उसे इस इलाके के अपने से पहले वाले हॉकर द्वारा दी गई हिदायत याद आ गई। वह सतर्क हो गया। उसने पंजों के बल उचककर कोठी के कम्पाउण्ड में नजर दौड़ाई... उसे कहीं कोई कुत्ता दिखाई नहीं दिया। उसने जानबूझकर गेट खड़खड़ाया, सोचा अगर कुत्ता कहीं होगा, तो खड़खड़ाहट सुनकर भौंकेगा ही, लेकिन उसे वहाँ कुत्ते की उपस्थिति का कोई चिहृ नजर नहीं आया। वह कुछ आश्वस्त हुआ। फिर भी एहतियातन उसने बहुत दबे कदमों से बरामदे तक का रास्ता पार किया और फिर हिम्मत करके कॉलबेल का बटन दबा दिया।

दरवाजा खुला-कोठी के मालिक सामने खड़े थे। उसने अखबार का बिल उनकी ओर बढ़ा दिया।

"क्या अखबार बेचने का काम सब चोर-उचक्कों ने सम्हाल लिया है?" एकाएक उन्होंने बिल को घूरते हुए उससे कहा।

"जी!" उसकी समझ में कुछ नहीं आया।

"ज... जी मत करो..." उन्होंने आँखें निकालकर कहा-"पच्चीस दिन भी अखबार नहीं पढ़ा और बिल दो महीने का! यहाँ हराम के पैसे समझे हैं क्या?"

"नहीं साहब, आपको गलतफहमी हो रहीे है। मुझे आपके यहाँ अखबार डालते हुए पूरे दो महीने हो गए... आप मेरी डायरी देख लीजिए.।।"

"मैं तुम लोगों की नस-नस से वाकिफ हूँ... ये नौटंकी कहीं और दिखाना, समझे? अपने पच्चीस दिन के पैसे पकड़ो और दफा हो जाओ... आगे से यहाँ अखबार डालने की जरूरत नहीं है।" कहते हुए उन्होंने कुछ नोट उसके मुँह पर फेंक दिए।

"साहब, जबान सम्हालकर बात कीजिए... अपनी मेहनत के पैसे माँग रहा हूँ-केाई खैरात नहीं।" उसे गुस्सा आ गया।

"अबे तेरी ये मजाल!" उन्होंने हाथापाई की तैयारी में अपने कुरते की आस्तीनें ऊपर चढ़ा लीं और चिल्लाए-"अरे ओ रामू...शंकर, पकड़ लो साले...मादर...को। यही हरामी बरामदे पंखा चुराकर ले गया है..."

वह डर गया। गुस्से के बावजूद उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह तेजी से कोठी के बाहर आ गया। गुस्से से उसकी मुट्ठियाँ भींची हुई थीं। सामने की दूसरी कोठी के गेट पर 'कुत्ते से सावधान' की तख्ती लगी हुई थी। उसकी इच्छा हुई कि वहाँ से तख्ती को उखाड़कर इस कुत्ते की कोठी पर लगा दे। -0-