कुत्ते से सावधान / हरिशंकर राढ़ी

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कुत्तों पर बहुत लिखा गया है। दरअसल, जितना कुत्तों ने ख़ुद पर लिखवा लिया है, उतना इंसान नहीं लिखवा पाए हैं, दूसरे जानवरों की क्या बात करें? क्यों न लिखवाएँ? गाँव-गाँव, शहर-शहर, गली-गली और घर-घर में कुत्तों की उपस्थिति है। वे चाहे आवारा हों या पालतू, सर्वव्यापक-से हैं। अब तो कुछ ही घर बचे हैं, जहाँ कुत्ते नहीं हैं और जब इतनी महत्त्वपूर्ण व्यापकता में हैं, तो उनमें कुछ लिखवा लेने की खासियत होगी ही। वैसे भी लोकतंत्र में संख्याबल ही सबसे प्रबल होता है।

कुत्तों ने ख़ुद पर लगभग सभी विधाओं में लिखवाया है। कविता, कहानी, गीत-ग़ज़ल, नाटक, समीक्षा, व्यंग्य, रिपोर्ट, संपादकीय में से कुछ भी अछूता नहीं है। जो अपनी हरकतों से इतना लिखवा ले, उसमें कुछ न कुछ तो ग्राह्य होगा। कभी-कभी तो लगता है कि कुत्ते पर लिखे बिना सफल लेखक बना ही नहीं जा सकता। वैसे भी, कुत्तों ने आदमी से और आदमी ने कुत्तों से जितनी आत्मीयता व पारस्परिक सम्बंध स्थापित किया, उतना किसी अन्य ने नहीं। आज हालत ये है कि एक सफल कुत्ता आदमी के बिना और एक सफल आदमी कुत्ते के बिना रह नहीं सकता। दोनों एक दूसरे के पूरक हो गए हैं।

पशु तो शेर और हाथी भी हैं, लेकिन उन पर इतना क्यों नहीं लिखा गया? यह सवाल मेरे मन को बींधता रहा। पालतू जानवर की बात करें तो गाय-भैंस, ऊँट, भेड़-बकरी, गधे-घोड़े भी हैं। उन पर तो इतना नहीं लिखा गया। गाय की बात आती है तो वह आठवीं कक्षा तक निबंध लिखने से आगे नहीं बढ़ पाती। उससे आगे केवल गोरक्षा वाले चैतन्य मिलते हैं। भैंस मजाकिया मुहावरे तक ठहरी हुई है। गधा केवल छात्रों एवं कर्मठों की तुलना के काम आता है। हाथी को बुद्धिमान मानकर छोड़ दिया गया। शेर-बाघ आदमियों की बस्ती में आने के बजाय जंगल में रहना पसंद करते हैं। इन्हें ख़ुद पर लिखवाने की गरज ही नहीं दिखती। फिर कुत्ते पर ही इतना लेखन क्यों? यह सवाल लेकर मैं बुद्धिराम जी के पास गया।

बुद्धिराम जी ने छूटते ही कहा- देखो, सफल एवं चर्चित जीवन के लिए दो गुण आवश्यक हैं। शक्तिशाली एवं रोटी-बोटी का टुकड़ा फेंकने वाले के सामने दुम हिलाना और कमजोर - अपरिचित के सामने भौंकना। मालिक के इशारा पर किसी को भी काट लेना। मौके-बेमौके मालिक को चाट लेना। अब तुम ही बताओ कि ये दोनों गुण कुत्ते के अलावा किस प्राणी में हैं? मन में आया कि कह दूँ कि ये गुण तमाम मनुष्यों में भी हैं, लेकिन मैं कुत्ते का अपमान नहीं करना चाहता था। उसे अद्वितीय ही रहने देना चाहता था, इसलिए चुप रहा। बाक़ी जानवर ख़ुद ही शक्तिशाली हैं, इसलिए उन्हें लिखवाने-सिखवाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अपने ऊपर लिखवाने में बहुत कुत्तापन करना पड़ता है, जो मौलिक कुत्ते के ही वश का है।

कुत्ते की पहुँच अंदर से ऊपर तक है। बड़े लोगों में है। जितना अंदर, जितना ऊपर, उतना ही ख़तरनाक। बंगलों से लेकर महलों तक है। बंगले पर लिखा है- ‘अंदर कुत्ते हैं’। यदि आप उन्हें गंभीरता से नहीं लेते तो आपके कल्याणार्थ वैधानिक चेतावनी है- ‘कुत्तों से सावधान’। यानी कुत्ते के स्वामी भी मानते हैं कि कुत्तों से सावधान रहने की ज़रूरत है। पता नहीं कुत्तों को यह बात मालूम है या नहीं। वैसे कुत्ते तो चाहते हैं कि उनसे कोई सावधान न रहे, जिससे उन्हें काटने में सुभीता हो। सावधान को काटने में मशक्कत करनी पड़ती है। मालिक के अंगरेजी में मना करने के बावजूद वे काटने को उतावले रहते हैं।

कभी विद्यार्थी को समझाया गया था कि वह कुत्ते से नींद की शिक्षा ले। विद्यार्थी ज़्यादा समझदार निकला। वह नींद से आगे निकलकर कुत्ते से बहुत कुछ सीख रहा है। लगभग सारे गुण आत्मसात कर लिए हैं उसने। देखा जाए तो कुत्ता महान होता है। न हिंदू होता है और न मुसलमान होता है। लड़ाई करेगा, भौंकाई करेगा, तो प्रजाति या ओहदे का भेद नहीं करेगा। डीएनए का पालन करेगा। रोटी भी खा लेता है और बोटी भी। समभाव से कूड़े की राख में भी बैठ लेता है और मेम की गोद में भी। प्रेम प्रसंग में भी कोई वर्गभेद नहीं। कहीं से कुछ भी मिल जाए, स्वीकार्य है।

सो लिखा तो कुत्ते पर ही जाएगा। आप हाथी बनकर झूमते रहें, गाय-भैंस बनकर दुहवाते रहें, मोर बनकर जंगल में नाचते रहें, गधे बनकर ढोते रहें। यही तो किया है। लिहाज़ ा, न तो कोई आपसे सावधान होगा और न आप पर लिखेगा। समझदार तो कदापि नहीं। लिखवाना है तो पहले कुत्तेपन का प्रशिक्षण लीजिए।