कुरुक्षेत्र और पानीपत भूमि का दर्द / जयप्रकाश चौकसे

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कुरुक्षेत्र और पानीपत भूमि का दर्द
प्रकाशन तिथि :05 अप्रैल 2018


आशुतोष गोवारीकर आमिर खान अभिनीत 'लगान' और ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत 'जोधा-अकबर' के लिए जाने जाते हैं। 'मोहनजोदड़ो' नामक फिल्म से उनकी ख्याति खंडित हुई। अगर उन्होंने रांगेय राघव की किताब से प्रेरित मोहनजोदड़ों बनाई होती तो वे इस तरह आहत नहीं हुए होते। शीघ्र ही वे 'पानीपत' नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं। पानीपत का तीसरा युद्ध अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ था, जिसमें अपनों द्वारा किए गए विश्वासघात के कारण वीर मराठों की पराजय हुई थी। भारत के इतिहास में 'जयचंद' हमेशा हुए हैं, भले ही उनके नाम अलग-अलग रहे हैं। आशुतोष गोवारीकर ने आमिर खान और रितिक रोशन जैसे सितारों के साथ फिल्में बनाई हैं परंतु 'पानीपत' संजय दत्त और अर्जुन कपूर के साथ बनाने जा रहे हैं। युद्ध केंद्रित फिल्म का बजट भव्य होता हैं पंरतु संजय दत्त और अर्जुन कपूर इतने लोकप्रिय कलाकार नहीं है कि उनके आधार पर भव्य बजट फिल्म आर्थिक रूप से 'सुरक्षित' मानी जा सके। अत: इसका समीकरण ठीक नहीं बैठ रहा है परंतु फिल्म में एक सितारा और है और वह है फिल्म माध्यम की विकसित टेक्नोलॉजी। 'बाहुबली' टेक्नोलॉजी के कारण संभव हो पाई। आज पचास लोगों की भीड़ को विशेष लेन्स की सहायता से शूट करने पर उसे पचास हजार की भीड़ दिखाया जा सकता है। एक पुराने तमाशे में ऊंचे बांस पर खड़ा व्यक्ति लंबा होने का प्रभाव पैदा करता था। आज नए-पुराने सारे तमाशे अपनाए जा रहे हैं और बौने लार्जर देन लाइफ छवि बना रहे हैं।

आशुतोष गोवारीकर अपना होमवर्क बड़ी मेहनत से करते हैं और अत्यंत व्यवस्थित फिल्मकार हैं। इस समय जेपी दत्ता 'पलटन' नामक फिल्म बना रहे हैं और गोवारीकर 'पानीपत' बना रहे हैं। दोनों ही फिल्मों के अनेक शॉट्स हैं, जिसका इस्तेमाल ताजी फिल्म में किया जा सकता है। आशुतोष गोवारीकर के पास भी 'जोधा अकबर' के युद्ध दृश्य का कुछ फुटेज तो होगा। लॉन्ग शॉट्स या एरियल शॉट्स में इसका उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, फिल्म यकीन दिलाने की कला है। राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' के अधिकांश दृश्य झेलम नदी के किनारे फिल्माए गए हैं परंतु गंगा के उद्‌गम और गंगा सागर में विलीन होने के शॉट्स उन्हीं स्थानों पर शूट किए गए हैं। दीपा मेहता अपनी फिल्म 'वॉटर' हुड़दंगियों के कारण गंगा तट पर शूट नहीं कर पाईं। उन्होंने श्रीलंका में नदी तट के दृश्य शूट किए परंतु फिल्म में वे गंगा तट पर शूट हुए लगते हैं।

किसी दौर में कहावत थी, 'कैमेरा कान्ट टेल ए लाई' यानी कैमरा झूठ नहीं बोलता परंतु आज तो ट्रिक्स द्वारा कैमरे से मनचाहे झूठ बुलवाए जा सकते हैं। आज कैमरे द्वारा रेगिस्तान में गुलाब की लहलहाती फसल भी दिखाई जा सकती है। कुरुक्षेत्र में लड़ा अठारह दिवसीय युद्ध पानीपत में लड़ गए तीनों युद्धों से कहीं अधिक विराट था। ये सारी युद्ध फिल्में सिनेमा के परदे को लहूलुहान कर देंगी। अगर प्रेम कहानियों में द्वंद्व के दृश्य होते हैं तो युद्ध फिल्मों में प्रेम दृश्य होते हैं। बिच्छू प्रेम करने के पूर्व नृत्य करते से लगते हैं। प्राय: आलिंगन में नर बिच्छू की दम घुटने से मृत्यु हो जाती है। प्रेम और युद्ध में गहरा संबंध है।

वर्तमान हरियाणा प्रांत का ही एक भाग कुरुक्षेत्र है। यह दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर है परंतु एक ही कुल के दो धड़ों के बीच हुए युद्ध के समय इसे कुरुक्षेत्र कहा गया है। सर्वप्रथम कुरुक्षेत्र का जिक्र अथर्ववेद में आया है। इसका पहला विवरण चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रा विवरण में मिलता है। यह भी गौरतलब है कि हरियाणा में ही पानीपत भी है तथा कुरुक्षेत्र और पानीपत के बीच चंद किलोमीटर का ही फासला है। प्राय: इतिहासकार और गल्प लेखक भी युद्ध करने वाले वीरों का गुणगान करते हैं परंतु कोई उस जमीन के दर्द को प्रस्तुत नहीं करता, जो इन क्षेत्रों की जमीन ने सहन किया है।

महान कवि रामधारी सिंह दिनकर ने 1946 में 'कुरुक्षेत्र' नामक काव्य का सृजन किया था। दिनकरजी की कविता में भीष्म और युधिष्ठिर के बीच हुआ संवाद प्रस्तुत किया गया है। इसमें भी धरती की व्यथा-कथा नहीं है। कवि दिनकर यह स्वीकार करते हैं कि युद्ध से विनाश होता है परंतु स्वतंत्रता की रक्षा के लिए युद्ध किया जाना चाहिए।

वेदव्यास ने श्रीगणेश से युद्ध का कारण जानना चाहा तो श्रीगणेश ने कहा कि जब मनुष्य तर्क नहीं वरन् भावना से शासित होते हुए अपना संतुलन खो देता है तब युद्ध होता है। दूसरे विश्वयुद्ध के महानायक विन्सटन चर्चिल ने महायुद्ध के बाद यही कहा था कि सभी युद्ध अकारण लड़े जाते हैं अर्थात तर्क को निरस्त करने के कारण युद्ध होते हैं। दरअसल, सारे युद्ध बाजार की शक्तियां कराती हैं। युद्ध के समय बहुत सामग्री की आवश्यकता होती है। महाभारत में तो श्रीकृष्ण के शांति प्रयास भी विफल हुए, क्योंकि व्यापारियों ने युद्ध सामग्री का निर्माण कर लिया था और आयात भी किया था। बहरहाल, दिनकरजी की पंक्तियां हैं, 'समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।'