कुरुक्षेत्र / डॉ. रंजना जायसवाल
कमरे में स्याह अँधेरा था, बाहर बरामदे में जलती बत्ती से रौशनी छन्न कर आ रही थी। पड़ोस में किसी के गेट के खुलने की आवाज से आकांक्षा की नींद खुल गई, उसकी नींद वैसे भी बहुत कच्ची थी पर कितने दिनों से उसे ठीक से नींद नहीं आई थी।
"कौन है?"
दीवार पर पड़ती परछाई लम्बी और लम्बी होती जा रही थी, आकांक्षा पसीने से तर-बतर थी, उसका दम घुट रहा था। शरीर पर पड़ी चादर को उसने चादर तक खींच लिया, घबराकर उसने बगल में पड़े लैंप का स्विच दबा दिया। कमरा रौशनी से नहा गया, परछाईं रौशनी के साथ ही कही गुम हो गई।
"म्याऊं-म्याऊँ"
आकांक्षा की सांस में सांस आ गई, उसने पास पड़े दुपट्टे को देखा... उस दिन का घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने से गुजर गया। कॉलेज से लौटते वक्त उन मनचलों ने उसका फिर से रास्ता रोक लिया था। ये पहली बार तो नहीं था, कभी सीटी मारना, कभी अश्लील जुमले तो कभी वह गन्दी वाली चिट्ठियाँ...
"' इनका तो काम ही यही है, तू चिंता मत कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। आखिरी साल है तेरा...तेरी दादी को पता चल गया न तो घर बैठा देगी।"
यही तो कहा था उस दिन माँ ने... आज तक सहती ही तो आई थी वह काश पहले ही दिन कसकर डांट दिया होता या शिकायत कर दी होती तो उनकी इतनी हिम्मत न पड़ती पर उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई आज तो उन लड़कों ने उसका दुप्पट्टा तक खींच लिया। कितना रोई थी वह एक लिजलिजा-सा स्पर्श उस अपने शरीर पर महसूर होता था, वो नापाक हाथ उसे अपनी ओर बढ़ते हुए महसूस होते, वो चौंक कर जाग जाती।
"नहीं! बस अब और नहीं ...उनकी हिम्मत आज इतनी बढ़ गई, उन्हें आज न रोका तो वह कल उसके साथ कुछ भी कर सकते हैं।"
उसके अंतर्मन ने झकझोर दिया था उसे और वह चल पड़ी थी पुलिस स्टेशन उन मनचलों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने, वो दिन था और आज का दिन कोई पापा को फोन से धमकी देता तो कोई कागज की पर्ची घर पर फेंक कर धमकाने का प्रयास करता, "शिकायत वापस ले लो वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा।" जिंदगी भर निडरता का पाठ पढ़ाने वाली माँ भी आज डर गई थी। "तू मेरी बेटी नहीं बेटा है..." हर समय कहने वाले पापा सिर पर हाथ धरे हैरान-परेशान से बैठे रहते।
आज शाम की ही तो बात है मन बहुत बेचैन था, कहीं सचमुच उसने गलती तो नहीं कर दी। दादी हमेशा कहती थी जब सारे रास्ते बंद हो जाये तब गीता पढ़ लिया करो जीवन का सार है ये...आकांक्षा हाथ में किताब लिए पढ़ने का प्रयास कर ही रही थी कि दादी ने कमरे में प्रवेश किया।
"हम भी अपने जमाने में जवान और खूबसूरत थे क्या हमसे कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, तुम्हारी तरह हम भी चल देते पुलिस के पास तो हो जाता। अरे लड़की का जन्म लिया थोड़ा बर्दाश्त करने सीखो, अभी तो जीवन की शुरुआत है आगे चलकर न जाने क्या-क्या सहना पड़ेगा। गीता लेकर बैठी हो, जरा सोचो अगर द्रौपदी ने जिद न की होती, उसने कर्ण का उपहास न उड़ाया होता, दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा न कहा होता तो वह इतनी लाशों की गुनाहगार न होती। खून से लथपथ रक्त रंजित कुरुक्षेत्र को देखकर क्या उसे तनिक भी पश्चाताप ना हुआ। उसकी एक जिद ने न जाने कितनी मांगो के सिंदूर उजाड़ दिए, माँओं से उनके लाल को छिन लिया क्या मिला ऐसी जीत से ...लाशों के ढेर पर खड़े होकर द्रौपदी ने कौन-सी जीत का जश्न मना लिया।"
आकांक्षा चुपचाप आँख बंद किये बैठी रही, जीवन का कुरुक्षेत्र उसे निर्विकार भाव से देख रहा था और वह सोचती रही द्रौपदी कल भी अकेली थी द्रौपदी आज भी अकेली ही है।