कुलटा / अभिज्ञात
उन्होंने प्रेम विवाह किया था इसलिए दोनों को ही अपना-अपना घर छोड़ना पड़ा। दोनों निम्न मध्य वर्ग के थे। परम्परागत परिवार से। अलग-अलग जाति के। स्वाभाविक ही था कि उन्हें विवाह करने की ऐसी सज़ा मिले। सो मिली। दोनों को कोई अफसोस नहीं। उल्टे लग रहा था कि उन्होंने कुछ ख़ास कार्य किया है। दूसरों से हटकर। जैसा फ़िल्मों में होता है। कुछ क्रांति व्रांति जैसी चीज़। वे एक जातिविहीन समाज की स्थापना में योगदान दे रहे हैं। यह सबके बस की बात नहीं। समाज उनके योगदान को अरसे तक याद रखेगा। उन्हें सराहनाएं भी मिलीं। लानत मलामत तो खैर मिली ही। कुछ खुले दिल के लोगों ने उन्हें शाबाशी भी दी। कुछ ने चुपके से संकेत दिया ठीक किया है तुमने पर हम खुलकर तुम्हारी तारीफ़ नहीं कर सकते। हम ठहरे मामूली लोग। इतना भी साहस नहीं कि ठीक को ठीक कह सकें।
स्वयं उन दोनों के मन में कहीं न कहीं यक़ीन था कि परिवार वालों की शुरुआती प्रतिक्रिया है विरोध की। निषेध की। कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जायेगा। वे उन्हें अपना लेंगे। कितने ही उदाहरण हैं इसके। उन्होंने अपनी अलग नयी गृहस्थी बसा ली। उन्होंने जब प्रेम की पींगें बढ़ायी थी तो खूब सारे सपने देखे थे। अब मौका मिला था उन्हें पूरा करने का। दो कमरों का एक फ्लैट उन्होंने भाड़े पर लिया। अब यही दोनों का पूरा संसार था। यह संसार एक सप्ताह पूरी तरह ख़्वाबों का रहा। नये सामान ख़रीदे गये। सजावट में एक दूसरे की राय ली गयी। बाक़ी बातों में भी। फिर सब सामान्य ढंग से चलने लगा। पति काम पर जाने लगा और पत्नी घर में टीवी देखकर अपना वक््त काटने लगी। पति का साधारण सा क्लर्की का काम था। वह घर से सीधे काम पर निकलता और काम से सीधे घर आता। अपना घर छोड़ने के साथ दोनों के सारे रिश्ते भी पीछे छूट गये थे। दोस्त परिचित भी कभी एकाएक सामने पड़ जाते तो कतराये से लगते। उनकी दुनिया काफी छोटी हो चली थी। पहले उनके पास एक ख़ूबसूरत ख़्वाब था। वह भी छिन गया था हक़ीकत में बदलने के बाद। जिस ख़्वाब को बुनने में उन्हें आनन्द आता था हक़ीकत में तब्दील होने पर वह उतना ही नीरस लगने लगा। वे हक़ीकत से ऊबने लगे थे। पत्नी को टीवी के धारावाहिकों से बाहर की दुनिया बेरंग और निःस्वाद लगने लगी। पति की जो आय थी उससे उनकी मामूली ज़रूरते ही पूरी हो सकती थीं। वह भी मुश्किल से। उसे अब पता चला केवल अपने प्यार को पाना ही सब कुछ नहीं। और भी चाहिए बहुत कुछ आदमी को। उसने नौकरी खोजन की कोशिश की और ताकि वक््त कटे और कुछ आय भी हो जाये जिससे वह अपनी कुछ ख़्वाहिशों को पूरा कर सके। एक मामूली नौकरी उसे मिल गयी किन्तु उसने उसकी दुनिया बदल दी। यह बदलाव मामूली नहीं था। उसे एक ऐसा सहकर्मी मिला जिससे उसका मन मेल खाने लगा। उसे अफसोस होने लगा कि हड़बड़ी में उसने गलत व्यक्ति का चयन कर लिया है। नये दोस्त के पास कार थी। आलीशान फ्लैट था। रुतबे वाली कुर्सी थी। वह कभी कभार उसके घर आने लगा। पति ने जब ऐतराज़ नहीं किया तो वह कभी-कभार अक्सर में बदल गया। उसकी बातों में खनक लौट आयी और चेहर पर हंसी। अपनी बातें साझा करने में उसे मज़ा आने लगा। बातों बातों में उसे सहसा एहसास हुआ कि हल्की से बेपर्दगी बातों में और लज्ज़त घोल देती है। उनकी चर्चाओं में बस झीना सा पर्दा रह गया था। वे हर तरह की बात शेयर करने लगे जैसे बचपने के दोस्त हों। उनकी बातों से लिंगीय भेद मिट गया था। अरसे से वह जैसे एक बंद किले में थी। अनजाने में ही प्यार के लिए उसने दीवार तोड़ी कम थी और खड़ी ज्यादा कर ली थी वह नये दोस्त को पाकर सहसा भहरा गयी। बातों में रस के झरने बहने लगे। दोस्त के पास पैसों की कमी न थी सो पत्नी के घर दोस्त के तोहफ़े पहुंचने लगे जिससे उसके उदास और फीके घर में भी रौनक आने लगी। तोहफ़ों से इनकार का साहस उसमें नहीं था। पति भी तोहफ़ों से प्रसन्न रहता। कार्यालय के लोगों के साथ पिकनिक मनाने के बहाने वह दोस्त के साथ दीघा भी हो आयी। समुद्र तट पर आनन्द लिया। हवा का। पानी का। खुशनुमा हल्की फुल्की बातों का। वहां दोस्तों के अन्य दोस्त भी गये थे। उनसे भी वह खुलकर मिली। एक बेतकल्लुफ ज़िन्दगी उसे मिली जिसके बारे में उसने सोचा तक न था। वह मन ही मन पति के प्रति गहरे लगाव से भर उठी। यह उसकी उदारता और उसके प्रति यक़ीन है जिसके कारण वह ऐसे माहौल में रह पा रही है जहां वह खुली हवा में सांस ले पा रही है। साधारण दाम्पत्य जीवन और प्रेम से मिले दाम्पत्य में यही फ़र्क है उसने मन ही मन महसूस किया। उसका पति अब भी उसकी खुशी चाहता है इसका पुख़्ता प्रमाण यह सब था। वरना शक्की पति मिलता तो वह इस दुनिया की ओर आंख उठाकर देख तक नहीं सकती थी।
अब वह अक्सर आफ़िस के काम से बाहर दौरे पर जाने लगी और घर में रौनकें बढ़ती गयीं। उसका प्रमोशन भी होता रहा। ओवरटाइम भी मिलने लगे और बाहर के भी काम जिन्हें कर वह अधिक धन अर्जित करने लगी थी। वह व्यस्त रहने लगी थी और अत्यधिक व्यस्त बने रहना चाहती थी। यह सब अधिक दिन नहीं चला। एकाएक उसकी ज़िन्दगी ने करवट बदली। उसे उल्टियां होने लगीं। पति पत्नी दोनों ने मां-बाप बनने की एकदूजे के बधाइयां दीं। पत्नी ने निर्णय लिया कि अब वह नौकरी छोड़ देगी। अपने बच्चे को बेहतर माहौल में जन्म देगी और उसके जन्म लेने के बाद अपना पूरा वक्त उसे और पति को। अब वह आफ़िस में भी बच्चे व पति की चर्चाओं में मशगूल हो जाती। दोस्तों को उसकी बातों से ऊब पैदा होने लगी। धीरे-धीरे सबका आना बन्द हो गया। अपने जीवन के नये अध्याय के प्रति वह इतनी लालायित हो उठी की एक दिन पति को बिना बताये ही उसने नौकरी छोड़ दी। घर लौटी तो पता चला कि पैर के नीचे ज़मीन नहीं है। पति ने प्रत्यक्ष तौर पर नौकरी छोड़ने पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी बल्कि उस बच्चे पर ऊंगली उठायी थी जिसे वह दो ढाई माह में जन्म देने वाली थी। पति ने साफ़ शब्दों में कहा कि वह जिस बच्चे को लेकर इतना उत्साहित है वह पता नहीं किसका है? वह नाज़ायज बच्चे व उसकी मां के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकता। अब तो यही बेहतर होगा कि वह अपने होने वाले बच्चे के पिता के घर का रास्ता पकड़े। रात भर वह बिना खाये पिये रोती-सुबकती रही। और पति उसका सारा सामान बांधता रहा। तड़के उसने टैक्स मंगायी और उस पर जबरन बिठाकर कहा-अब चलती बनो। मेरे घर से और मेरी ज़िन्दगी से भी। मैं दुबारा तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहता।
उसी दिन वह फ्लैट पति ने खाली कर दिया। फ्लैट में पड़ सामान सहित वह कहीं और चला गया। वह उस मोहल्ले में फिर नज़र नहीं आया। सुनते हैं कि वह अपने परिवार वालों के बीच लौट गया। कुछ माह बाद उसने अपनी ही जाति की लड़की से दुबारा शादी कर ली और खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहा है।अलबत्ता पत्नी दो-तीन बार ज़रूर एकदम तड़के सूर्य की किरण फूटने से पहले अपने फ्लैट के पास आयी थी जहां उसने ताड़ा जड़ा देखा किन्तु किसी से कुछ पूछने का साहस वह नहीं जुटा पायी कि उसका पति कहां गया ......क्योंकि उसे यक़ीन था उसके कुलटा होने की बात ज़रूर लोगों तक पहुंचायी गयी होगी।