कुशाल पंजाबी ने आत्महत्या क्यों की? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कुशाल पंजाबी ने आत्महत्या क्यों की?
प्रकाशन तिथि : 30 दिसम्बर 2019


टेलीविजन उद्योग से जुड़े कुशाल पंजाबी ने आत्महत्या कर ली। उसे कुछ समय से काम नहीं मिल रहा था। बेरोजगारी से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। इसके पूर्व भी टेलीविजन से जुड़े लोग आत्महत्या कर चुके हैं। कभी-कभी काम के तनाव के कारण भी आत्महत्या की गई है। नैराश्य भी मारक सिद्ध होता है। प्राय: एल.एस. जैसे ड्रग्स लेने वाले भी आत्महत्या कर लेते हैं। सृजन क्षेत्र में सफल व्यक्ति भी आत्महत्या कर लेते हैं, जैसे फिल्मकार गुरु दत्त। माइकल जैक्सन अपनी लोकप्रियता से घबराए हुए रहते थे। अभावों से जूझते हुए माइकल जैक्सन का बचपन बीता और अपार लोकप्रियता अर्जित करने के बाद वे अपने बचपन की मासूमियत को खोजते रहे।

टेलीविजन से जुड़े कलाकार और तकनीशियन अंधेरी के ओशिवारा क्षेत्र में रहते हैं। इन लोगों के काम का समय तय नहीं होता। कार्यक्रम को बनाने वाले तकनीशियन और कलाकार तय समय पर एपिसोड देने के लिए सोलह घंटे तक अनवरत काम करते रहते हैं। इनकी जीवनशैली में घड़ी का कांटा हंटर की तरह उनके अवचेतन को पीटता रहता है। इनके फ्लैट में किचन केवल चाय-कॉफी बनाने के काम आता है। भोजन रेस्त्रां से बुलवाते हैं या फ्रोजन फूड खाते हैं। उनके रेफ्रिजरेटर में खाने के सामान और शीतय पेय भरे होते हैं। फ्रिज से फ्राइंग पैन में पका-अधपका इनके उदर में प्रवेश करता है।

टेलीविजन कार्यक्रम बनाने वालों को अच्छी खासी आय होती है। कुल कलाकार पचास हजार रुपए प्रति एपिसोड लेते हैं। एक दौर में राम कपूूर एक लाख रुपए प्रति एपिसोड मेहनताना लेते थे। इस मेहनताने के साथ एक जीवनशैली आती है- फास्ट फूड, फास्टर कार एंड फास्टेस्ट गर्लफ्रेंड्स। यह जीवनशैली मिक्सी की तरह मनुष्य का जूस निकालती है। प्राय: इन लोगों को नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता है। हास्य एंकर कपिल शर्मा भी नैराश्य का दौर झेल चुके हैं। इस खेल में अपना संतुुलन बनाए रखना कठिन होता है। लोकप्रियता और उससे जुड़े लाभ का प्रवाह अत्यंत तीव्र होता है। इसमें भटकने से अधिक खतरा बहकने का है। चौबीस घंटे सातों दिन सक्रिय बने रहने वाले टेलीविजन चैनल अजगर की तरह भूखे होते हैं। वे सामने आई हर चीज को निगल जाते हैं। सामान्यत: आधे घंटे के एपिसोड में तेईस मिनट की कथा और सात मिनट के विज्ञापन होते हैं। तीस-तीस सेकंड के दो ब्रेक भी होते हैं। इस माध्यम से जुड़े लेखकों को मशीन की तरह काम करना पड़ता है। लिखी हुई सामग्री कम पड़ने पर हर ब्रेक के बाद पहले दिखाया गया दृश्य दोबारा दिखाते हैं। हर कलाकार बात दोहराता रहता है। सीआईडी सीरियल में आधा दर्जन अफसर एक ही संवाद को दोहराते हैं। विज्ञापन को भी अधिक समय दिया जा रहा है, क्योंकि विज्ञापन से प्राप्त धन से ही कार्यक्रम बन रहा है। विगत दिनों कार्यक्रम के कलाकार किसी उत्पाद की प्रशंसा करते हैं और उसके इस्तेमाल की सिफारिश भी करते हैं, इसे कथा का हिस्सा बना दिया गया है।

फिल्मों में भी कलाकार किसी ब्रांड का विज्ञापन इस तरह करते हैं मानो वे अपने जीवन में भी इसका प्रयोग करते हों। इस तरह के विज्ञापन फिल्मों में भी आते हैं। सड़क या सार्वजनिक स्थान का सैट लगाया है तो बिल बोर्ड्स लगाने के पैसे लिए जाते हैं। सुभाष घई की फिल्म 'ताल' में नायक-नायिका शीतय पेय का सेवन एक ही बोतल से करते हैं। यह उनके इश्क का प्रारंभ है। इनके व्यवसाय प्रबंधन ने शीतय पेय के अधिकारी को रील दिखाई और इस फिल्म विज्ञापन के लिए पैसे मांगे। उस अधिकारी को लगा कि शूटिंग तो हो चुकी है, अत: फिल्मकार शीतल पेय बदलने के लिए पुन: शूटिंग नहीं करेगा। उस अधिकारी का मुगालता दूर हुआ जब सुभाष घई के प्रबंधक ने उन्हें उसी समय दूसरे ब्रांड की बोतल वाला शॉट भी दिखा दिया। इस तरह एक फिल्मकार ने एक कॉर्पोरेट कंपनी की हेकड़ी को अंगूठा दिखाया। बहरहाल कुशाल पंजाबी की आत्महत्या गहरे दु:ख की बात है। जीवनशैली में परिवर्तन करते हुए सामंजस्य बनाए रखना आसान काम नहीं होता। किफायत और सादगी को अपाने से आप दिमागी संतुलन भी बनाए रख सकते हैं। लोकप्रियता का रोलर कोस्टर व्यक्ति को कहीं भी फेंक देता है। किफायत महज धन बचाना नहीं, वरन् स्वयं को भी बचाना है।

बादल सरकार के नाटक 'बाकी इतिहास' में दो पात्र अपने पड़ोसी द्वारा की गई आत्महत्या के कारणों का अपना आकल्पन प्रस्तुत करते हैं। नाटक के तीसरे अंक में वह पात्र मंच पर आता है जिसने आत्महत्या कर ली है। वह उन लोगों से पूछता है कि वे आत्महत्या क्यों नहीं करते? अन्याय व असमानता आधारित व्यवस्था में उन्हें अपना अधिकार नहीं मिल रहा है। वे अपने जीवित बने रहने का एक भी कारण नहीं बता सकते। हम सभी अकारण अपने बोझ को ढो रहे हैं और इसे जीवन मानने की हिमाकत भी कर रहे हैं। किसी कलाकार की आत्महत्या से अधिक विचलित यह बात कर रही है कि हमारे किसान और छात्र भी आत्महत्या कर रहे हैं।