कुश्ती / राजनारायण बोहरे
पांच दिन बाद!
सब लोग चलने को तैयार थे बस राम के हुकुम का इंतज़ार था।
दो दिन में राम और जामवंत को बहुत कुछ करना पड़ा।
राम ने सुग्रीव को समझाया कि बाली से इतना डरो मत! वह कोई पत्थर की मूर्ति नहीं है, एक साधारण-सा आदमी है, यदि पूरी हिम्मत के साथ उससे कुश्ती की जावे तो उसे हराना कोई कठिन काम नहीं है और राम का ख़ुद जाकर बिना बात उससे लड़ बैठना ठीक नहीं है। क्योंकि बाहर का आदमी लड़ाई करेगा तो तुम्हारे समाज के लोग भी गुस्सा हो जायेंगे। उनका गुस्सा होना ठीक नहीं, क्योंकि कल को तुम राजा बनोंगे तो उन्ही से तो काम लेना है तुम्हे।
उधर जामवंत ने अपने जासूसों से पंपापुर में यह अफवाह फैला दी कि ऋष्यमूकपर्वत के मुनियों ने ताकतवर असर वाली जड़ी-बूटीयों को खिलाने के साथ मल्लयुद्ध के दांवपेंच सिखा कर सुग्रीव की देह वज्र-सी कठोर बना दी है, यानीकि आजकल सुग्रीव बहुत बलशाली हो गये हैं। वे किसी भी दिन पंपापुर आकर बाली को कुश्ती के लिए ललकारने वालेे हैं। बाली के राजदरबार के अनेक बानर वीरों को भी यह समझाया गया कि मनमाने तरीके से राज काज चलाने के बाली के दिन ख़त्म होने वाले हैं, अब भलाई इसी में है कि बाली-सुग्रीव की लड़ाई में सुग्रीव का साथ दिया जाय।
कुल मिला कर पंपापुर का माहौल ऐसा हो गया था कि बाली सुग्रीव की लड़ाई को लोग इस तरह देखने लगे थे, यह दो भाइयों की आपसी लड़ाई है न कि किष्किन्धा के राजा की किसी दूसरे देश के नागरिक से।
हनुमान, द्विविद, नील, नल और जामवंत ने अपने सैकड़ों वनवासी साथियों के साथ पंपापुर के बाहर उस बागीचे तक पहुँच कर उसको चारों ओर से घेर लिया जहाँ कि बाली को उकसा कर सुग्रीव कुश्ती के लिए लाने वाले थे।
इसके बाद सुग्रीव को तैयार कर राम और लक्ष्मण भी ऋष्यमूकपर्वत से चलपड़े। फिर राम-लक्ष्मण को बागीचे के बाहर छोड़कर सुग्रीव पंपापुर में धंसते चले गये और ठीक राजमहल केसामने जापहुँचे। बाहर खड़े सेनिकों ने उन्हे देखा तो वे पहले चौंके फिर पिछले दिनों नगर में चल रही अफवाहेंउन्हे याद आई ंकि इन दिनों सुग्रीव का बदन वज्र की तरह हो गया है और वे किसी भी दिन आकर बाली को कुश्ती के लिए ललकारने वाले है। अब भलाई इसी में है कि बाली की बजाय सुग्रीव का-सा थ दिया जाय। सैनिक डर से चिल्लातेहुए भीतर की ओर भागे तो सुग्रीव ने ख़ुशी और अहंकार में भर कर एक किलकारी मारी। महल के सन्नाटे में सुग्रीव का स्वर कोने-कोने तक गूंज उठा। भीतर बाली आराम फरमा रहे थे, उन्होंनेसुना तो अपने एक सेवक से सारा माजरा पूछा। भय से थर-थर कांपते सैनिक ने जो कुद सुना था वह और जो कुछ देखा था पूरा का पूरा कहसुनाया। बाली ठहाका लगा कर हंस पड़ें।
सहसा सुग्रीव की ललकार फिर सुनाई पड़ी तो बाली की हंसी ठहर गई। उन्होंनेबैठे-बैठे ही एक हुंकार लगाई और अपनी गदा संभाल कर बाहर की ओर चलने को उठ खड़े हुए। अचानक ही महारानी तारा उनके सामने आ खड़ी हुई थीं। बाली ने गुससा होते हुए उन्हे अपने सामने से हटने को कहा तो वे बोलीं, "महाराज, आप सुग्रीव को अकेला जान कर उससे कुश्ती के लिए जा रहे हैं, लेकिन आपको शायद पता नहीं हैं कि इस समय सुग्रीव की दोस्ती अयोध्या के राजकुमार राम और लक्ष्मण से हो चुकी है। वे दोनों भाई सुग्रीव के साथ हैं और आपको अनुमान नहीं है िकवे दोनों कितने ताकतवर इंसान हैं।"
बाली ने तारा द्वारा जुटाई गई गुप्त सूचना पर कतई विश्वास नहीं किया बल्कि उसकी हंसी उड़़ाते हुये बोले, "महारानी, तुम इन झूठी सच्ची अफवहों पर ध्यान न दिया करो और फिर राम ओर लक्ष्मण भी यदि इस वक़्त बाली के साथ हैं तो मुझे उनसे क्या डरना? मैं उनसे भी दो-दो हाथ कर लूंगा।"
यह कह कर बाली महल से निकल पड़े।
सुग्रीव ने देखा कि हृश्ट-पुश्ट बाली अपने हाथ में भारी भरकम गदा लिये हाथी की तरह मदमस्त हो चले आ रहे है। बाली को पुराने सारे प्रसंग याद आ गये, जब कि बाली ने अपने हाथेां से उनकी ढंग्र से कुटम्मस की थी। सुग्रीव डर के मारे कंप गये। उन्होंनेअपने चारों ओर देखा। वे यहाँ निहायचत अकेले खड़े थे। आसपास न तो कोईग् सहयोगी था न ही कोई सहायक पहलवान। वे सहसा पलटे और उन्होंनेउस बागीचे की ओर दौड़ लगा दी, जहाँ बाली को घेर कर लाने की योजना राम ने बनाई थी।
बाली ने भागते सुग्रीव को देखा तो वे फिर हंस पड़े। लेकिन उन्हे लगा कि इस बार यदि सुग्रीव को पीटा नहीं गया तो वह बार-बार दूसरेां के बहकावे में आकर इसी तरह नाटक करता रहेगा। सो वे सुग्रीव के पीछे ख़ुद भी दौड़ पड़े।
सुग्रीव ने अपने पीछे तेज गति से भागते बाली को देखा तो वे सिर पर पैर रख कर भाग निकले।
बागीचे में जाकर सुग्रीव रूके और बाली की ओर देखने लगे। बाली केपीछे पंपापुर के अनेक नागरिक तमाशा देखने के लिए चल ेआये थे। सुग्रीव को ललकारते बाली बोले, "क्यों वे डरपोक, तुझमे इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि अपनी मौत को ललकार रहा है।"
झिझकते से सुग्रीव ने कहा, "तुमने बहुत अत्याचार कर लिया महाराज बाली, आज मैं आपसे आर या पार की लड़ाई के लिए आया हूँ।"
"तो आजा नकली पहलवान, हो जायें दो-दो हाथ!" बाली ने दांत मिसमिसाये।
इतना कह कर बाली ने अपनी गदा एक तरफ़ फेंकी और एक झपट्टा मारा व सुग्रीव को दबोच लिया। सुग्रीव ने पूरी ताकत लगाकर अपने आपको छुड़ाने का प्रयास किया और सफल न हुए तो वे ऋश्यमूकपर्वत पर फुरसत के दिनों में सीखे गये कुश्ती के दांव याद कर कोई दांव लगाने का सोचने लगे। क्षण भर का सोचना ही उन पर भारी हो गया था। बाली ने उन्हे घूंसों और घुटने की ठोकरो ंसे धुन कर रख दिया तो सुग्रीव हांपने लगे। उन्होंनेआशा भरी नजरों से दूर खड़े राम और लक्ष्मण की ओर देखा तो बाली तुरंत ताड़ गये।
बाली ने भी सुग्रीव को पीटते हुए उधर नज़र दौड़ाई जहाँ सुग्रीव ताक रहा था। दूर दो तपस्वी युवक हाथ में धनुष बाण लिए इधर ही ताक रहे थे। उन दोनों तपस्वियों के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर बाली को भारी ख़ुशी हुई। वे चिल्ला कर बोले, "अरे नादान राजकुमारो, इस बेवकूफ को क्यों भढ़का कर यहाँ मर जाने के लिए ले आये हो। यदि तुम लोग नामर्द नहीं हो और तुम्हे अपने बल का ज़्यादा घमण्ड है दूसरे की ओट से क्यों तीर चलाते हो, ख़ुद आकर मुझसे कुश्ती लड़ों।"
इतना सुनकर लक्ष्मण को गुस्सा आ गया, वे अखाड़े में कूदना ही चाहते थे कि राम ने इशारे से उन्हे रोक दिया।
बाली की आदत थी कि वे बहुत कड़वी बातें बोलते थे, सो चुप नहीं हुए बोले, "तुम एक दूसरे को क्या ताक रहे हो डरपोक चूहो। आओ, मैं ताल ठोंक कर तुम्हे कुश्ती के लिए ललकारता हूँ।"
राम अब भी चुप थे और मुस्करा रहे थे। हनुमान को अब गुूस्सा आने लगा था। लेकिन राम को मंद-मंद मुस्कराते देख कर वे भी कसमसा कर चुप खड़े रहे। जामवंत जैसे सहनशील व्यक्ति को भी बहुत गुस्सा आने लगा था।
जामवंत ने देखा कि बाली के दरबार के सारे के सारे बड़े योद्धा बागीचे के इस अखाडे ़के चारों आंेरं आ चुके थे और इस वक़्त एक तरफ़ खड़े हो कर यह तमाशा देख रहे थे।
बाली का मन सुग्रीव की पिटाई और राम के अपमान से पूरा नहीं भरा था उन्होंनेसुग्रीव के हाथ से गदा छीनी, उसके दो टुकड़े कर डाले और दूर फेंक दिये। फिर उन्होंनेएक बार और दर्द से कराहते सुग्रीव को पीटना शुरू कर दिया। सुग्रीव अब सहन नहीं कर पा रहे थे सो वे बुक्का फाड़ कर रो उठे। राम का दया आ गई। वे सोचने लगे कि यह बेचारा भोला आदमी मेरे कहने से बिना कारण ही पिटा जा रहा है। कुछ करना होगा।
एकाएक बाली को जाने क्या सूझा कि उन्होंनेबहुत तेज आवाज़ में हुंकार भरी और राम की ओर देख कर चिल्ला उठे, "अरे ओ तपस्वी, क्या देख रहे हो? तुम्हारा दोस्त पिट रहा है। तुम तो सचमुच नामर्द आदमी हो।"
लक्ष्मण को फिर गुस्सा आया तो वे कसमसा उठें, लेकिन लक्ष्मण को रूकने का इशारा कर राम मुस्कराते हुऐ चुप खड़े रहे।
बाली का हौसला बढ़ गया। वे और ज़ोर से चिल्लाये, "मेरे सभासदो और बानर वीरो, देखा तुमने? ये डरपोक सुग्रीव आज बड़ा पहलवान बन कर आया था और मेरे हाथों कैसा पिट रहा है। इसे भढ़काने वाले चुपचाप खड़े इसे पिटता देख रहे हैं।"
राम ने बानर वीरों की तरफ़ देखा। वे सब उदास से खड़े थे, जैसे उन्हे कोई मतलब न था। यह बात सुगीव के पक्ष में थी। यदि वे लोग बाली की हाँ में हाँ मिलाते तो इससे साबित हो जाता कि वे सब बाली को नुक़सान पहुँचने पर भढ़क उठेंगे।
बाली अब भी चिल्ला रहे थे, "अरे ओ राम, मैं तुम्हारे पूरे परिवार को जानता हूँ। तुम्हारी माँ कैकेयी जितनी सुन्दर हैं उतनी ही दुश्ट भी हैं। तुम्हारे पिता तो उनके गुलाम की तरह हैं। तुम भी..."
बाली की बात को राम ने काट दिया, "बस्स, चुप रहो मूर्ख बाली। बहुत हो चुका। तुम मुझे कुछ भी कहते रहो, लेकिन तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरे माँ-बाप के बारे में कुछ बोलो।"
उधर जामवंत भी चिल्ला उठे थे, "महाराज बाली, इस लड़ाई में आप राम को क्यों समेट रहे हो? फिर राम को बुरा-भला कहने के बजाय उनके पिता और माँ के बारे में क्यों अपशब्द कहते हो?" बानर वीरों की ओर मुड़कर जामवंत आगे बोले, "आप सब सुनरहे हो न बानर वीरो, हमारे बाली महाराज ने राम के माता-पिता को अपमान करके पूरी बानर बिरादरी का अयोद्धा जैसे बलशाली राज्य का दुश्मन बना लिया है। वहाँ की सेना हमारे किष्किन्धा को क्षण भर में तहस-नहस कर डालेगी।"
बानर योद्धा विकटास बाली का सेनापति था, वह जामवंत से बोला "जामवंत जी, बाली महाराज की हर गलती के लिए हम लोग ज़िम्मेदार नहीं है। यह उनका निजी मामला है, आप श्रीराम से कहिये कि वे हमे अपना दुश्मन न समझें।"
राम ने बाली से कहा, "ये तुम्हारा निजी मामला था, मैं बोलना नहीं चाहता था, लेकिन तुम चाहते हो तो आओ हम दोनों युद्ध करते हैं।"
बाली को मज़ा आ गया। राम भढ़क उठे थे।
बाली ने बगीचे का एक पतला-सा पेड़ उखाड़ा और उसे लाठी की तरह घुमाते हुए राम की तरफ़ निशाना बाँध कर फेंक दिया। राम फुर्ती से एक तरफ़ हट गये और उसके वार को बचा गयेै। लेकिन बाली रूके नहीं। उन्होंनेपास में बड़ा एक बड़ा-सा पत्थर उठा लिया था और उसे राम की ओर फेंकने ही जा रहे थे कि सब चौंक उठे। इस बीच राम ने ग़ज़ब की फुर्ती दिखाते हुए अपने धनुष पर एक तीर चढ़ाया था और बाली की तरफ़ छोड़ दिया था। राम का तीर इतनी तेजी से सनसनाते हुए बाली की ओर लपका कि देखने वाले सन्न रह गये।
तीर सीधा बाली की बांयी पसली में जाकर धंसा और वहाँ से खून का फोैबारा निकल पड़ा। बाली के हाथ की चट्टान नीचे गिर गयी। वे अपने दांये हाथ से तीर निकालने का प्रयास करते हुए ज़मीन पर बैठते चले गयेउधर सुग्रीव इतने में ही डर गये थे उन्होंनेकंपते हुये हाथ से राम को दूसरा कोई बाण छोड़ने से मना कर दिया।
बाली जितना गरजते थे उतने दमदार नहीं निकले। राम के एक ही बाण ने उनका काम-तमाम कर दिया था। उनमे ंअब इतना साहस नहीं बचा था कि उठ पाते। वे राम से बोले "हे रघुवंशी, आप बहुत बलशाली हैैं। आप पहले आदमी हैं जिन्होने मुझे युद्ध में हरा दिया। मैं बहुत खुश हूँ। बोलो क्या वरदान मांगते हो?"
लक्ष्मण को हंसी सूझी कि जो आदमी ख़ुद मौत के मुंह में फंसा हुआ हो वह दानी और महाराज बन कर वरदान की बात करता है। लेकिन राम बहुत मीठी आवाज़ में बोले, "महाराज बाली, आप भी बहुत बलबान हैं। आप धीरज रखिये पंपापुर के राजवैद्य को बुूलवा कर हम आपका उचित इलाज़ कराते है।"
बाली को यही सुनने के पहले ही मूर्छा आ गई थी।
किसी ने राजवैद्य को सूचना कर दी थी इस कारण कुछ ही देर में पंपापुर के एक रथ में आकर राजवैद्य अपनी दवाओं के पिटारे के साथ उतरते दिखे। वे जल्दी से बाली के इलाज़ में जुट गये। राम के इशारे पर सुग्रीव ने बाली का सिर अपनी गोदी में रख लिया था जबकि पंपापुर के वे बानर योद्धा जो बाली के स्वामीभक्त थे, डर गये थे और एक-एक कर के वहाँ से खिसकने लगे थे।
कुछ ही देर में एक रथ और आया जिसमें से बाली की पत्नी महारानी तारा अपने बारह-तेरह साल के पुत्र अंगद के साथ हड़बड़ी में उतरीं। तारा के बाल बिखरे हुए थे और वे रह-रह कर रो उठती थीं।
तारा ने अपनी गोद में बाली का सिर लिया और वैद्य की सहायता करने लगी।
वैद्य की दवा का चमत्कार था कि क्षण भर बाद बाली की मूर्छा जागी, ' उन्होंनेतारा को देखा तो मुस्करा उठे। तारा से बोले "तुम रो क्यों रही हो। तुम्हारा पति एक बलबान और बहादुर आदमी के हाथेां हारा है। यदि मैं मर भी गया तो अब चिन्ता नहीं है। ये सामने राम खड़े हैं न ये मेरे बेटे अंगद को बाप की तरह लाड़ करेंगे। तुम चिन्ता मत करो।"
ये आखिरी शब्द थे बाली के। बस इतना ही बोलना लिखा था बाली के भाग्य में। इसके बाद वे एक शब्द भी नहीं बोल पाये और तुरंत मूर्छित हो गये फिर उसी मूर्छा में कुछ देर बाद उन्होंनेदेह छोड़ दी।
राम ने तारा को समझाया कि बाली एक महान योद्धा थे, उन्हे लड़ाई का बहुत शौक था। उन्हे तो किसी युद्ध में ही वीर गति पाना थी। इसलिए जो हुआ उसका उन्हे खेद है। अब वे पूरे निडर होकर रहें। अंगद आज से उनका बेटा है, उसकी चिन्ता न करें।
फिर राम ने सुग्रीव को पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाली का अंतिम संस्कार करने का आदेश दिया और वापस ऋष्यमूकपर्वत चले आये।
लक्ष्मण ने स्वयं जाकर सुग्रीव को किष्किन्धा राज्य का राजा बना कर राजतिलक किया और अंगद को युवराज बनाया। लोग श्रीराम की बुद्धिमानी पर बहंुत खुश थे कि कहीं ऐसा न हो कि बाली के बेटे और पत्नी को दुश्मन मान कर सुग्रीव उनके साथ ग़लत बर्ताव करे सो उन्होंनेअंगद को राजा के बराबर का सम्मान और हक़ दे दिया।
राजा बनने के बाद सुग्रीव ने श्रीराम को पंपापुर के पास के संुदर और सुविधायुक्त पर्वत प्रवर्शन पर ठहराया और उनसे निवेदन किया कि अब वे जल्दी ही अपनी सारी सेना जनक सुता सीता को खोजने के लिए भेज देंगे।
लेकिन पूरी बरसात बीत गयी न तो सुग्रीव ने सीता को खोजने का कोई बंदोवस्त किया था न ही स्वयं आकर इस बारे में कुछ कहा तो राम को लगा कि सुग्रीव राजा बनते ही सुख और सुविधाओं में ऐसा रम गये कि उन्हे मेरा काम याद नहीं रहा सो उन्होंनेलक्ष्मण को पंपापुर जाकर सुग्रीव को सबक सिखाने का निर्देश दिया था।