कूट कलस के लिए 'दो शब्द' / रामचन्द्र शुक्ल

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हमारे हिन्दी साहित्य में चमत्कारपूर्ण सूक्तियों, दृष्टिकूटों और पहेलियों का एक विशेष स्थान रहा है। नीति, ऋंगार आदि की बहुत सी वाग्वैचित्रयपूर्ण उक्तियाँ जनसाधारण के बीच प्रचलित चली आती हैं। उनका संग्रह वांछनीय है। बड़े हर्ष की बात है कि श्री गुरुनारायण शुक्ल ने इस ओर ध्यान देकर एक अच्छा संग्रह हमारे सामने रखा है। इसमें अनके विषयों पर चक्कर में डालने वाली सूक्तियाँ, पहेलियाँ आदि हैं जिसके अर्थ भी फुटनोटों द्वारा स्पष्ट कर दिए गए हैं। पुस्तक कई दृष्टियों से उपयोगी है। आशा है, शुक्लजी अपना यह स्तुत्य प्रयत्न जारी रखेंगे और अपने साहित्य की इस सामग्री का उध्दार करके एक बड़े अभाव की पूर्ति करेंगे।

(जुलाई, 1939)

[ चिन्तामणि: भाग-4]

('कूट कलस' का संकलन संपादन श्री गुरुनारायण शुक्ल ने किया था। इसका प्रकाशन सरस्वती पुस्तक भंडार, आर्यनगर, लखनऊ से 1939 ई में हुआ। अधाम कहे जानेवाले काव्य के प्रति शुक्लजी का क्या दृष्टिकोण था, इस भूमिका से स्पष्ट है-संपादक)