कूप मण्डूक / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
धूप में सो रहे एक आदमी की नाक पर तीन चींटियाँ आपस में मिलीं। अपने रिवाज के अनुसार उन्होंने एक दूसरे का अभिवादन किया और खड़ी-खड़ी बतियाने लगीं।
पहली चींटी ने कहा, "ये धरती और पहाड़ बिल्कुल बंजर है। पूरा दिन बीत गया तलाशते हुए, एक दाना भी हाथ नहीं आया।"
दूसरी चींटी बोली, "मैंने भी यहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा है, पर कुछ नहीं मिला। मुझे लगता है यह वही मुलायम, अस्थिर एवं बंजर भूमि है जिसके बारे में लोग बातें करते रहते हैं।"
तब तीसरी चींटी ने सिर उठाकर कहा, "बहनों! हम किसी बहुत बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं, इसका शरीर इतना विशाल है कि हम इसे देख नहीं सकते, इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम अनुमान भी नहीं लगा सकते, इसकी आवाज़ इतनी तेज है कि हम सुन नहीं सकते और वह हर जगह है।"
उसकी बात सुन्दर दूसरी चींटियाँ एक दूसरे की ओर देखकर हँसने लगीं।
उसी समय सो रहे आदमी ने नींद में ही अपनी नाक खुजलाई, तीनों चींटियाँ मसल कर रह गई.