कृष्णमय भारत में बांसुरी प्रतिबंधित / जयप्रकाश चौकसे

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कृष्णमय भारत में बांसुरी प्रतिबंधित
प्रकाशन तिथि : 03 सितम्बर 2018

हिंदुस्तान में कथा फिल्मों के जनक दादा साहब फालके ने 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखते समय विचार किया कि सिने माध्यम द्वारा कृष्ण कथा बखूबी अभिव्यक्त की जा सकती है। अपने सीमित साधनों के कारण उन्होंने 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई परंतु बाद में कृष्ण कथा से प्रेरित फिल्में भी बनाई। उनकी एक कृष्ण प्रेरित फिल्म में उनकी सुपुत्री मंदाकिनी ने कृष्ण की भूमिका अभिनीत की थी। भागवत में कृष्ण चरित्र वर्णित है परंतु उस में कहीं राधा का जिक्र नहीं है। दूसरी सदी में वैष्णव सम्प्रदाय के उदय के साथ राधा नामक पात्र का उदय होता है। कई सदियों बाद सूरदास ने राधा पर पद रचे हैं। मीरा ने कृष्ण भक्ति में नया अध्याय प्रस्तुत किया। याद आता है कि गुलजार ने हेमा मालिनी अभिनीत 'मीरा' बनाई थी, जो एक असफल फिल्म साबित हुई। उन्होंने मीरा को एक सामान्य व्यक्ति की तरह प्रस्तुत किया। उनकी मीरा कोई चमत्कार नहीं करती। हमारे पौराणिक आख्यानों ने हमें अभ्यस्त कर दिया कि हम केंद्रीय पात्र में कुछ अलौकिक देखना चाहते हैं। गुलजार ने गरिमा के आवरण को हटाकर मीरा को सामान्य महिला की तरफ प्रस्तुत किया था।

बहरहाल, भारत में राम आदर्श हैं और श्रीकृष्ण हमारा यथार्थ हैं। उन्हें संपूर्ण अवतार माना जाता है। समस्त 64 कलाओं से संपन्न व्यक्ति। अपने बचपन में वे माखन चोर की तरह प्रस्तुत किए गए हैं। इस तरह स्थापित हुआ कि चोरी भी एक कला है। वर्तमान व्यवस्था बटमार हो गई है। ठग शास्त्र में नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। श्रीकृष्ण प्रेम का पक्ष लेते हैं। वे अपने कालखंड के सबसे अधिक क्रांतिकारी व्यक्ति हैं। अपनी ही बहन को भगा ले जाने में वे अर्जुन की सहायता करते हैं। उनका बांसुरी वादन भी प्रेम करने की संगीतमय दलील है। बांसुरी को हम जीवन का प्रतीक मान सकते हैं। यह छिद्रमय है परंतु छिद्रमय होने के कारण ही माधुर्य को जन्म दे पाती है। दोष रहित होना बहुत ही उबाऊ है हो सकता है। श्रीकृष्ण ने जीवन में आनंद एवं प्रेम की परम आवश्यकता को रेखांकित करने के लिए रास का आविष्कार किया और अनगिनत गोपियां रास कर रही हैं और हर एक को ऐसा आभास होता है मानो श्रीकृष्ण उसी के साथ रास कर रहे हैं। इस अर्थ में श्रीकृष्ण ने मार्क्स व एंजिल्स का पहला आकल्पन कर लिया कि समानता परम आवश्यक है। सभी को अवसर मिलना चाहिए। श्रीकृष्ण ने जीवन में व्यावहारिकता के महत्व को प्रतिपादित किया। उन्हें रणछोड़ के नाम से भी बुलाया जाता है। शत्रु की अपार शक्ति का आकलन करके पीछे हट जाना व्यावहारिकता का प्रमाण है। द्रौपदी के पास अक्षय पात्र का होने का मतलब यह है कि कभी कोई भूखा नहीं रहेगा। वामपंथ धर्म को खारिज करता है परंतु श्रीकृष्ण को पहला वामपंथी मान लेना चाहिए और उनके जीवन चरित्र में वामपंथी तत्वों का व्यापक प्रचार होते ही धर्म के आधार पर वोट की राजनीति करने वालों के पैरों के नीचे की नीचे से जमीन ही खिसक जाएगी। उन्होंने अन्याय करने वाले राजाओं से उनका सिंहासन छीनकर समानता और न्याय को स्थापित कर सकने वाले लोगों को सिंहासन पर बैठाया है।श्रीकृष्ण ने हमेशा कमजोर और साधनहीन लोगों की सहायता की है। वे एक तरह से अल्पसंख्यक वर्ग के हामी थे कि उन्होंने पांडवों की सहायता की और अधिक संख्या वाले कौरवों को पराजित करवा दिया।

श्रीकृष्ण ने बांसुरी वादन के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर सुदर्शन चक्र का भी इस्तेमाल किया है। गौरतलब है कि सुदर्शन चक्र अपना काम करके श्रीकृष्ण के पास वापस आ जाता है गोयाकि अन्याय व असमानता फैलाने वाली शक्तियों का उदय बार-बार हो सकता है। गणतंत्र व्यवस्था में आम आदमी का मत ही उसका सुदर्शन चक्र है, जिसका प्रयोग वह बार-बार कर सकता है।

अमेरिकन फिल्म 'टाइटैनिक' सिने विधा में आधुनिकतम उपकरणों के कारण बन पाई। इसका अर्थ यह नहीं कि हम फिल्मकार की शक्ति को कमतर आंक रहे हैं। उपकरण हों या शास्त्र वे उसके उपयोग करने वाले की नियत और क्षमता पर निर्भर करते हैं। यह माना जाता है कि श्रीकृष्ण के द्वारा बनाई गई भव्य द्वारका पानी में डूब गई है। एक कल्पना इस तरह की जा सकती है कि अमेरिका में एक कृष्ण भक्त युवती को एक अमेरिकी से प्रेम हो जाता है, जिसे टेक्नोलॉजी की गहन जानकारी है। वग अमेरिकी युवा अपनी प्रेमिका का दिल जीतने के लिए विज्ञान के साधनों से लैस अपनी प्रेमिका के साथ समुद्र में गोता मारता है और डूबी हुई द्वारका नगरी को खोज निकालता है, जहां निरंतर रास हो रहा है। वे दोनों भी रास व रस में मग्न हो जाते हैं। वे उस डूबी हुई द्वारका को पृथ्वी पर लाने में समर्थ हैं परंतु वे ऐसा नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करते ही सरकार उस पर कब्ज़ा कर लेगी और वहां अपना सचिवालय स्थापित कर देगी जो झूठे आंकड़े प्रचारित करने का काम करती है।

एक प्रदेश विकास के दो पृष्ठ का विज्ञापन देता है और उसी अखबार में यह खबर प्रकाशित होती है कि कुपोषण से सबसे अधिक मौतें उसी प्रदेश में होती हैं। युवा प्रेमी अपने साथ द्वारका का एक स्मृति चिह्न चाहते हैं परंतु जीएसटी के भय से वहीं छोड़ देते हैं।