कृष्णा सोबती / परिचय
कृष्णा सोबती की रचनाएँ |
कृष्णा सोबती (१८ फरवरी १९२५, गुजरात (अब पाकिस्तान)) अपनी संयमित अभिव्यक्ति और सुथरी रचनात्मकता के लिए जानी जाती हैं। इनकी पहली कहानी 'लामा' थी, जो 1950 ई. में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी की कथा भाषा को विलक्षण ताज़गी़ दी है। उनके भाषा संस्कार के घनत्व, जीवंत प्रांजलता और संप्रेषण ने हमारे वक्त के कई पेचीदा सत्य उजागर किए हैं।
डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अंधेरे के, ज़िन्दगी़नामा, ऐ लड़की, दिलोदानिश, हम हशमत, और समय सरगम तक उनकी कलम ने उत्तेजना, आलोचना विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसों की जो फिज़ा साहित्य में पैदा की है उसका स्पर्श पाठक लगातार महसूस करता रहा है।
विवाद
इनकी कहानियों को लेकर काफ़ी विवाद हुआ। विवाद का कारण इनकी मांसलता है। स्त्री होकर ऐसा साहसी लेखन करना सभी लेखिकाओं के लिए सम्भव नहीं है। डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने कृष्णा सोबती की चर्चा करते हुए दो टूक शब्दों में लिखा है: उनके ‘ज़िन्दगीनामा’ जैसे उपन्यास और ‘मित्रो मरजानी’ जैसे कहानी संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया गया है...केशव प्रसाद मिश्र जैसे आधे-अधूरे सैक्सी कहानीकार भी कोसों पीछे छूट गए। बात यह है कि साधारण शरीर की ‘अकेली’ कृष्णा सोबती हों या नाम निहाल दुकेली, मन्नु-भण्डारी या प्राय: वैसे ही कमलेश्वर...अपने से अपने कृतित्व को बचा नहीं पाए...कृष्णा सोबती की जीवनगत यौनकुठा उनके पात्रों पर छाई रहती है।
पुरस्कार
साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता समेत कई राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती ने पाठक को निज के प्रति सचेत और समाज के प्रति चैतन्य किया है।
सम्मान
आपको हिंदी अकादमी दिल्ली की ओर से वर्ष २०००-२००१ के शलाका सम्मान से सम्मानित किया गया है।