केंकड़े की कहानी / नारायण पण्डित
मालव देश में पद्मगर्भ नामक एक सरोवर है। वहाँ एक बूढ़ा बगुला सामर्थ्य रहित सोच में डूबे हुए के समान अपना स्वरुप बनाये बैठा था।
तब किसी कर्कट (केंकड़े) ने उसे देखा और पूछा-- यह क्या बात है ? तुम भूखे प्यासे यहाँ क्यों बैठे हो ?
बगुला कहा -- मच्छ (मछली) मेरे जीवनमूल हैं। उन्हें धीवर आ कर मारेंगे यह बात मैंने नगर के पास सुनी है। इसलिए जीविका के न रहने से मेरा मरण ही आ पहुँचा, यह जान कर मैंने भोजन में भी अनादर कर रक्खा है।
फिर मच्छों (मछली) ने सोचा -- इस समय तो यह उपकार करने वाला ही दिखता है, इसलिए इसी से जो कुछ करना है सो पूछना चाहिये।
जैसा कहा है कि -- उपकारी शत्रु के साथ मेल करना चाहिये और अपकारी मित्र के साथ नहीं करना चाहिये, क्योंकि निश्चय करके उपकार और अपकार ही मित्र और शत्रु के लक्षण हैं।
मच्छ बोले -- हे बगुले, इसमें रक्षा का कौन सा उपाय है ?
तब बगुला बोला-- दूसरे सरोवर का आश्रय लेना ही रक्षा का उपाय है। वहाँ मैं एक- एक करके तुम सबको पहुँचा देता हूँ।
मच्छ बोले -- अच्छा, ले चला।
बाद में यह बगुला उन मच्छों को एक एक करनके ले जाकर खाने लगा।
इसके बाद कर्कट उससे बोला -- हे बगुले, मुझे भी वहाँ ले चल।
फिर अपूर्व कर्कट के माँस का लोभी बगुले ने आदर से उसे भी वहाँ ले जा कर पटपड़ में धरा।
कर्कट भी मच्छों की हड्डियों से बिछे हुए उस पड़ाव को देख कर चिंता करने लगा-- हाय मैं मन्दभागी मारा गया।
जो कुछ हो, अब समय के अनुसार उचित काम कर्रूँगा।
यह विचार कर कर्कट ने उसकी नाड़ काट डाली और बगुला मर गया।