केतन मेहता: भवनी भवई से रंग रसिया तक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 अक्टूबर 2014
आज सितारों के पीछे पागल युवा पाठकों को केतन मेहता से परिचित कराने के लिए यह लिखना पड़ रहा है कि उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म "राख' में आमिर खान को पहला अवसर दिया और उनकी "माया मेमसाब' शाहरुख खान की तीन प्रारंभिक फिल्मों में से एक थी। दरअसल आमिर और शाहरुख को अवसर देना केतन मेहता का परिचय नहीं है। उन्होंने दूरदर्शन के लिए वृत्तचित्र बनाने हेतु गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र का सघन दौरा किया और उन्हें लोक संस्कृति की भवई परंपरा का ज्ञान हुआ है। नसीरुद्दीन शाह और ओमपुरी ने नि:शुल्क काम किया और अत्यंत अल्प बजट में "भवनी भवई' बनी जिसने अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते तथा केतन मेहता को उनका सही परिचय दिया। स्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह अभिनीत "मिर्च मसाला' ने उनकी प्रतिभा पर आवाम की स्वीकृति की मोहर लगा दी। केतन मेहता ने अपने परिवार और परिवेश में प्रचलित दकियानूसी परंपराओं का विरोध किया और उनका अपने पिता से लंबा अबोला बरसों बाद टूटा जब पिता ने "मिर्च मसाला' देखी और उनकी आंख से अविरल आंसू बहने लगे, जिनका कारण मिर्च नहीं है, वह वात्सल्य है जिसे परंपराओं के पत्थरों ने लंबे समय तक दबाए रखा था।
"माया मेमसाब' के निर्माण के समय दिल्ली विश्वविद्यालय की स्वर्ण पदक विजेता दीपा शाही को उनसे प्यार हो गया और उनके विवाह के रजत जयंती वर्ष में उनकी "रंग रसिया' प्रदर्शित होने जा रही है। महान चित्रकार राजा रवि वर्मा की रंजीत देसाई द्वारा लिखी जीवनी से प्रेरित यह फिल्म लंबे समय तक सेंसर के दकियानूसी दृष्टिकोण के कारण अटकी रही और शर्मिला टैगोर ने सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के पद ग्रहण के बाद इसे पास किया।
दकियानूसी का इतिहास संभवत: सृजन के इतिहास से पुराना है और यह प्रकरण भी पहले अंडा या पहले मुर्गी की तरह है कि दकियानूसी पहले जन्मी या सृजन पहले शुरू हुआ। शायद हुआ यूं कि पत्थरों पर अथक परिश्रम और प्रतिभा से निर्वस्त्र आकृतियां गढ़ी गईं। पत्थर पर परदा कैसे रचते, क्योंकि पत्थर के परदे के भीतर छुपी आकृति को ही कलाकार ने उजागर किया था। आकृति के सौंदर्य से कुछ लोगों को अपनी कमतरी और शक्तिहीनता का अनुभव हुआ तो उन्होंने अपना दल संगठित करके कला का विरोध किया। दरअसल कला जीवन में गुणवत्ता और श्रेष्ठता का प्रतीक है तो हीनभावना से ग्रसित लोग विरोध करते हैं, क्योंकि गुणवत्ता अर्जित करना सबसे बस की बात नहीं।
बहरहाल केतन मेहता की राजा रवि वर्मा का बॉयोपिक कथा फिल्म के एक सौ एकवें वर्ष में प्रदर्शित हो रही है परंतु भारत में कथा फिल्मों के जनक धुंडिराज गोविंद फाल्के तो राजा रवि वर्मा के पनवेल, मुंबई स्थित लिथो कलर प्रिंटिंग प्रेस में काम कर चुके थे और राजा रवि वर्मा की अनेक कृतियों से फिल्मकार शांताराम और राजकपूर हमेशा प्रभावित रहे हैं। प्रमल हृदय फिल्मकारों की सेंसुएलिटी (कामुकता) की अभिव्यक्ति पर राजा रवि वर्मा की कृतियों का इतना गहरा असर हुआ है कि राजकपूर की "राम तेरी गंगा मैली' का जलप्रपात वाला दृश्य राजा रवि वर्मा की स्थिर कृति का ही चलायमान स्वरूप है और दोनों ही चित्र मेरी किताब महात्मा गांधी और सिनेमा में प्रकाशित किए गए हैं। प्रकाशक का फोन नंबर 02264414704 है। राजा रवि वर्मा की कृतियों के लिथो प्रिंट्स बाजार में आने के बाद हमारे अमूर्त पौराणिक पात्रों को चेहरा मिला और आज तक उसी परिपाटी का पालन किया जा रहा है। इन साहसी आकृतियों के कारण ब्रिटिश राज में राजा रवि वर्मा पर अश्लीलता के आरोप में मुकदमा दायर हुआ और राजा की जीत हुई। विगत डेढ़ सौ सालों में अदालत में गए इस तरह के सारे प्रकरणों में कलाकार ही जीते हैं और जेम्स जॉयस की यूलिसिस का जस्टिस लॉर्ड वूल्से का फैसला एक क्लासिक है। दरअसल अदालत से तो न्याय मिल जाता है परंतु हुल्लड़बाजों की नुक्कड़ अदालतों में कलाकार की हार हो जाती है।
"भवनी भवई' से "रंग रसिया' तक केतन मेहता की यात्रा में उसकी एकमात्र साथी रही है दीपा शाही। हमारे देश के आम नागरिकों की कामुकता भी पौराणिक कथाओं से ही प्रेरित है अत: जब मूल ग्रंथ ही इस धारा की गंगोत्री है तो फिर उस धारा को अब गंदी कहने का क्या अर्थ है। दरअसल विवेक और तर्क का अंत ही सारे सेंसरशिप के उदय का कारण है।