कैक्टस और कुक्कुरमुत्ते / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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एक्सीलेटर पर ड्राइवर के दबाव देत ही टू व्हीलर जीप के पिछले पहिए अपनी जगह पर ही नाचने लगे, उनसे छूटते रेत के फव्वारों को देखकर जीप के चारों ओर खड़े ग्रामीणों के ठहाके गूँज उठे। अजय का दिल इन गँवारों के प्रति वितृष्णा से भर गया। कैसे ढीठ हैं ये लोग, सब कैसे खड़े-खड़े दाँत निकाल रहे हैं, आठ-दस लोग मिलकर ज़रा-सा जोर लगा दें तो जीप रेतीले गड्ढे से बाहर आ जाए.

तभी भीड़ में से एक ग्रामीण लड़का दो-फुटे तख्ते लिए तेजी से बाहर आया, वह पिछले पहियों के पास पेट के बल लेट गया, उसके हाथों में बिजली की-सी तेजी से हरकत हुई और आनन-फानन में उसने दोनों तख्तों को पिछले पहियों के नीचे अड़ा दिया।

अबकी जीप झटके के साथ उन गड्ढों से बाहर आ गई. अजय उस ग्रामीण लड़के की तुरत-फुरत कार्यवाही और मैकेनिकल माइंड देखकर दंग था। उसने ध्यान से उस देहाती लड़के को देखा, शरीर पर एकमात्र जाँघिया, उम्र यही कोई चौदह-पंद्रह वर्ष...तीखे नैन-नक्श...सोचती हुई आँखें।

"कौन-सी कक्षा में पढ़ते हो?" उसने पूछ लिया।

"पढ़ाई-वढ़ाई छोड़ दी, अब तो बप्पा के साथ खेतों में मेहनत करता हूँ।"

"क्यों?" अजय को दुख हुआ, हमारे देश में न जाने कितनी प्रतिभाएँ शिक्षा के अभाव में इसी प्रकार नष्ट हो जाती हैं।

"क्या फायदा? स्कूल के नाम पर मास्टर लोगों के घरों में और खेतों में काम करना पड़ता था। अब स्कूल जाकर भी यही सब करना है तो अपने घर और खेतों पर काम क्यों न करूँ?" उसने आत्मविश्वास से कहा।

"चलिए साहब, अभी बहुत दूर जाना है..." एकाएक ड्राइवर ने उसे टोका।

अजय ने चेहरे पर जम गई गर्द को रूमाल से पोंछते हुए एक निगाह आसपास खड़े तमाशबीनों पर डाली। अब उसके मन में उनके प्रति कोई तिरस्कार वाला भाव नहीं था बल्कि वह इन दयनीय लगते चेहरों के बारे में सोचते हुए स्टार्ट जीप में बैठ गया। थोड़ा रास्ता तय करने के बाद उसने पीछे मुड़कर देखा, जीप के पीछे धूल के गुबारों के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।