कैटरीना कैफ महानता की तलाश में / जयप्रकाश चौकसे

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कैटरीना कैफ महानता की तलाश में
प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2012


आज कैटरीना कैफ स्वयं को अपनी महत्वाकांक्षा के शिखर पर पहुंची महसूस कर रही हैं, परंतु उनकी तीव्र इच्छा है कि किसी ऐसी फिल्म में वे अभिनय करें, जिसे लंबे समय तक याद रखा जाए और नया पथ बनाने वाली फिल्म हो, कल्ट फिल्म हो। कैटरीना के इस सपने से आभास होता है कि उनमें अभी भी बेकरारी मौजूद है। केवल इस बेकरारी के ईंधन पर आगे बढ़ा जा सकता है। जब तक कलाकार के मन में असंतोष है, तब तक उससे आशा की जा सकती है। संतुष्ट व्यक्ति, भरपेट खाया हुआ व्यक्ति निद्रा में स्वयं को नष्ट कर सकता है। यह भूख ही है जो मनुष्य को सक्रिय रखती है। शेर भी भूखा होने पर अपने तीव्रतम आक्रामक स्वरूप में प्रकट होता है।

इतने दशकों बाद भी नरगिस को 'मदर इंडिया' के लिए याद किया जाता है। मीना कुमारी को 'पाकीजा' के लिए याद किया जाता है, नूतन को 'बंदिनी' के लिए, शबाना आजमी को 'अंकुर' के लिए और स्मिता पाटील को 'वारिस' के लिए याद किया जाता है।

दरअसल पुरुष केंद्रित भारतीय समाज और सिनेमा में महिलाओं को केंद्र में रखकर कम ही काम होते हैं। फिल्म उद्योग के हर कालखंड में पुरुष सितारों का मेहनताना भी महिला सितारों से अधिक रहा और आज भी कैटरीना या करीना से कई गुना अधिक पैसा नायकों को दिया जाता है। सबसे ज्यादा दु:खद बात तो यह है कि महिला केंद्रित फिल्मों को महिला दर्शक वर्ग का संबल भी नहीं मिलता। अरुणा राजे की साहसी 'रिहाई' सिताराजडि़त फिल्म थी, जिसमें हेमा मालिनी, विनोद खन्ना और नसीरुद्दीन शाह जैसे नामी सितारे थे, परंतु अधिकांश महिला दर्शक मध्यांतर के बाद सिनेमाघर में ही नहीं लौटीं, जबकि सशक्त अंतिम दृश्य में एक संवाद था कि आप हमसे सीता से आचरण की आशा करने वाले कभी भी राम-सा आचरण नहीं करते।

आज के दौर में महिलाएं सीरियल संसार में डूबी रहती हैं, जो कुरीतियों और कुप्रथाओं तथा अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। आज के दौर की शिखर महिला सितारों के पास कोई भी ऐसी फिल्म नहीं है, जिसे वे सगर्व अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों या बच्चों के बच्चों को दिखा सकें। वे अपने आइटम गीतों के ठुमके तो नहीं दिखा पाएंगी। आज वहीदा रहमान सगर्व अपनी 'प्यासा' और 'गाइड' अपने बच्चों को दिखा सकती हैं।

दरअसल युवावस्था में कौन सोचता है कि कुछ वर्ष पश्चात हमें अपनी भावी पीढिय़ों को अपना काम दिखाना होगा। जवानी का दौर नशे का दौर है, सुन्न कर देने का इसमें असर है और यह भरम भी है कि हम तो हमेशा ऐसे ही रहेंगे। मनुष्य स्वयं को ठगने का काम हमेशा करता रहता है।

दरअसल लंबे समय तक याद रखे जाने की इच्छा बलवती होती है, परंतु अमर हो जाना बहुत कठिन है। महाभारत के विद्वान लेखक वेदव्यास क्या अजीब ढंग से संकेत देते हैं कि उस कालखंड के सारे महान योद्धा मारे गए, परंतु केवल अश्वत्थामा को संदिग्ध अमरत्व प्राप्त हुआ। युद्ध समाप्त होने के बाद उसने द्रोपदी के युवा वंशजों को नींद में मारा, जिसके चलते उसे शाप मिला कि वह मौत को तरसेगा, परंतु कभी नहीं मरेगा। उसकी अशांत आत्मा सदैव भटकती रहेगी।

बहरहाल, कैटरीना कैफ को एक सार्थक फिल्म की इच्छा है, परंतु आज वे मेहबूब खान, गुरुदत्त और बिमल रॉय जैसी प्रतिभा का फिल्मकार कहां खोज पाएंगी। आज के फिल्मकार भी प्रतिभाशाली हैं, परंतु उद्योग के आर्थिक समीकरण उन्हें महिला केंद्रित फिल्म रचने की इजाजत नहीं देंगे। बाजार की ताकतों को सुंदर महिलाएं लुभावने विज्ञापन के लिए चाहिए।