कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया / भाग - 11 / संतोष श्रीवास्तव

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कुंभ नगर इन दिनों भक्ति, साधना और संगीत की रसधार से समस्त श्रद्धालुओं को सराबोर कर रहा था। "चलो रे मन गंगा यमुना तीरे" बैनर तले होने वाले संगीत के भव्य कार्यक्रम को देखने के लिए लाखों की भीड़ इकट्ठा हो जाती। संगीत की धारा ऐसी बहती मानो आकाशगंगाएँ धरती पर उतर आई हों। मशहूर शहनाई वादक उस्ताद फतेह अली खान की शहनाई की धुन पर जनसमूह आँखें मूँदे झूम रहा था। अनूप जलोटा के गाये भजन, हुसैन बंधु, हरिप्रसाद चौरसिया, तिज्जन बाई द्वारा प्रस्तुत कला की बानगियों ने कुंभनगर को संगीत सरिता में डुबो दिया था। लोक-कलाकारों के लोक नृत्य देखकर तो कैथरीन मंत्रमुग्ध हो गई। आद्या के नागा साधुओं को लेकर प्रश्न भी अनंत थे-

"इतने सारे अखाड़े हैं आप लोगों के। क्या कभी लड़ाई नहीं होती आपस में?"

नरोत्तम गिरी को आद्या के प्रश्नों का उत्तर देने में आनंद भी बहुत आता है। उसके चेहरे पर जिज्ञासा भरा भोलापन है जो बड़ा आकर्षित करता है।

" होती है न लड़ाई। तभी तो विभिन्न अखाड़ों के शाही स्नान का समय और आने-जाने के रास्ते अलग-अलग हैं। शैव और वैष्णव अखाड़ों में लंबे समय तक मतभेद रहे और खूनी संघर्ष भी खूब हुए। पर अब नई पीढ़ी के आने के बाद से मतभेद कम हुए हैं। शिक्षा से बदलाव भी आया है। कुछ बातें यथावत हैं जैसे अखाड़े में सबसे बड़ा पद आचार्य महामंडलेश्वर का होता है। वही नागाओं को दीक्षा देते हैं। कितनी अदभुत बात है कि आचार्य महामंडलेश्वर दीक्षा देते हैं पर वे नागा नहीं होते।

"आश्चर्य, मतलब उन्होंने नागा पँथ की दीक्षा नहीं ली होती है?"

"नहीं, महामंडलेश्वर एक ऐसा अलंकृत पद है जो अखाड़े में होते हुए भी अखाड़े से बाहर होता है। किसी भी संत को महामंडलेश्वर बनाया जा सकता है।"

"आप लोगों में भी पद और अधिकार तो होंगे?"

"क्यों नहीं आद्या, एक बार दीक्षा लेकर जब व्यक्ति नागा जीवन में प्रवेश करता है तो पहले महंत, फिर श्री महंत, फिर जमातिया महंत, पीर महंत दिगंबर, श्री महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर। महामंडलेश्वर के बारे में अभी मैंने आपको बताया, उनके अंडर ही श्री महंत कोतवाल और थानापति अखाड़े की व्यवस्था देखते हैं।"

"इंटरेस्टिंग... पूरा इंस्टीट्यूट है आप लोगों का। आप किस पद पर हैं? आपका काम क्या है?"

"हम तो प्रशिक्षक हैं। विद्यार्थी हमें आचार्य कहते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर। इस कुम्भ में हमारे प्रशिक्षण में प्रशिक्षित हुए युवा नागा दीक्षा ले रहे हैं।"

"यानी लाखों में संख्या है आप लोगों की?"

"हाँ आद्या, अब तो विदेशी भी नागा साधु हो रहे हैं।"

आद्या ने विस्फारित नेत्रों से नरोत्तम गिरी को देखा।

" यकीन नहीं हो रहा है न। पर यह सत्य है। हमारे अखाड़े में कई विदेशी नागा है। आगे के पद भी बताए देते हैं। कुटीचक, बहुदक, हंस और परमहंस। यह आध्यात्मिक पदों के अंतर्गत आते हैं। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। इसके अलावा औघड़ी, अवधूत, कापालिक, शमशानी आदि भी होते हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त नागाओं को सरस्वती और भारती का उपनाम दिया जाता है।

"वाह, हर एक अखाड़ा एक इंस्टीट्यूट। मुझे तो लगता है कुछ दिन गुजारूं आपके साथ अखाड़े में।"

आद्या की उत्सुकता और प्रत्यक्ष अनुभव जुटाने की इच्छा को कैथरीन ने विराम देते हुए कहा-"वहाँ लेडीज की नो एंट्री है।" कैथरीन को पता था कि उसका यह कथन सही नहीं है। जाने क्यों कैथरीन ने आद्या से यह बात छुपानी चाही।

आद्या हँस पड़ी-"क्यों हमसे घबराते हैं आप?"

नरोत्तम गिरी भी हँसने लगा।

" अब लेडीज की एंट्री भी आरंभ हो चुकी है। लेकिन अभी संख्या बहुत कम है। नागा इंस्टिट्यूट की व्यवस्था अखाड़ों के जिम्मेदार सन्यासी धार्मिक क्रिया कर्म के साथ तप और तपस्या तक का ध्यान रखते हैं।

अखाड़े के कामकाज को नागा संत अपनी आंतरिक प्रबंधकीय कुशलता से बखूबी अंजाम देते हैं। साधुओं को उनकी वरिष्ठता के आधार पर कार्य का विभाजन किया जाता है और उनके साथ कुशल स्वयंसेवकों यानी साधुओं की एक टीम तैनात कर दी जाती है। "

"आपके इंस्टिट्यूट में फाइनेंशियल डिपार्टमेंट भी होता होगा।"

"होता है न। अखाड़े की संपत्ति की देखभाल थानापति करता है। बहुत विस्तृत काम काज है। सारी प्रबंधन व्यवस्था का दायित्व अष्टप्रधान जिसमें चार महंत और चार श्री महंत होते हैं का होता है। इनकी सहायता के लिए आठ उप प्रधान होते हैं। जिन्हें कारबारी कहा जाता है। अखाड़ों की मीटिंग कोतवाल अरेंज करता है।"

"तो इन सारे पदों के लिए चुनाव भी होता होगा?"

"होता है न, चुनाव प्रजातांत्रिक रूप से होता है। यानी चयन का अधिकार सभी नागाओं का है।" "अमेजिंग, एक नई दुनिया से परिचय करा रहे हैं आप। अंतिम प्रश्न, कुंभ की समाप्ति के बाद आप कहाँ चले जाते हैं। अदृश्य हो जाते हैं। सिर्फ कुंभ में ही दिखते हैं आप। ऐसा कई लोगों ने मुझे बताया। क्या यह सत्य है?"

"काश हमें अदृश्य होने की कला आती।"

नरोत्तम गिरी ने अब चिलम सुलगा ली थी। इस बार कैथरीन ने भी उसी चिलम से सुट्टा लगाया।

" कुंभ के बाद अधिकांश नागा अपनी साधना के लिए कंदराओं में चले जाते हैं। कुछ अखाड़ों में चले जाते हैं। युवा नागा अपना दिगंबर रूप छोड़कर एक वस्त्रधारी होकर समाज में लोगों को धर्म और आध्यात्म से जोड़ने में लग जाते हैं। लेकिन उन्हें साधना के समय और धूनी के सामने दिगंबर रूप में ही रहना पड़ता है।

आद्या अपने प्रश्नों का समाधान पा खुश थी। वे तीनों नरोत्तम गिरी से बिदा ले अखाड़े के बाहर आ गए। सितारों भरी रात और जगमग लट्टुओं से जगमगा रहा कुंभनगर।

तट पर टहलहते हुए आद्या, रॉबर्ट और कैथरीन मुग्ध थे।


शाही स्नान विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। अंतिम शाही स्नान 10 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन संपन्न हुआ और उसके बाद अखाड़ों के खेमे उखड़ने लगे। लोगों की उत्सुकता यही तो थी कि हजारों, लाखों की तादाद में यह नागा साधु अब न जाने कहाँ अदृश्य हो जाएंगे।

"इस बार हमने 14 जनवरी से 10 मार्च तक का समय साथ-साथ गुजारा नरोत्तम। अब फिर जुदाई का वक्त आ गया है।" कैथरीन की आवाज में थरथराहट थी। नरोत्तम और कैथरीन की कुंभ नगर में वह अंतिम शाम थी।

"हमारे इस दोबारा मिलन में ईश्वर सहायक है। वही व्यक्ति को मिलाता है, वही जुदा करता है। वरना समुंदरों, पर्वतों को लांघ कर तुम इस तरह मिलतीं क्या?"

"अब तुम कन्दराओं में, गुफाओं में, हिमालय की चोटियों पर होगे और मैं सिडनी की आधुनिक चकाचौंध भरी दुनिया में।"

"हम तो सन्यासी, बैरागी... वही तो ठिकाने हैं हमारे।"

"ठिकाने हैं नहीं, बना लिए तुमने। मैंने बहुत बारीकी से तुमको पढ़ा है, परखा है नरोत्तम। तुम्हारे अंदर एक कोमल प्रेम भरा दिल है। तुम परिस्थितियों वश नागा बने हो।" चौक पड़ा नरोत्तम। हे प्रभु यह कैथरीन रूपी आँधी तो फिर चल पड़ी। मुझे पोर-पोर उखाड़ने, झंझोड़ने।

"तुमने अवश्य किसी से प्यार किया है। बताओ नरोत्तम मैं गलत नहीं हूँ न?"

पुराने बंद दरवाजे फिर खड़खड़ाए हैं जिनकी रन्ध्रों से अतीत झांकने को आतुर है। नरोत्तम गिरी निर्ममता से दरवाजों पर साँकल चढ़ा देता है। बात बदल दी है नरोत्तम गिरी ने।

"प्रस्थान कब का है कैथरीन?" " कल सुबह लखनऊ चले जाएंगे हम। किताब के सिलसिले में कुछ जानकारियाँ इकट्ठी करनी हैं। वहाँ हमारे मित्र हैं प्रोफेसर शांडिल्य और आद्या को अपने ददिहाल में 2 दिन रुकना है।

"उसी किताब की जानकारी लेनी है जो नागाओं पर लिख रही हो?" "हाँ, उसी किताब ने तो मुझे तुमसे मिलवाया है। उस किताब की बहुत बड़ी भूमिका है मेरे जीवन में। शायद तुम समझ सको।"

"हाँ मैं समझ सकता हूँ। लेकिन मेरी जिंदगी ने अब समझने के सारे रास्ते बंद कर दिए है।"

थोड़ी देर खामोश रहकर कैथरीन ने कहा-"आज की रात मैं संगम के रेतीले तट पर चहलकदमी करते हुए बिताऊँगी। मैं रात में गंगा की काली लहरों पर बोटिंग करना चाहती हूँ। अगर कोई बोट ले जाए तो और सारी रात मैं सोचना चाहती हूँ तुम्हें कि अगर तुम मेरे साथ होते तो, मेरी जिंदगी में होते तो, मुझे प्यार करते तो ... क्षण भर ठहर कर उसने नजरें झुका कर कहा-क्या तुम मुझे मेरे टेंट हाउस तक पहुँचा दोगे?"

नरोत्तम तुरंत उठ खड़ा हुआ। "चलो, कल सुबह हम भी हरिद्वार के लिए प्रस्थान करेंगे। काफी काम शेष है। तुम्हें छोड़ कर आते हैं।"

इत्तफाक था कि टैंट में आद्या नहीं थी। नरोत्तम को अंदर बैठाते हुए कैथरीन ने तंबू का दरवाजा बंद कर परदे खींच दिए।

इस एकांत में कैथरीन का सौंदर्य आव्हान-सा कर रहा था। संपूर्ण प्रकृति एकाकी संगिनी लग रही थी। मानो उसके सामने था चराचर जगत का पूर्ण सत्य। स्त्री पुरुष से ही यह संसार बसा है। नारी से सर्वथा अपरिचित अकेले में उसके साथ... घबरा गया नरोत्तम। उसकी जिंदगी में यह कैसी नारी की भूमिका? दीपा ने भी आगे बढ़कर उसे निमंत्रित किया था और कैथरीन ने अभिमंत्रित। इसमें कहीं नरोत्तम नहीं है। कहीं उसकी ओर से याचना या आग्रह नहीं है। वह दो नारियों के असीमित सूत्र को पकड़ पाने में असमर्थ है।

सब तरफ से टेंट को बंद कर देने पर भी ठंडी हवा पीछा नहीं छोड़ रही थी। कैथरीन पार्टीशन के उस पार से गर्म शॉल उठा लाई। जिसे ओढ़ते हुए उसने कहा-

"आओ गर्म कॉफी पीते हैं और मेरी फेवरेट सिगरेट भी।"

नरोत्तम के सामने बैठते हुए उसने कहा। नरोत्तम बर्फ तो था ही और भी बर्फ हो गया।

"तुम्हारी खामोशी पर मुझे बहुत प्यार आता है।" कहते हुए कैथरीन ने मगों में थर्मस से कॉफी निकाली। दो सिगरेट सुलगाईं। एक उसे दी। एक खुद पीने लगी।

"कितनी जल्दी बिछड़ने का समय आ गया न। जो समय हमें अच्छा लगता है वह बहुत जल्दी बीत जाता है। मैंने हमेशा महसूस किया।"

"समय को उसके हिसाब से बहने दो कैथरीन। हमें अपने को समय के अनुरूप ढालना होगा। कुछ ही दिनों बाद तुम सिडनी में होगी और मैं पहाड़ों पर। यही जीवन है।"

"सही कह रहे हो नरोत्तम।"

कुछ पल रुक कर कैथरीन ने कॉफी का घूँट भरते हुए कहा-"यह तो तुम जानते ही हो नरोत्तम कि मुझे हिंदू आध्यात्म बहुत आकर्षित करता है। किंतु उसको लेकर कई सवाल भी मेरे मन में उठ खड़े हुए हैं। एक सवाल मेरा सरस्वती और ब्रह्मा जी को लेकर है। सरस्वती तो ब्रह्मा की पुत्री थी, फिर ब्रह्मा ने सरस्वती से शारीरिक सम्बंध क्यों बनाए?"

" यह सवाल तो मेरे मन में भी उठा था। सरस्वती अपने ही पिता के द्वारा छली गई। यही वजह है कि ब्रह्मा जी की न तो कहीं पूजा होती है और न कहीं उनका मंदिर है, सिर्फ पुष्कर को छोड़कर।

"लेकिन नरोत्तम एक बात सरस्वती के चरित्र से मैंने महसूस की है कि वह छली जाने के बावजूद हारी नहीं। दृढ़ता से उठी और विद्या की देवी बन गई। यौन शोषण का शिकार लड़कियों के सामने सरस्वती बहुत बड़ा उदाहरण है।"

"अरे तुमने तो बिल्कुल नया ही स्वरूप सरस्वती जी को दे दिया। गजब की है तुम्हारी सोच कैथरीन?"

"और एक निजी सवाल। क्या तुम्हारे जीवन में कोई ऐसी स्त्री आई जिससे तुम्हारा शारीरिक संपर्क हुआ हो।"

' नहीं कैथरीन। " इस बार बिना रुके बिना किसी झिझक के नरोत्तम ने तुरंत जवाब दिया।

न जाने क्यों नरोत्तम के इस जवाब से कैथरीन को दुख हुआ। सृष्टि के सबसे सुखद एहसास से तो नरोत्तम वंचित ही रहा। नियति ने कैसा खेल खेला है नरोत्तम के साथ कि वह इस संसार में रहकर भी संसार का न हुआ। बस तप और साधना में सिमटकर रह गया। उसने बहुत प्रेम से नरोत्तम की ओर देखते हुए कहा-"तुम सच में दिव्य पुरुष हो।"

उस रात दोनों का रतजगा हुआ नरोत्तम का अपने अखाड़े में और कैथरीन का संगम तट पर घूमते हुए। अनंत आकाश में जैसे दोनों विचरण कर रहे थे। चाँद, तारे, ग्रह, नक्षत्र, आकाशगंगाएँ न उन्हें समझ पा रही थीं न वे दोनों खुद को।

ब्राह्म मुहूर्त में अखाड़ों का प्रस्थान था। मेला उठ चुका था।

कुंभ की समाप्ति के पश्चात अखाड़ों में नागा बिखरने लगे। वह सब आज सर्वोपरि महंतों के साथ यात्रा पर प्रस्थान की तैयारी में जुट गए। पँचों, श्री पँच, पँच परमेश्वर और जमात जैसे पदों वाले यह नागा अखाड़े के संघ शंभूपँच के साथ प्रस्थान करेंगे। पँचों के अतिरिक्त कुछ छोटी-छोटी टुकड़ियाँ देश में भ्रमण करती रहती हैं। इन छोटी टुकड़ियों यानी झुन्डियों के अपने इष्ट देवता, निशान, केसरिया ध्वज, माला, छड़ी रहते हैं। दशनामी नागा साधुओं के श्री पँच, श्री महंत और कारबारी रेल, नाव या किसी भी तरह की सवारी का उपयोग नहीं करते। इनको तो अपने गंतव्य तक पैदल यात्रा करनी होती है। दशनामियों के अखाड़े में आठ दावे और 27 मढ़िया होती हैं जो आध्यात्मिक कार्य करती हैं। कोई आसान थोड़ी है नागाओं के विस्तृत क्षेत्र का कार्य।


कुंभ से नरोत्तम गिरी हरिद्वार लौटा और हिमालय की कंदराओं में तपस्या के लिए चला गया। गुरुजी से उसे मात्र 1 वर्ष तपस्या की स्वीकृति मिली थी। लौटकर फिर उसे प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त किया जाएगा, इस बार हरिद्वार के जंगलों में प्रशिक्षण केंद्र होगा। यह बात उसने हिमालय की ओर जाने से पहले कैथरीन को फोन पर बताई। कैथरीन लखनऊ पहुँच चुकी थी और जिस कार्य के लिए वह लखनऊ गई थी उसमें व्यस्त हो गई थी।

कैथरीन से मिलकर नरोत्तम का मन उद्विग्न था। उसे लग रहा था जैसे वह नागा पथ से डिग रहा है। इतने सालों का उसका तप, त्याग क्या व्यर्थ चला जाएगा? अगर यही सब होना था तो अपने घर का त्याग क्यों? न जाने उसका परिवार कैसा होगा। अम्मा, बाबूजी, कीरत भैया, रोली। 17 वर्ष बीत गए। एक युग से दूसरे युग में प्रवेश।


हजरतगंज में प्रवीण के घर आद्या को पहुँचा कर जहाँ प्रवीण के चाचा-चाची और चाचा जी का बेटा-बहू रहते हैं कैथरीन नजदीक के होटल में रॉबर्ट के साथ रुकी। रॉबर्ट को चौथी मंजिल पर कमरा मिला और कैथरीन को पहली मंज़िल पर। आद्या ने जिद्द की थी कि कैथरीन भी आद्या के ददिहाल में उसके साथ ही रुके। प्रवीण ने भी फोन पर नाराजगी प्रकट की-"होटल में क्यों रूकी हो कैथरीन?"

"मैं यहाँ रह कर अपना काम अच्छे से और शीघ्रता से निपटा सकूंगी। आद्या को अपने ददिहाल में आजादी की जिंदगी जीने दो न प्रवीण। दो दिन की ही तो बात है।" "ठीक है जैसा तुम उचित समझो। वैसे तुम मानती कहाँ हो किसी की बात?"

कैथरीन ने गहरा ठहाका लगाते हुए कहा-"इतने सालों बाद समझ पाए तुम मुझे?"

प्रोफेसर शांडिल्य का फोन लगातार आ रहा था। उसने प्रवीण से विदा ले उनका फोन रिसीव किया-

"किस होटल में रुकी है मिस बिलिंग। आधे घंटे में पहुँच रहा हूँ। डिनर साथ लेंगे।"

"मेरे साथ रॉबर्ट भी है। आद्या का मंगेतर।"

कैथरीन के लखनऊ आने की खास वजह प्रोफेसर शांडिल्य थे जिनसे वह सिडनी के स्टेट लायब्रेरी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स में मिली थी। वे हिंदू आध्यात्म पर रिसर्च कर चुके थे और इन दिनों भगवदगीता की मीमांसा कर रहे थे। उनके इन्हीं कार्यों के लिए उन्हें जापान, मलेशिया और सिंगापुर के महाविद्यालयों में कार्यशाला और व्याख्यान के लिए बुलाया जा चुका था। सिडनी के पुस्तकालय में भेंट के बाद कैथरीन बहुत अधिक रुचि ले रही थी... शायद उसके बिखरे कार्यों में उनसे मदद मिले। उन्होंने अपने छात्रों को बताया है कि प्रत्येक काल मानव शक्ति को सार्थक कार्यों के लिए उत्प्रेरित करता है। वे समझ नहीं पाते भटक जाते हैं और इसीलिए जीवन में गुरु का होना आवश्यक है। जो मनुष्यता के पक्ष में खड़े होने की राह बता सके। बहुत प्रभावित है वह प्रोफेसर शांडिल्य से...वह अपनी संवेदना और जिजीविषा को अपने उपन्यास में उंडेल देना चाहती है। वह चाहती है कि गहरी वेदना में भी मानवीय सहिष्णुता आलोकित हो।

ठीक आधे घंटे में होटल के रिसेप्शन से इंटरकॉम पर सूचना मिली कि प्रोफेसर उसका इंतजार कर रहे हैं। कमरे में सामान बिखरा पड़ा था नहीं तो वह उन्हें वहीं बुला लेती। वह पहले से तैयार थी इसलिए कमरे का लैच बंद करते हुए उसने रॉबर्ट से भी रिसेप्शन में आने कहा।

अपने चिर परिचित अंदाज में प्रोफेसर शांडिल्य मुस्कुराते हुए मिले-"हेलो मिस बिलिंग, आप बिल्कुल नहीं बदलीं।"

"क्रांतिकारी नहीं बदलते।"

प्रोफेसर शांडिल्य ने विस्मय से कैथरीन को देखा-

"मिस बिलिंग।"

"नहीं कुछ नहीं प्रोफेसर। इतने दिनों बाद आपसे मुलाकात अच्छी लग रही है। 2 दिन हूँ यहाँ। आपने मुझे लेकर अपना कार्यक्रम किस प्रकार शेड्यूल किया है बताएँ।"

"कल हम लाइब्रेरी चलेंगे। आपके प्रोजेक्ट से सम्बंधित पुस्तकें आपको नोट करा के पब्लिशर को ऑर्डर कर देंगे। परसों सारा दिन लखनऊ की सैर। यहाँ के महल, गोमती नदी और लखनऊ की चाट आप खाएंगी तो उंगलियाँ चाटती रह जाएंगी।"

रॉबर्ट तैयार होकर आ गया था।

"ओ हैंडसम बॉय, आद्या को देखकर डिसाइड करुंगा दोनों की जोड़ी।"

वे हंसते हुए अपनी गाड़ी तक आए-

"मिस्टर रॉबर्ट, इफ यू डोंट माइंड, आप पीछे की सीट पर बैठिए। वहाँ मेरा कोट रखा है। उसे साइड में कर दीजिए।"

फिर कैथरीन के लिए कार का दरवाजा खोलते हुए कहा "वेलकम"

कैथरीन मुस्कुराते हुए बैठ गई। प्रोफेसर शांडिल्य ने भी गाड़ी की स्टेयरिंग व्हील पर हाथ रखा। गाड़ी स्टार्ट होते ही रातरानी की खुशबू का झोंका गाड़ी में समा गया।

"लगता है नजदीक ही कहीं रातरानी के फूल खिले हैं।"

"एब्सयूलेटली करेक्ट, इसके पहले कि मैं पूछूं कि आपने खुद को क्रांतिकारी क्यों कहा, बता दूं कि मिस्टर रॉबर्ट आप भी सुन रहे हैं न? यूं तो लखनऊ नवाबों का शहर है। नवाबी ठाठ बाट वाले बटर चिकन, मुर्ग मुसल्लम, शामी कबाब, रुमाली रोटी जैसा मुगलई खाना सर्व करने वाले कई रेस्तरां हैं। पर मैं आपको जहाँ ले जा रहा हूँ वह एक बढ़िया हैंग आउट स्पॉट है। रॉयल स्काई रेस्तरां। लखनऊ का सबसे बेहतरीन वेज यानी शाकाहार रेस्टोरेंट है। मिस्टर रॉबर्ट वेज चलेगा न?"

"क्यों नहीं प्रोफेसर, मुझे वेज खाना बहुत पसंद है।"

"ये हुई न बात। हाँ तो मिस बिलिंग बताइए आपने खुद को क्रांतिकारी क्यों कहा?"

"प्रोफेसर ...लव इज़ रेवेल्यूशन। प्रेम ही क्रांति है। मानते हैं न आप? क्रांति और प्रेम अलग होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं। बल्कि दोनों एक ही प्रक्रिया के दो सम्बोधन हैं।" "वाह इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं था। मुझे लगता था क्रांति करने वाले प्रेम नहीं करते। क्योंकि क्रांति में अव्यवस्था के प्रति विस्फोट की भावना होती है और प्रेम में विस्फोट कहाँ। वह तो निर्मल बहता झरना है।"

कैथरीन सीधी होकर बैठ गई। उसकी पसंद का टॉपिक छेड़ दिया था प्रोफेसर शांडिल्य ने।

"आप प्रेम को व्यक्तिगत स्तर पर देख रहे हैं प्रोफेसर, प्रेम तो जीवन और मनुष्यता का विवेकशील आधार है। क्रांति के बीज उसी में छुपे होते हैं। वहीं से अव्यवस्था और तानाशाही के विरोध की ताकत मिलती है और वहीं से प्रेम करने वाले अमर हो जाते हैं। वे दुनिया से चले जाते हैं और साहित्यकार उनकी प्रेमगाथा शब्दों में ढालते हैं।"

"ग्रेट मिस बिलिंग, ज्ञान का खजाना है आपके पास। दो दिन में कुछ हासिल नहीं होगा। सिडनी आना पड़ेगा।"

"वेलकम प्रोफेसर, ज्ञान के लेन देन का कार्य चलते रहना चाहिए। रॉयल स्काई रेस्तरां आ गया था। प्रोफेसर शांडिल्य ने एक दिन पहले ही टेबल बुक करा लिया था। मेन बैरा उन्हें अदब से टेबल तक लिवा लाया। मद्धम रोशनी में होटल रंग महल-सा लग रहा था। व्यंजनों की खुशबू, मन मोह रही थी। हल्का-हल्का संगीत माहौल को तरंगित किए था। कैथरीन और रॉबर्ट ने व्यंजनों का आर्डर प्रोफेसर शांडिल्य की पसंद पर छोड़ दिया। स्टार्टर में पालक गोभी के पकौड़े और वेजिटेबल सूप का ऑर्डर देकर प्रोफेसर शांडिल्य ने कैथरीन की ओर देखा-" अब तो लगभग सभी देशों में भारतीय भोजन प्रचलित हो रहा है। "

"हाँ खासकर उन देशों में जहाँ पर्यटक अधिक जाते हैं।"

रॉबर्ट के कहने पर प्रोफेसर शांडिल्य तपाक से बोले-"मैंने 15 देशों की यात्रा की है। सब जगह मुझे भारतीय भोजन मिला।"

बैरे द्वारा डिनर में परोसे व्यंजनों को खाते हुए रॉबर्ट ने कहा, उसने इतना स्वादिष्ट वेज कभी नहीं खाया।

"आपकी पसंद लाजवाब है प्रोफेसर।"

" शुक्रिया जनाब, प्रोफेसर ने मुस्कुराते हुए कहा।

डिनर लेते हुए बातों-बातों में काफी समय हो चुका था। कैथरीन को होटल छोड़ते हुए प्रोफेसर शांडिल्य ने मगही पान भी खिलाए। जिसे पहली बार कैथरीन ने खाया था। बेहद स्वादिष्ट पान था।

"जल्दी-जल्दी मत खाइए, धीरे-धीरे इसके स्वाद और रस का आनंद लीजिए। तो मिलते हैं कल सुबह 11: 00 बजे, गुड नाइट।" "थैंक्स फॉर डिनर" रॉबर्ट ने हाथ मिलाते हुए कहा।

अपने कमरे का लैच खोलते हुए बेचैन थी कैथरीन। उसने तुरंत नरोत्तम को फोन लगाया। फिर तुरंत डिस्कनेक्ट भी कर दिया। विश्राम का वक्त है नरोत्तम का। वह तो 8: 00 बजे सुबह तक भी सोती रह सकती है पर नरोत्तम को तो रात्रि 3: 00 बजे उठना होता है। लेकिन नरोत्तम सोया नहीं था। उसने कॉल बैक किया-"हाँ कैथरीन।"

"अरे, तुम पहले से जाग रहे थे या मेरे फोन से जागे।"

"हम तो हमेशा जागृत ही रहते हैं देवी, शरीर सोता है, मन जागता है। जागते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड का भ्रमण करता है। देखता है इस संसार में सब सुख के पीछे भाग रहे हैं पर वास्तव में कोई सुखी है ही नहीं। अपनी कहो, कैसा गुजरा आज का दिन? मुलाकात हुई प्रोफेसर शांडिल्य से?"

"हाँ हुई न, होनी ही थी। उन्हीं से मिलने तो लखनऊ आई हूँ। अब कल उनके साथ लाइब्रेरी जाना है। वैसे सिडनी की स्टेट लाइब्रेरी भी बहुत समृद्ध है। बल्कि ऑस्ट्रेलिया और ओशनिया के कई महत्त्वपूर्ण दस्तावेज वहाँ मौजूद हैं। 2 मिलियन से अधिक पुस्तकें, माइक्रोफॉर्म, फोटो, समाचार पत्र, नक्शे, परियोजनाएँ, पांडुलिपियाँ और अन्य वस्तुओं सहित 50 लाख आइटम मौजूद हैं।"

नरोत्तम जानता है कि कैथरीन को अपने देश से बहुत प्रेम है। वह उसे किसी भी तरह कमतर नहीं आंकना चाहती।

"पर मुझे जिन आध्यात्मिक ग्रंथों को पढ़ना है वे वहाँ नहीं हैं। लाइब्रेरी के मैनेजर ने आर्डर दिया था पर पहुँचे नहीं अभी तक।" "लखनऊ के पुस्तकालय में मिल जाए तो अच्छा है वरना दिल्ली मुंबई जाना पड़ेगा तुम्हें।"

"देखती हूँ, इस ट्रिप में तो संभव नहीं। हमें परसों लौटना है। पता नहीं फिर कब मुलाकात होगी तुमसे।"

"जब भोले भंडारी शिव जी बुलाएंगे। अब सो जाओ। रात बहुत हो गई। कल का दिन थकान भरा होगा तुम्हारा। शुभ रात्रि।"

फोन का स्विच ऑफ करते हुए कैथरीन लेट गई। अब किसी का फोन अटेंड नहीं करना है। सोचते हुए वह सोने की कोशिश करने लगी।

प्रोफेसर शांडिल्य कैथरीन को जिस पुस्तकालय में ले गए वहाँ आध्यात्मिक ग्रंथों पुस्तकों का भंडार कम था। विभिन्न काल जैसे भक्तिकाल, रीतिकाल, छायावाद के लेखकों की पुस्तकें अधिक थीं। लिहाज़ा प्रोफेसर शांडिल्य ने अपने निजी पुस्तकालय से कुछ पुस्तकें उपलब्ध करा दीं। कुछ के नाम लिखवा दिए जिन्हें वह सिडनी पहुँचकर ऑर्डर कर सकती है। नागा साधुओं से सम्बंधित किताबें कम ही उपलब्ध हुईं।

कैथरीन ने आद्या को तैयार रहने का कह दिया था। वह 12 बजे के आसपास कभी भी आ सकती है उसे लेने। आद्या तैयार ही थी। प्रवीण के चाचा जी ने चाय पीने का आग्रह किया। चाय के बहाने उसने प्रवीण की विशाल हवेली भी अंदर से देख ली। एंटीक वस्तुओं से सजा था हर कमरा। हवेली के कंपाउंड में आम, जामुन, इमली, पीपल के झाड़ लगे थे और एक बड़ा-सा स्विमिंग पूल नुमा कुंड था जो सूखा था और सूखे टूटे पत्तों से भरा था। भले ही अतीत के घाव पूरी हवेली की दीवारों पर थे लेकिन वह घाव भी समृद्धि के गवाह थे।

चाय के साथ गर्म समोसे और गुलाबजामुन थे। आद्या अंदर के कमरे से अटैची ले आई जिसे रॉबर्ट कार की डिक्की में रखने ले गया। औपचारिक बातचीत करते हुए लगभग 1 घंटे बाद वे लखनऊ सिटी टूर पर निकले।

आद्या से मिलकर प्रोफेसर शांडिल्य बहुत खुश हुए। बेगम हजरत महल पार्क की ओर गाड़ी ड्राइव करते हुए उन्होंने आद्या से कहा-

"वैसे तो लखनऊ एक दिन में नहीं घूमा जा सकता पर मैं तुम्हें मोती महल और गोमती नदी जरूर दिखाऊंगा। फिर चलेंगे रॉयल कैफे जहाँ की बास्केट चाट फेमस है।" "यानी चाट से भरी बास्केट?"

"हाँ आद्या, आलू, दही, बेसन के सेव और चटनी के साथ फल भी होते हैं उसमें।"

"लेकिन मुझे आलू की टिक्की, मटर चाट, दही बड़े और गोलगप्पे खाने हैं और फिर मटका कुल्फी।" "अरे, तुम्हें तो सब नाम पता हो गए। चलो, शाम को ऐसी चाट खाने का मजा ही कुछ और है।" "आज डिनर कैंसिल।"

आद्या के कहने पर सब हंस पड़े। लखनऊ के ऐतिहासिक महल, इमामबाड़े, पार्क घूमते हुए और गोमती के किनारे आधा घंटा बिताकर, चटपटी चाट का मजा लेते हुए कब रात हो गई पता ही नहीं चला।

कैथरीन से विदा का समय आ गया था। प्रोफेसर शांडिल्य उदास दिख रहे थे।

"क्या हुआ प्रोफेसर?"

" नहीं कुछ नहीं, मिस बिलिंग। जिसके जीवन में तनहाई ही हो वह...

"क्यों? मिसेज शांडिल्य?"

"अब वह कहाँ। 4 साल हो गए उन्हें गए। मैं शहर में और ज़िन्दगी में बिल्कुल एकाकी हूँ।"

"सॉरी, मुझे पता नहीं था।"

कैथरीन ने अफसोस जताते हुए कहा।

"आप आईं, 2 दिन चहल-पहल रही। आद्या ने मन मोह लिया। इसे छोड़ जाओ मेरे पास।"

"अंकल आप चलिए हमारे साथ सिडनी। हमारा फॉर्म हाउस आपको पसंद आएगा। ममा को भी आपसे किताबों आदि में मदद मिलेगी।"

"हाँ आइडिया अच्छा है। सोचूँगा इस बारे में।"

होटल आ गया था। कैथरीन ने प्रोफेसर शांडिल्य को हंसाने के उद्देश्य से कहा-

"मगही पान तो खिलाया नहीं।" प्रोफेसर ने फौरन गाड़ी मोड़ी। पानवाला उन्हें देखते ही पान लगाने लगा।

"थोड़े पान पार्सल करवा लेते हैं। कल भी खाना।"

पान वाले ने बड़े से तेंदू पत्ते में पान के बीड़े रखकर पार्सल तैयार किया।

होटल के रिसेप्शन से चाबी लेते हुए और प्रोफेसर शांडिल्य को जाते देखते हुए कैथरीन का मन भर आया।