कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया / भाग - 6 / संतोष श्रीवास्तव

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दिन भर कैथरीन भोजबासा के जंगलों में भटकती रही। सभी वृक्ष भोजपत्र के... ओह यह तो बर्च है। वह पहचानती है इन्हें। उसके देश में भी भोजपत्र के वृक्ष हैं। वह एक वृक्ष के तने के पास गई। जिसमें से कागज की रीम की तरह छाल निकल रही थी। पतली, भूरी और सफेद। तो यही है भोजपत्र। जिस पर भारत के ऋषि मुनि ग्रंथों, पुराणों की रचना करते थे। इस पर लिखी पांडुलिपियाँ उसने भारत के कुछ पुस्तकालयों में देखी हैं।

वृषभानु पंडित ने भी उसे इसी तरह की पांडुलिपि दिखाई थी। जब वह उनसे संस्कृत सीख रही थी।

वो भी क्या दिन थे। मौसम की दस्तक से खिले-खिले से दिन। उस के फॉर्म हाउस में पच्चीस आड़ूओं के पेड़ थे जिन पर मौसम में फल लदे रहते थे। कुछ चैरी के पेड़ भी थे जिनकी डालियों पर जब लाल चैरी के फल आते तो माहौल मानो अनुरागमय हो जाता। फॉर्म हाउस में उसका सुंदर बंगला आकर्षण का केंद्र था। अमीर माता-पिता की इकलौती बेटी। जो चाहा मिला। लेकिन अमीरों जैसी शान शौकत से वह कोसों दूर थी। प्रकृति के सुंदर माहौल में अध्ययनरत रहना उसका शौक ही नहीं बल्कि जुनून था। यहीं गोल्फ खेलते हुए उसकी मुलाकात भारतीय युवक प्रवीण से हुई जो लखनऊ से सिडनी व्यापार के सिलसिले में आया और यहीं बस गया था। प्रवीण से उसकी मुलाकात गोल्फ के मैदान में हुई थी। एक दिन खेलते हुए अचानक बूंदाबांदी शुरू हो गई।

"चलिए मेरे फॉर्म हाउस, भीगेंगे भी नहीं और कॉफी का लुत्फ भी लेंगे।"

"व्हाय नॉट, गुड आइडिया।"

प्रवीण के चेहरे पर मुस्कान और विस्मय दोनों था। कैथरीन बहुत ही अच्छी हिन्दी बोल रही थी।

उसने कहा-"इतने दिनों से गोल्फ खेलते हुए आखिर हम परिचित तो हो ही गए हैं। सो लेट अस गो।" कैथरीन को प्रवीण की बेतकल्लुफी पसंद आई। वह उसे फॉर्म हाउस के अपने बंगले में ले आई। ड्राइंग रूम के टेबल पर ढेर सारी किताबें थीं।

"बहुत शौकीन हैं आप पढ़ने की।" "कलम और किताब दोनों से प्यार करती हूँ। जिस दिन पढ़ती नहीं उस दिन लगता है जीवन नहीं जिया।"

"ओ ग्रेट, आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मेरी अब तक दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। एक मेरे देश भारत की संस्कृति और इतिहास की दूसरी महाभारत के चरित्र कर्ण के जीवन पर लिखी।"

"ओ माय गॉड, यानी कि आप बिजनेसमैन भी हैं और राइटर भी!"

"विरोधाभास लगा न?"

"नहीं, राइटर होना कोई प्रोफेशन थोड़ी है कि दूसरे प्रोफेशन के संग किया न जा सके।"

कैथरीन ने चमकती आँखों से प्रवीण की ओर देखा। गोरे रंग और भूरी आँखों वाला हैंडसम युवक। चेहरे पर की दाढ़ी जो ठोड़ी और चेहरे तक ही सीमित थी उसके चेहरे को सौम्यता प्रदान कर रही थी। चश्मे में से झाँकती आँखें जैसे दुनिया को जान लेने की जिद किए थीं।

"व्हाट अ को-इंसिडेंट, मैं भी लेखिका हूँ। हालांकि अभी तक मेरी कोई किताब प्रकाशित नहीं हुई है।"

नौकरानी कॉफी और अनन्नास की कुकीज ले आई थी। ट्रे रखने के लिए टेबल से किताबें हटानी पड़ीं। "सचमुच भूख लगी है।" कहते हुए प्रवीण ने कुकीज उठा ली और कॉफी का प्याला हाथ में थाम लिया-"ईश्वर ने सबके मिलने का दिन तय कर रखा है। कहाँ मैं भारतीय और आप ऑस्ट्रेलियन।" "और हमें मिलना था गोल्फ के मैदान में और संवाद करना था कॉफी के गर्म प्यालो के बीच।"

दोनों हँसने लगे। विदा लेते हुए प्रवीण ने कैथरीन से किताबें मांगी।

"पढ़ कर लौटाऊँगा।"

"श्योर।"

वह प्रवीण को फॉर्म हाउस के बाहर खड़ी उसकी गाड़ी तक छोड़ने आई।


कैथरीन की ममा कपड़ों की डिजाइनिंग में बहुत रुचि रखती थीं। उसके डैड ने ममा के लिए एक बुटीक भी खुलवा दिया था जिसमें वह भी कॉलेज से फ्री होकर जाया करती। कॉलेज में वह दर्शनशास्त्र की लेक्चरर थी। प्रवीण के साथ उसकी जैसे-जैसे मुलाकातें बढ़ीं नज़दीकियाँ भी बढ़ती गईं। हर वीकेंड उसका फॉर्म हाउस में प्रवीण के साथ बीतने लगा। कैथरीन के ममा डैड कभी उसकी स्वतंत्रता में बाधक नहीं बने। काफी पहले उसने ममा से अपनी मंशा जाहिर कर दी थी कि वह शादी नहीं करना चाहती। कॉलेज में पढ़ाते हुए वह देशाटन के दौरान विश्व के विभिन्न धर्मों को जानना चाहती है। उसकी गंभीरता और अध्ययनशीलता ने ममा को भी संशय मुक्त रखा। फिर भी एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया

"कैथ, क्या तुम्हारे जीवन में कोई पुरुष है जिसे तुम प्यार करती हो और जिसकी वजह से तुम शादी से इंकार कर रही हो?"

"नहीं ममा, ऐसा होता तो क्या मैं उस युवक से शादी नहीं कर लेती। कोई रुकावट तो नहीं थी न।"

"ओ" ममा अपनी बेटी के सुलझे विचारों से हतप्रभ थीं।

डैड भी मुस्कुराते हुए कहते-"कैथरीन दांपत्य जीवन नहीं जीना चाहती। वह तो पहाड़ी झरना है। मुक्त, रागमय और आकर्षक।"

डैड की यही सुंदर सोच तो उसकी लेखनी में आई है। ममा बहुत व्यावहारिक थीं। वे केवल अपनी बुटीक पर ही ध्यान देती थीं। कैथरीन इन दोनों को बैलेंस कर लेती। हालाँकि दो विपरीत दिशाएँ थीं जिन पर उसे अपने डैड और ममा को खुश रखते हुए चलना था पर फिर भी वह कर लेती। उसे लगता लिखना उसका शौक है, जुनून है, मन की संतुष्टि है और बुटीक ममा के प्रोफेशन में साथ देना है।

कैथरीन विभिन्न धर्मों की किताबें अपने खाली समय में पढ़ती। उसे सबसे अधिक आकर्षित किया है भारतीय धर्म हिंदू आध्यात्म ने लेकिन हिंदू आध्यात्मिक ग्रंथों को पढ़ने के लिए उसे संस्कृत सीखना होगा। अतः वह अपने लिए एक संस्कृत अध्यापक की तलाश करने लगी। जो अधिक कठिन न था क्योंकि सिडनी तथा ऑस्ट्रेलिया के अन्य शहरों में भारतीय अधिक तादाद में बसे हैं। हिंदू, सिख, ईसाई, भारतीय ही क्यों बल्कि हिब्रू, हांगकांगी, सिंगापुरी, जापानी, चीनी, यूरोपियन मुसलमान ...सच पूछा जाए तो ऑस्ट्रेलिया की कोई अपनी अलग पहचान नहीं है। अंग्रेजों ने विभिन्न देशों से कैदी लाकर रखे थे।

फिर जैसे-जैसे देश आजाद होता गया कैदी अपने देश लौटते गए कुछ यहीं बस गए। उन्होंने इस देश को जीने लायक बनाया, बसाया। इसलिए यहाँ बोलचाल, रहन-सहन, स्थापत्य में, खानपान में एक मिलीजुली सभ्यता है। अपनी सभ्यता न होने की वजह से अब जो ऑस्ट्रेलियन सभ्यता कहलाती है वह एक स्वतंत्र सभ्यता है। जिसमें विभिन्न देशों का हाथ है।


प्रवीण नाटक की टिकट ले आया था। उसको नाटकों का बहुत शौक था।

"कॉलेज के दिनों में खूब नाटक खेले अब बिजनेस की वजह से समय नहीं मिलता।"

"कौन-सा नाटक है?"

"एक सदी पहले के इतिहास को नाट्य मंडली के युवा कलाकार एक महीने तक मंचित करेंगे। अंग्रेजों की गुलामी और अत्याचारों पर केंद्रित नाटक।"

"सच में बहुत अत्याचार किया अंग्रेजो ने।"

प्रवीण अचानक आप से तुम पर उतर आया और प्यार भरा आग्रह करने लगा।

"कैथरीन तुम वह नीली पोशाक पहनना। जिस पर हल्के गुलाबी फूल हैं।"

"अरे आपको कैसे पता इस पोशाक के बारे में।"

कैथरीन ने आश्चर्य से पूछा।

आज से 6 महीने पहले हमारी पहली आत्मीय मुलाकात के दिन तुमने वही पोशाक पहनी थी। तब से तो..."

"तब से तो क्या प्रवीण?"

"हम आपके दीवाने हो गए।" कहते हुए कैथरीन के नजदीक आकर उसका चेहरा हाथों में भरकर उसे हलके से चूम लिया प्रवीण ने। कैथरीन के शरीर में मानो बिजली-सी कौंध गई। इस अहसास से वह सर्वथा अपरिचित थी। एक मीठे से सुरूर में उसकी आँखें मुंद गईं। वह धीमे से बोली- "प्रवीण"

"नहीं कुछ मत कहो। सिर्फ महसूस करो, डूब जाओ इस लम्हे में, हमारा अब अपने आप पर बस नहीं रहा।" प्रवीण ने उसे प्रगाढ़ आलिंगन में भर लिया। कैथरीन काँप रही थी। लरज रही थी। जैसे प्रवीण घना दरख़्त है और वह उससे लिपटती काँपती लता।

2 घंटे बाद वे थिएटर में थे। शो शुरू होने ही वाला था। नीली पोशाक में कैथरीन नीलपरी-सी लग रही थी। उसके गले में मोतियों की माला थी। कानों में मोती के इयररिंग्स। उसका हाथ प्रवीण के सख्त हाथ में खरगोश-सा दुबका था। पर्दा उठा। मंच पर उन्नीसवीं सदी लौट आई थी। कलाकारों ने डूब कर अभिनय किया था। जब नाटक के नायक को फाँसी पर चढ़ाया जा रहा था तो कैथरीन के बाजू में बैठी तेईस वर्षीया लड़की सिसक पड़ी थी। जेल में वह अंडासेल......अंतिम प्रार्थना कराता पादरी......बेड़ियों से जकड़े पाँव लकड़ी के फर्श पर चर्रमर्र, झनझन करते और संग-संग दौड़ता मशालची......जलती मशालों ने रूह कँपा देने वाला दृश्य खींच दिया था। वह सम्मोहन में जकड़ी थी।

थिएटर से बाहर निकलकर भी दोनों नाटक के बारे में ही बात करते रहे। फिर उन्होंने भारतीय रेस्त्रां में डिनर लिया। कैथरीन को भारतीय भोजन बहुत पसंद है। विभिन्न मसालों से बनी लजीज चटपटी सब्जियाँ, दाल मक्खनी, तड़के वाली पीली दाल, पापड़, अचार, पतली-पतली घी चुपड़ी रो, मीठे में उन्होंने मखाने की खीर ऑर्डर की।

" मैं ममा के लिए डिनर पैक करवा लेती हूँ। डैड मेलबॉर्न गए हैं टूर पर। बुटीक से वे रात 9 बजे लौटती हैं और फ्रिज में रखा ठंडा खाना...

"ठीक है मैं आर्डर कर देता हूँ। तुम्हारी ममा के बुटीक के खूब चर्चे हैं। शेफालिका और जास्मिन को उनके बूटीक के कपड़े बहुत पसंद आते हैं।"

"शेफालिका और जास्मिन कौन?"

तब तक बैरा बिल ले आया था।

बिल पर करते हुए प्रवीण ने कहा "तुम्हें संस्कृत टीचर चाहिए न वृषभानु पंडित पढ़ा देंगे तुम्हें। वह संस्कृत के विद्वान हैं। यहाँ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।"

"वाह, यह तो बढ़िया खबर है।" कैथरीन ने खुश होकर कहा। शेफालिका और जास्मिन की बात आई गई हो गई।

अगले ही दिन प्रवीण, वृषभानु पंडित और कैथरीन रेस्त्रां में कॉफी पी रहे थे। शाम के 6 बजे थे। दुकाने बंद थीं। शाम 6 बजे सारे बाज़ार बंद कर देने का सरकारी आदेश था। रेस्तरां खुले थे। सूरज की किरणें दुकानों से लगे फुटपाथ पर कुर्सियों में बैठे चाय नाश्ता करते बतियाते लोगों को रोशन किए थीं। प्रवीण को सड़क की ओर खुलने वाली खिड़की से लगी टेबल पर ही कॉफी पीना अच्छा लगता है। कैथरीन का साथ हो तो क्या कहने। लगातार छह महीने से हर वीकेंड कैथरिन के साथ गुजारना उसे उसके नजदीक लाता गया। अब वे गोल्फ़ कम खेलते थे कैथरीन के फॉर्म हाउस में समय ज्यादा गुजारते थे। प्रवीण के मन में कैथरीन कैसे समाती गई उसे पता ही नहीं चला। अपनी जिंदगी की हकीकत वह कैसे बताए? कैसे बताए कि वह शादीशुदा है। शेफालिका उसकी बीवी और जास्मिन बेटी है। वह देख रहा था कि कैथरीन की नजर खिड़की के बाहर डिवाइडर पर बनी क्यारियों में घास जैसी पत्तियों वाले झुरमुट और उन पर खिले लंबी डंडी वाले सफेद फूल पर थी। तेज हवा में सरगोशियाँ करती नीलगिरी की

डालियाँ... खजूर अकेला, अपने में मगन योगी सा। कॉफी टेबल पर सर्व हो चुकी थी। साथ में फ्रेंच फ्राई भी

"कैथरीन ये हैं मिस्टर वृषभानु पंडित, भारतीय हैं। भारत में उज्जैन निवासी।"

"लेकिन अब सिडनी निवासी। पिछले 15 वर्षों से यहाँ हूँ। एक युग जहाँ निवास करते हो गए तो नागरिकता बदल जाती है। तो आप संस्कृत सीखना चाहती हैं।" वृषभानू पंडित कैथरीन से मुखातिब हुए।

"जी ... ताकि भारतीय आध्यात्मिक ग्रंथों को पढ़ सकूँ।" "लेकिन वह तो हिन्दी में भी उपलब्ध हैं। आपकी हिन्दी तो बहुत अच्छी है।"

"कैथरीन लेखिका है वृषभानु जी, हिन्दी अंग्रेजी दोनों पर इनका समान अधिकार है।"

"वाह किस नाम से लिखती हैं आप?"

"कैथरीन बिलिंग, वृषभानु जी, मुझे अनुवाद नहीं पढ़ना है। मैं ग्रंथों को ओरिजिनल रूप में पढ़ना चाहती हूँ।"

"बहुत अच्छी बात है। कल से ही शुरु कर देते हैं। मेरा घर प्रवीण के घर से थोड़ी ही दूरी पर है। ये ले आएँगे आपको मेरे घर।"

कैथरीन को संस्कृत का अध्यापक मिल गया इस बात से वह बहुत खुश थी।

"जी कभी आपके घर और वीकेंड में मेरे फॉर्म हाउस पर।"

रात के 8 बज रहे थे। सूरज अभी भी चमक रहा था। कैथरीन को प्रवीण अपनी गाड़ी से उसके घर छोड़ने आया। साथ में वृषभानु भी थे। ऑस्ट्रेलिया में तो सुरमई शाम होती ही नहीं। 9 बजे सूरज झट से डूब जाता है और अँधेरा छा जाता है।

"सूरज ऑस्ट्रेलिया वासियों की काम के प्रति मेहनत देखता है न इसलिए वह भी कर्मरत रहता है। देर से अस्त होता है और सुबह जल्दी निकलता है।"

"इसलिए तो हमारा देश तरक्की के शिखर पर है।"

कैथरीन ने गर्व से कहा।

"बहुत बहुत शुक्रिया प्रवीण, सर से मिलवाने के लिए। कल आ जाइए आप फॉर्महाउस में प्रवीण के संग।"

"ठीक है हम दिन में 12 बजे आएंगे।"

प्रवीण ने मानो वृषभानु पंडित की स्वीकृति स्वयं ही जता दी। कैथरीन का घर आ चुका था।

"शुभ रात्रि"

और गेट खोलकर वह बगीचे में लगे मद्धम रोशनी के लैंप के उजाले में समा गई। कार मोड़ते

हुए प्रवीण को लगा जैसे वह भी कैथरीन के संग ही चला गया और यह जो कार ड्राइव करता प्रवीण है यह आधा अधूरा ... बहुत गमगीन से खयालात उसके वजूद से टकराते रहे। वृषभानू पंडित के घर तक दोनों खामोश रहे। घर के सामने उतरते हुए वृषभानु पंडित ने कहा-"कल मैं 11 बजे तैयार मिलूँगा। एक घँटा तो लगेगा कैथरीन के फॉर्म हाउस पर पहुँचते।"

"जी, मिलते हैं सुबह। गुड नाइट।"


कैथरीन संस्कृत सीखने लगी बहुत जल्द वृषभानु पंडित के दिए वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद, श्लोक आदि के सही उच्चारण और उन्हें कंठस्थ करने में माहिर हो गई। उसकी लगन शीलता, विषय पर पकड़ आदि से बहुत प्रभावित हैं वृषभानु पंडित। जहाँ एक ओर कैथरीन को संस्कृत सीखने पढ़ने में आनंद आ रहा था वहीं दूसरी ओर प्रवीण इस ऊहापोह में था कि अपनी विवाहित जिंदगी के बारे में कैसे बताए कैथरीन को। जबकि वह उसके साथ प्रेम सम्बंधों को लेकर काफी आगे बढ़ चुका है। अब तो लौटना भी मुश्किल है लेकिन बताना भी जरूरी है। आज तो हिम्मत कर ही लेगा सोचकर जब वह फॉर्म हाउस में पहुँचा तो वृषभानु पंडित उसे गीता के श्लोक समझा रहे थे।

"आइए प्रवीण जी बस 15 मिनट और।" कहते हुए वे पूर्ववत श्लोक समझाने लगे। प्रवीण ने बाधा नहीं डाली। बस इतना कहा-"आप कंटिन्यू रखिए तब तक मैं कॉफी बना लेता हूँ।"

कैथरीन ने चमकती आँखों से उसे देखा और वृषभानु पंडित को ध्यान से सुनने लगी। किचन में नौकरानी मौजूद थी और केतली में कॉफी का पानी उबाल रही थी।

"नाश्ते में क्या है?"

"आप बताइए, बना देती हूँ।"

वह अलमारी खोलकर देखने लगा। जिसमें नाश्ते के बहुत सारे पैकेट मौजूद थे।

"कुछ गरम हो तो बेहतर है।" वेजिटेबल कटलेट बना लेते हैं। "" जी कटलेट का मसाला भी है। "" ठीक है बना लो। "

अब किचन में उसका काम नहीं था। वृषभानू पंडित भी क्लास खत्म कर चुके थे।

"ज्यादा से ज्यादा 2 महीने और आना पड़ेगा। कैथरीन ने बहुत जल्दी कवर किया है।"

"मुझे पता था यह जल्दी सीख लेगी। विदुषी है कैथरीन, तेज़ विल पावर आत्मविश्वास की।"

"बस बस ज्यादा तारीफ मत करिए। वृषभानु सर पढ़ाते भी तो बहुत अच्छा है।"

कैथरीन ने कहा और नौकरानी की लाई हुई कॉफी प्यालों में उंडेलने लगी। कॉफी के बाद वृषभानू पंडित चले गए। नौकरानी भी काम खत्म कर चली गई।

प्रवीण ने हिम्मत कर कहा-"आज मैं तुम्हें अपने घर ले जाना चाहता हूँ। डिनर के लिए।"

"अरे अचानक ही। कोई खुशखबरी है क्या?"

"नहीं" कहते हुए प्रवीण की आँखें झुक गईं। वह हिम्मत जुटाने लगा, शक्ति बटोरने लगा, शंकाओं से घिरने भी लगा। साल भर का साथ कहीं एक झटके में छूट न जाए। कहीं कैथरीन बिखर न जाए। बिखरेगी तो अवश्य। इतना बड़ा धोखा!

"फिर क्या बात है, बताओ।"

अधीर होकर कैथरीन ने पूछा।

"अपनी पत्नी और बेटी से मिलवाने ले चल रहा हूँ कैथरीन।"

पल भर को कमरे में सन्नाटा छा गया। पल से मिनट...मिनट की संख्या बढ़ती उसके पहले ही प्रवीण ने शक्ति बटोरी।

"शेफालिका मेरी पत्नी है और जास्मिन बेटी।"

"अरे वाह बहुत सुंदर नाम है जास्मिन। ज़रूर चलूंगी डिनर पर तुम्हारे घर। वही नीली पोशाक पहन लूँ। जो तुम्हें बहुत पसंद है जिसमें मैं तुम्हें नीलपरी-सी दिखती हूँ।"

प्रवीण को लगा कैथरीन उसका मजाक उड़ा रही है। बता रही है कि देखो कैसे तुमने अपनी बातों के इंद्रजाल में फँसाया मुझे। लेकिन...लेकिन कैथरीन ने उसे प्रगाढ़ आलिंगन में समेट लिया। शक्तिहीन बिखर गए प्रवीण को।

"प्रवीण तुम शादीशुदा नहीं भी होते तो भी मैं तुमसे शादी नहीं करती क्योंकि शादी नहीं करने का निर्णय मैंने तुमसे मिलने के पहले ही ले लिया था।"

प्रवीण ने चकित होकर अपनी इस असाधारण महबूबा को देखा।

"रही बात यह कि इस बात को सुनकर मैं तुम्हें छोड़ दूँगी, ऐसा नहीं होगा। हमने प्यार किया है। हम बिना किसी रिश्ते के प्यार निभाएंगे हमारा प्यार बस प्यार होगा।"

प्रवीण भीतर तक पिघल गया पर उसने मन की स्थिति प्रगट नहीं होने दी।

लगभग एक घंटे बाद प्रकृतिस्थ होकर वह कैथरीन को लेकर अपने घर आया। गुलाबी पोशाक में कैथरीन निखर उठी थी जैसे डाली पर खिला ताजा गुलाब।

शायद धूप को अपने में समेटे बादलों का जादू था कि प्रवीण के घर का गलियारा कैथरीन को किसी महल के सजे धजे गलियारे से कम नहीं लगा। गलियारे के हॉल की ओर मुड़ते मोड़ पर बेंत की कुर्सी पर एक बूढ़ी औरत क्रोशिया पर कुछ बुन रही थी। परवेज ने परिचय कराया-"मेरी माँ"

फिर उनकी ओर मुखातिब हुआ-"अम्मा ये कैथरीन हैं। मेरी दोस्त।"

अम्मा ने हँसते हुए स्वागत किया-"आओ बेटी।"

तब तक शेफालिका भी बाहर निकल आई थी। दुबली पतली, बेहद गोरी, बड़ी-बड़ी काली आँखें मानो कुछ तलाशती-सी। परिचय नहीं कराना पड़ा-"आइए आपका ही इंतजार कर रहे थे। कैथरीन ने उसे गले से लगा लिया-" ऐसा लग रहा है जैसे बरसों से जानते हों हम एक दूसरे को। "

तभी जास्मिन दौड़ती आई-"हेलो आंटी।"

कैथरीन ने उसे चूम लिया। सभी डाइनिंग टेबल को घेरकर बैठ गए। कैथरीन को लग रहा था जैसे वह इसी घर की सदस्य है और प्रवीण हतप्रभ था कैथरीन की और अपने परिवार की आत्मीयता से। तभी जास्मिन ने प्रवीण के कान में कुछ कहा। प्रवीण झटपट उठा और रिकॉर्ड प्लेयर पर जास्मिन की पसंद का गीत लगा दिया। कमरा संगीत की स्वर लहरियों में गुंजित हो उठा। जास्मीन ठुमक-ठुमक कर नाचने लगी। खिलखिलाने लगी। शेफालिका के किचन से हरे मटर और शिमला मिर्च के पकने की खुशबू आ रही थी। कैथरीन संगीत, नृत्य, खुशबू के एक बोहेमियन एहसास से गुजर रही थी। रूढ़िमुक्त, बेहतरीन परिवार। उसने प्रवीण को लाड़ से देखा। प्रवीण उसी की ओर देख रहा था। कैथरीन ने शरमा कर नजरें झुका लीं।


प्रवीण का फोन था-

"तबीयत कुछ नासाज-सी लग रही है। कुछ दिन काम से अवकाश चाहता हूँ। चलोगी जापुकाय?" कैथरीन तबीयत का सुन विचलित हो गई-"क्या हुआ तुम्हें, प्रवीण कई दिनों से तुम थके-थके से लग रहे हो। इतना काम मत करो कि जान पर बन आए।"

"सब ठीक है। फिर मेरे सारे टेस्ट नॉर्मल आए हैं। बस थोड़ा चेंज चाहता हूँ।"

"शेफालिका और जास्मिन को भी ले चलो।"

"मैंने भी सोचा था लेकिन शेफालिका नहीं जाएगी। अम्मा को उसकी जरूरत है। वे किसी और के हाथ का बना खाना पसंद नहीं करतीं। जास्मीन चलेगी। वह तुम्हारी आशिक हो गई है।"

"अरे वाह, बाप बेटी एक ही राह पर।" उसने हँसते हुए कहा।

वैसे तो ममा ने कभी कैथरीन के आने-जाने, मेलजोल में दखल नहीं दिया। अपनी बेटी को सभी कुंठाओं से मुक्त रखना चाहती हैं। वे जिस अवसाद में है उस अवसाद से उनकी बेटी कभी न गुजरे। बुटीक नहीं होता तो वे पागल हो चुकी होतीं अब तक ...

इस बार प्रवीण के साथ जापूकाय जाने की बात सुनकर वे पूछ बैठीं

"कितना जानती हो तुम प्रवीण को।"

, कैथरीन ने ममा से कुछ नहीं छुपाया।

"वह मेरे दिल में बसता है ममा। हम एक दूसरे के तन मन से हो चुके हैं। हमारे बीच कोई पर्दा नहीं रहा। ममा उसकी बेटी जास्मिन मेरी भी बेटी है। उसका वह प्यारा-सा घर, शेफालिका, अम्मा ...ममा फरिश्ते धरती पर भी हैं।"

" ममा ने कैथरीन को गले से लगा लिया।

"आमीन, तुम्हारा विश्वास बना रहे।"

"और ममा संस्कृत भी मैंने खूब सीख ली है। मुझे हिंदू आध्यात्म में बहुत रुचि है। मौका मिला तो मैं भारत जाऊँगी। देखो मैंने भारत देश के कबीलों पर यह लंबी कविता लिखी है।"

वह दौड़कर कमरे से डायरी ले आई और ममा को कविता पढ़कर सुनाने लगी। खिड़की के बाहर अस्त होते सूरज के बिल्कुल करीब लगता उड़ता हुआ एक काला परिंदा ऐसा लग रहा था जैसे अपनी चोंच में सूरज को दबाए है।


कैथरीन जब प्रवीण के घर पहुँची तो देखा, शेफालिका गाड़ी की डिक्की में खाने-पीने के सामान से भरी डलिया रख रही थी। उसे देखते ही मुस्कुराई-"आओ कैथरीन, मैंने आप लोगों के लिए लंच भी बना कर रख दिया है और नाश्ते का सामान भी है। कॉफी और कोल्ड ड्रिंक भी। बाहर का कुछ मत खाइएगा। प्रवीण के लिए नुकसानदायक होगा।"

कैथरीन मुस्कुराई-"बीवी हो तो आपके जैसी।"

"और इस शरारती को भी तो संभालना है आपको।"

"हाँ शेफालिका केवल जास्मिन को ही नहीं। प्रवीण को भी तो।" और यह कहकर वह खिलखिला कर हँस पड़ी।

मीलों फैले रेन फॉरेस्ट का मजा लेते हुए जब तीनों जापूकाय गाँव पहुँचे तो हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। म्यूजियम के गेट पर तीनों को उतारकर ड्राइवर पार्किंग प्लेस में गाड़ी पार्क करने चला गया। हरी-भरी घाटी की गोद में हज़ारों साल पुरानी अबोर्जिनल संस्कृति को एक आर्ट एन्ड कल्चर म्यूज़ियम में सुरक्षित रखा गया था। म्यूज़ियम की दीवारों पर आदिवासियों की जीवन शैली के रंगीन चित्र टँगे थे।

"तुम्हें कुछ चाहिए जास्मिन क्योंकि म्यूजियम घूमने में करीब 2 घंटे लगेंगे।"

"नो पापा रास्ते भर इतना खाया है बिल्कुल भूख नहीं है। मैं तो म्यूजियम का मजा लूंगी।"

और मौरी आदिवासियों का मुँह से बजाने वाला बाजा जिसे डिडजेरिडू कहते हैं देखकर मचल उठी-"मैं इसे बजाऊँगी।" कैथरीन ने एक बाजा उठाकर उसके मुँह पर नॉब लगाई। वह खुश होकर फूंकने लगी लेकिन आवाज नहीं निकली। उदास होकर उसने नॉब से मुँह हटाया और बाजे पर हाथ फेर कर देखने लगी।

"पापा यह बाजा मैं घर ले जाऊँगी।"

"व्हाय नॉट बेबी।" प्रवीण ने कहा और एक बाजा खरीद लिया। बड़े से हॉल में कल्चरल शो शुरू होने वाला था जिसमें मौरी आदिवासियों का इतिहास दिखाया जाएगा। तीनों कुर्सियों पर आ बैठे। जास्मिन बीच में बैठी। हेडफोन के लिए उसने कैथरीन की ओर देखा। कैथरीन ने हेडफोन लगाकर अंग्रेजी भाषा का बटन दबा दिया। शो को अंग्रेज़ी के अलावा चीनी, जापानी और मलय भाषा के जरिए भी सुना जा सकता है। जिस भाषा का बटन दबाओ सुनाई देने लगता है। इन चार भाषाओं के सैलानी ही शायद यहाँ अधिक संख्या में आते होंगे, सोचा कैथरीन ने।

मंच पर आदिवासियों की उत्पत्ति से लेकर अब तक का इतिहास नाटक के द्वारा लेज़र शो के द्वारा दिखाया जाता है।

नाटक के पात्र भले ही आज के युग के कलाकार हैं लेकिन बहुत अधिक वास्तविक मौरी आदिवासी नज़र आते हैं। नृत्यथियेटर में जाने के लिए एक खूबसूरत लकड़ी का पुल पार करना पड़ा। पुल के नीचे धीमे बहाव वाली नदी की सतह पर कमल जैसे पत्ते तैर रहे थे। भूरे रंग के कछुए और मछलियाँ भी थीं। कभी-कभी कछुए इन पत्तों की सवारी भी कर लेते थे। पूरा जंगल खूब घना, हराभरा और फूलों से युक्त था।

जास्मिन तो इतनी खुश थी कि दौड़-दौड़ कर पुल पर से फूल इकट्ठे करती रही और कैथरीन को देती रही। सचमुच बेहद रोमाँचक था सब कुछ। प्रवीण कितना खुश नजर आ रहा था। बस इसी बात को लेकर कैथरीन कितनी संतुष्टि से भरी थी।

मौरी नृत्य मनोरंजन से भरपूर था। धीरे-धीरे मौरी युग की रफ़्तार में अपना आदिवासियों का चोला त्याग शहरी संस्कृति में शामिल होते गये। सदियों पहले यह इलाका मौरियों का निवास स्थान था। साँवला रंग, स्त्री पुरुष दोनों कमर से घुटनों तक पत्तों को बाँध लेते थे। बाकी शरीर नग्न......चेहरे पर रंग बिरंगी मिट्टी से बनाई धारियाँ। गले, छाती, पीठ पर भी ऐसी ही धारियाँ, हाथों में ज़हर बुझे तीर कमान......भोजन इनका पूरा का पूरा समुद्र और जंगलों पर निर्भर था। जंगली फल, कंद, मूल और समुद्री मछलियाँ, कछुए......केंकड़े सब कच्चा चबा जाते थे। जब यहाँ अंग्रेज़ों का शासन हुआ तो उन्होंने इन्हें बहुत सताया। इन्हें जंगलों में खूब भीतर जाकर रहने पर मजबूर किया। उनके पास बंदूकें थीं। जब तक मौरियों के तीर उन तक पहुँचते, उनकी गोली मौरियों के सीने के पार होती। रक्तरंजित लाश लेकर वे जंगलों में भागने लगते। अंग्रेज़ों ने उनका जीना हराम कर दिया। भोले भाले प्रकृति पुत्र सभ्य दुनिया से डरने लगे। समुद्र पीछे छूट गया, वे जंगल पर ही भोजन के लिए निर्भर रहने लगे। उन्हें लगा अगर सुरक्षित रहना है, भरपेट भोजन करना है तो उन्हें शहरी लोगों जैसा होना पड़ेगा। लेकिन कैसे? ये तो घुमन्तू जनजाति के हैं। एक जगह टिककर कैसे रह सकते हैं? समुद्र इनका देवता है। ये समुद्र में जहाज से भी तेज़ गति से तैर लेते हैं। वायु और अग्नि को शक्ति का प्रतीक मानते हैं। अंध विश्वास इनमें भी फैले हैं। भूत, प्रेत, डायन, चुड़ैल सबको मानते हैं। जंगल में जब आग लगती है तो कहते हैं कि इन पर शैतान का साया है।

मौरियों का इतना गंभीर और मार्मिक इतिहास कलाकारों ने अपने नृत्य के द्वारा बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया। दर्शक झूम उठे। तालियाँ बजती रहीं देर तक। जास्मिन के हाथ ताली बजा-बजा कर लाल हो गए थे। कैथरीन ने उसे रोका और उसके दोनों हाथ पकड़ कर चूम लिए। प्रवीण ने चोर नजरों से कैथरीन को ऐसा करते देख लिया। वह भीतर तक भीग गया "कौन हो कैथरीन तुम, जो मेरे जीवन में एक सुनहरी, गुनगुनी धूप की तरह छा गई हो।"

नाटक के सूत्रधार ने आकर दर्शकों को बताया-

"ऑस्ट्रेलियन सरकार ने मौरी आदिवासियों को अपनी धरोहर मानते हुए उन पर जो अत्याचार विदेशी मुल्क ने किये हैं माफी माँगी है। अब तो ये आदिवासी शहरी हो गये हैं और श्रम से धन कमाने लगे हैं।"

हॉल से बाहर निकलते हुए जैसे सभी मौरी आदिवासियों के अतीत में खोए हुए थे। कैथरीन और प्रवीण भी। जास्मिन पुल की रेलिंग पकड़कर हाथ को ऐसे फिसलाती हुई चल रही थी जैसे उसके हाथ में कोई छोटी-सी चाबी से चलने वाली कार हो।

बारिश थम गई थी। जापूकाय गाँव में ही एक हरी घास का लम्बा चौड़ा मैदान है। लकड़ी की फेंसिंग से मैदान घिरा है जिसमें घोड़े चर रहे थे। ये घोड़े सैलानियों से धन कमाने का साधन हैं। मैदान के सामने लकड़ी से बना खूब बड़ा कच्चे फर्श का हॉल है। हॉल में गड़ी हुई लम्बी-लम्बी बेंचें, लम्बे-लम्बे टेबिल। हॉल से लगे कमरे में चाय, कॉफी, नाश्ता बनाया जाता है। सैलानी आते हैं, घोड़े की सवारी या ए. टी. व्ही। राइड करते हैं जो कि स्कूटरनुमा चार पहियों का काले लाल रंग का वाहन है। जो रेत पर भी चलता है, घास पर भी, ऊबड़ खाबड़ ज़मीन पर भी इसीलिए इसे 'ऑल टरेन व्हैकल' कहते हैं। राइड के बाद मौरी आदिवासी इन्हें चाय कॉफी पिलाते हैं। नाश्ता कराते हैं।

कैथरीन को शेफालिका की हिदायत याद आ गई कि बाहर का कुछ भी नहीं खाना, परवेज अंडर ट्रीटमेंट हैं। नाश्ते के लिए मना करने पर आदिवासी लड़कियाँ पेड़ पर से पके आम तोड़ लाईं। लड़कियाँ यहाँ दिन भर काम में जुटी रहती हैं। कभी सैलानियों के लिए केक, पेस्ट्री, कूकीज, सैंडविच बनाती हैं। कभी घोड़े की जीन सीती हैं। घोड़े की जीन सीते हुए उन्होंने मौरी गीत भी गाकर सुनाया। कबीलों में गाया जाने वाला यह गीत बसंत में गाया जाता है, जब आमों पर बौर आती हैं।

लौटते समय जास्मिन सो गई थी। दिन भर शरारत करके वह बहुत थक गई थी। प्रवीण और कैथरीन धीरे-धीरे बात करने लगे। कैथरीन ने बताया कि उसने भारत के नागा साधुओं के बारे में काफी कुछ पढ़ा है। जो मौरी आदिवासियों को देखकर अचानक याद आ गया।

"मैंने भी पढ़ा है लेकिन मौरी आदिवासियों से तो नागा साधुओं का जीवन बिल्कुल अलहदा होता है। नागा तो ईश्वर के भक्त हैं और सन्यासी होते हैं।"

"हाँ, जानती हूँ। कैसा रहेगा अगर मैं नागा साधुओं पर एक उपन्यास लिखूँ।"

"फैंटास्टिक आईडिया, मगर तुम्हें इसके लिए रिसर्च करनी पड़ेगी, क्योंकि नागा साधुओं का जीवन बहुत कठिन और आम आदमी के जीवन से बिल्कुल अलग है।"

" हाँ करूँगी न, हो सका तो भारत जाऊँगी और वहाँ से आंकड़े इकट्ठे करूँगी।

"काफी मेहनत करनी पड़ेगी तुम्हें, लेकिन अगर सोचा है तो बहुत अच्छा सोचा है।"

"थैंक्स प्रवीण, जब तुम मेरी सोच को प्रवाह देते हो तो मैं भीतर तक ऊर्जा से भर जाती हूँ।"

ड्राइवर नहीं होता तो प्रवीण कैथरीन को चूम लेता।


संस्कृत की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। वृषभानु पंडित ने उसे भारतीय आध्यात्मिक ग्रंथों की व्यवस्था भी कर दी थी। कैथरीन का ज्यादातर समय ग्रंथों को पढ़ने में व्यतीत होता है। वह नागा आख्यान भी पढ़ रही है और नागाओं की रहस्यमयी दुनिया से परिचित भी हो रही है। ओह, भारत देश पर्वत, जंगल, कदराएँ इन्हीं में होता है नागाओं का निवास। भारत की पवित्र गंगा नदी के संगम पर भरने वाले महाकुंभ के मेले में ही इनके दर्शन होते हैं। फिर ये गायब हो जाते हैं। आम जनता संग कभी दिखते नहीं। उसने ममा को नागाओं के बारे में बताया और आश्चर्य से भर कर कहने लगी -"ममा अद्भुत देश है भारत। मुझे भारत दर्शन करना है। नागाओं पर जो मैं उपन्यास लिखने जा रही हूँ उसके सूत्र वहीं मिलेंगे।"

ममा फीकी हँसी हँस दीं। इन दिनों उनका स्वास्थ्य खराब रहता है। रोज बुखार चढ़ जाता है और मुँह का स्वाद बकबका, कड़वा सा। नौकरी करते हुए दिन में कैथरीन को समय नहीं मिलता और नौकर का बनाया खाना ममा को पसंद नहीं आता। इसलिए रात को डिनर और लंच दोनों बनाकर कैथरीन ममा के साथ उनके सोने तक बनी रहती है।

"ममा देखो मैंने सब्जियों का स्वादिष्ट सूप और सैंडविच बनाई है तुम्हारे लिए।"

ममा ने एक घूँट सूप का पीते हुए मुँह फेर लिया-"नहीं अच्छा लग रहा कैथ, कड़वा लग रहा है।" कैथरीन उदास हो गई।

"क्या हो गया है ममा तुम्हें, डॉक्टर की दवा भी असर नहीं कर रही। ऐसे कैसे काम चलेगा।"

"चलेगा न, बहुत बढ़िया चलेगा। मुक्ति मिलेगी मुझसे तुम्हारे डैड को।"

"ऐसा क्यों कहती हो ममा।" जानना चाहती है कैथरीन। ममा की बीमारी, उनका अवसाद, कुंठा। क्यों डैड बार-बार जाते हैं मेलबोर्न? क्यों ममा पर ध्यान नहीं देते?


प्रवीण भी दिनोंदिन बीमार होता जा रहा है। यह उसके आसपास की दुनिया ऐसी क्यों हो रही है। क्यों उसे चाहने वाले स्वस्थ प्रसन्न नहीं हैं।

उस दिन वह जबर्दस्ती ममा को फॉर्म हाउस ले गई। प्रवीण को भी बुला लिया। हरे-भरे प्राकृतिक वातावरण में ममा जैसे जी उठीं। प्रवीण उनके पास बैठा उनके हाथ पैर सहलाने लगा।

"कैथ कहती है तुम फरिश्ते हो। मैंने उसके विश्वास को नहीं तोड़ा था। आज खुद भी यकीन कर लिया।" "फरिश्ते को फ़रिश्ता ही मिलेगा न ममा।"

ममा हल्के मुस्कुराईं

"मेरी कैथ का ध्यान रखना। बहुत भोली और फूल-सी कोमल है।" नौकरानी अनानास का जूस लंबे नाजुक डंडी वाले ग्लासों में लेकर आई।

"ताजा जूस है ममा अपने फॉर्म हाउस का।" कहते हुए कैथरीन उन्हें अपने हाथ से जूस पिलाने लगी। जूस पीकर वे सोफे पर पाँव फैला कर बैठ गईं।

"देखो बच्चों, उदास मत होना पर समय कम है मेरे पास। मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं है। तुम्हारे डैड से भी कोई उम्मीद न पहले थी न अब है। उनकी प्रेमिका है मेलबोर्न में। विडो, दो बेटे हैं उसके। सर्विस करते हैं दोनों। मैं तो चाहती हूँ कि वे मेरे बाद उसके साथ ही रहें। मैं तो अभी से उनसे कह रही हूँ। अभी जबकि मैं जिंदा हूँ। कभी-कभी लगता है जैसे वे मेरे मरने का इंतजार कर रहे हैं। फिर उन्हें घर से, कैथरीन से कोई सरोकार नहीं रहेगा। वैसे भी उन्होंने कैथरीन को उसके हाल पर छोड़ दिया है। पिता का फर्ज नहीं निभाया।" कहते हुए वे हांफने लगीं।

"ममा प्लीज अब इससे ज्यादा मैं नहीं सुन सकूंगी"

"इतनी कमजोर कब से हो गईं तुम कैथरीन? तुम लेखिका हो, जीवन के दुख दर्द को अपनी लेखनी में उतारो। सुन लो ममा के दिल का दर्द।"

प्रवीण के शब्द कैथरीन को सर्वांग हिला गए। ममा का दुख दर्द पीड़ा क्या वह शब्दों से पकड़ पाएगी। ममा तो जी रही हैं उसे, सह रही हैं उसे। यह कैसा अतीत का विलाप जिसमें ममा टुकड़े-टुकड़े टूटी हैं। बिखरी हैं। महीने भर बाद एक रात ममा जो सोई तो फिर उठी ही नहीं। अनंत निद्रा में लीन हो गईं। उनके जाते ही घर लड़खड़ा उठा, लकवा ग्रस्त हो गया। डैड ने इतना इंतजार नहीं किया। वह कैथरीन को उसके हवाले छोड़ 3 महीने बाद ही हमेशा के लिए मेलबोर्न जाकर बस गए। जाते-जाते कह गए-

"तुम पहले भी स्वतंत्र जिंदगी जीना चाहती थीं। मैं दखल नहीं दूंगा आगे भी।"

तब परवेज भी साथ था। डैड के जाते ही वह परवेज से लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी।

नहीं, कैथरीन हालात से कभी कमजोर नहीं होती। सामना करना उसका स्वभाव है। लेकिन इस बार न जाने क्या हुआ कि वह रुलाई का वेग रोक नहीं पाई। प्रवीण ने उसे रोने दिया। ऐसे हालात में सांत्वना के शब्द मायने नहीं रखते। जब कैथरीन शांत हुई तो उसने उसका चेहरा धुलाया, पानी पिलाया। उसका भीगा-भीगा चेहरा हाथों में भरते हुए बोला-

"मैं साथ हूँ हमेशा। तुम अकेली नहीं हो।"

कैथरीन को प्रवीण का वजूद आसमान-सा लगा जिस में समाते हुए वह खुद को तमाम सितारों, आकाशगंगाओं से ऊपर पा रही थी।


प्रवीण अब अधिकतर समय कैथरीन के साथ गुजारने लगा। ममा का बुटीक बंद नहीं हुआ उसमें सहायकों को नियुक्त कर कैथरीन अपनी निगरानी के साथ बुटीक का काम करवाती।

बिजनेस के कामों से फुरसत पाकर प्रवीण उसे लॉन्ग ड्राइव पर ले जाने लगा। कार जब ओट, जौ, चुकंदर और आलू के खेतों के किनारे की सड़क से गुजरती तो कैथरीन आँखें मूँद लेती। जैसे निसर्ग को आहिस्ता संभाल लेना चाहती हो अपने में।

"देख रही हो कैथरीन, पहाड़ों की फूलों भरी वादियाँ, अंगूरों के मंडप, लहराती, मचलती नदी की धार।"

"हाँ, यहीं कहीं होंगे मोरी आदिवासियों के कबीले। जापूकाय जाने पर पता चला था कितना अत्याचार हुआ उन पर।"

"हाँ कैथरीन, 1970 तक मोरी आदिवासियों के बच्चों को उनके परिवार से छीन-छीन कर सभ्य बनाने के लिए शहरों में लाने का अभियान चला था। इससे जो पीढ़ी तैयार हुई उसे स्टोलन जेनरेशन का नाम दिया गया। असभ्यता के रास्ते से सभ्य बनाने की यह मुहिम ऑस्ट्रेलियन सरकार का दामन दागदार कर चुकी है।"

"लेकिन सरकार ने अपने इस कृत्य के लिए उनसे माफी मांगी है न।"

"उससे क्या कैथरीन, जो उनके परिवारों पर गुजरी उसका अंदाजा लगा सकती हो तुम।"

"हाँ क्यों नहीं।" कैथरीन ने प्रवीण की आँखों में गहरे झाँका।

"भूल गए, तुम ही ने तो कहा था लेखक होने के नाते मुझे इस सब को गहरे महसूस करना होगा।"

प्रवीण ने झटके से ब्रेक लगाया। कैथरीन घबरा गई-"क्या हुआ?"

"देखो सामने खेत की मेड़ पर मोर पंख पसारे नाच रहा है।"

"ओ माय गॉड! अद्भुत रंगों का सैलाब उमड़ आया है उसके पंखों में!"

"तुमने देखा खुश होने के लिए खुद को कभी अकेला नहीं समझना चाहिए।"

कैथरीन ने प्रवीण के कंधे पर अपना सिर टिका लिया। दूर क्षितिज की रेखा धरती आसमान को एक किए थी।


कैथरीन पत्रकारिता में भी रुचि लेने लगी थी। उसके लिखे लेख, कवर स्टोरी अखबारों और पत्रिकाओं में काफी पाठक जुटा लेते थे। वह भारत के नागा साधुओं पर भी इधर उधर से खूब सामग्री जुटा रही थी और यदा-कदा उन पर भी लेख लिखकर अखबारों और पत्रिकाओं में भेज देती थी। उसके ये लेख भी बहुत अधिक लोकप्रिय हो रहे थे। नागा साधुओं पर उपन्यास लिखने की अपनी इच्छा पर वह दृढ़ थी।


कैथरीन जब कॉलेज से घर लौटी तो देखा प्रवीण और जास्मिन गेट के बाहर गाड़ी में उसका इंतजार कर रहे थे।

"अरे बताया नहीं?"

"सरप्राइस जो देना था आपको।" जास्मिन ने चहकते हुए कहा। लैच खोलते ही ममा की अनुपस्थिति जो रोज हावी हो जाती है उस पर आज नहीं हुई। ड्राइंग रूम में खिड़की से आती धूप की शहतीरें थीं और प्रवीण और जास्मिन के साथ होने का एहसास जो कैथरीन के एकाकी जीवन में अचानक बसंत ले आया था।

"क्या लोगी जास्मिन डियर?"

"आप क्या लेंगी?" जास्मिन ऊँगलियों पर गिनाने लगी-

"हमारे पास लीची स्क्वैश है, स्ट्रॉबेरी शेक है और आपके लिए बड़ा-सा केक और कटलेट।"

उसने साथ लाया पैकेट टेबल पर रखते हुए कहा।

"वो किस खुशी में?"

"आज हमारा रिजल्ट आया है और हम नब्बे परसेंट नंबरों से..."

बात भी नहीं पूरी कर पाई जास्मिन कि कैथरीन ने उसे गले से लगाते हुए चूम लिया।

"ग्रेट, आज तो प्रवीण बाहर डिनर लेंगे और समुद्र तट पर चलेंगे।"

प्रवीण जो इतनी देर से चुप बैठा था मुस्कुराते हुए बोला-

"यही प्लान करके तो आए हैं हम।" "फिर शेफालिका को क्यों नहीं लाए?"

वो अम्मा को डिनर करा कर हमसे मिलेंगी आकर बीच पर। "

"तो मैं चेंज करके आती हूँ।"


वे जब सागर तट पर पहुँचे धूप अपना सुनहला पन लिए बिखरी थी। तट पर लेटा जनसमूह धूप को जैसे जाड़ों में खर्चने के लिए बदन में स्टोर कर रहा था। प्रवीण स्विंग रॉक्स दिखाने ले आया जास्मिन को। विभिन्न आकार की गंदुमी चट्टानें जिन पर काले अक्षरों में ऑस्ट्रेलिया का इतिहास लिखा था। उस पार कमल की पँखुड़ियों वाला ऑपेरा हाउस मन लुभा रहा था। प्रवीण और कैथरीन चट्टान पर बैठ गए। जास्मिन तितली-सी इधर-उधर उड़ती दौड़ती रही।

"एक बात कहूँ कैथरीन, ममा के बूटीक का कुछ नाम रख दो न।" "गुड आईडिया। उन्हीं के नाम पर रखें सिलैका बुटीक।"

"हाँ बढ़िया रहेगा। साइन बोर्ड मैं बनवा देता हूँ। नए सिरे से उद्घाटन भी कर लेंगे।"

तभी जास्मिन शेफालिका का हाथ पकड़े आई-"पापा मम्मी आ गईं।" और चहकती हुई चट्टान पर बैठने के लिए जगह बनाने लगी।

"कैसी हो कैथरीन। तुम लोगों ने कुछ घूमा?"

"नहीं, देखो धूप की धीरे-धीरे कमजोर होती किरणों से नहाया हुआ ऑपेरा हाउस। सफेद कमल की पँखुड़ियाँ जैसे"

"जैसे लक्ष्मी बस बिराजने ही वाली हैं।" शेफालिका के अधूरे कहे वाक्य को जब कैथरीन ने पूरा किया तो शेफालिका आश्चर्यचकित रह गई।

"आप तो भारतीय आध्यात्म को बखूबी जान गई हैं।"

"शेफालिका तुम्हें नहीं मालूम कैथरीन भारतीय नागा साधुओं पर उपन्यास लिख रही है।"

"अरे वाह, हमारा भारत देश दुनिया भर के लिए आकर्षण का केंद्र है। आप लिखिए। आंकड़े जुटाने में मैं मदद करूँगी।"

"हाँ आप सब की मदद से ही काम पूरा होगा।"

" क्या आपने ऑपेरा हाउस पूरा घूमा है? बेहद खूबसूरत, वहाँ निर्मित कमल की हर पँखुड़ी एक थिएटर है जो हर दिन, हर रात अपने नाटकीय अंदाज़ और सिंफनी की तरंगों सहित पेश होता है। ऑपेरा हाउस की खूबसूरती पर ऑस्ट्रेलियन लेखक, कलाकार लुईस काहन की पंक्तियाँ याद आ जाती हैं

'सूरज नहीं जानता कि उसकी किरनें कितनी खूबसूरत हैं जब तक कि वह इस भव्य खूबसूरत इमारत पर अपनी किरनें नहीं बिखेरता।'

कैथरीन मंत्रमुग्ध थी।

"प्रवीण तुमने बताया नहीं कि शेफालिका कवयित्री है।"

शेफालिका हँस पड़ी।

"इसमें प्रवीण का दोष नहीं। वक्त ने बताने नहीं दिया।"

"लेकिन अब वक्त को हम अपना बना लेंगे। शेफालिका लिखना है आपको। लिखेंगी न?"

शेफालिका की आँखें छलकती कैथरीन ने साफ़ देखीं। कोई दुखती रग है शेफालिका की। वह अपने आप को कोसने लगी। प्रवीण ने उठते हुए कहा-"डिनर के लिए चलें?"

भारतीय रेस्तरां में डिनर के दौरान जो संगीत बज रहा था वह न जाने किसकी रचना थी। भाव कुछ इस तरह के थे......प्रिये, जिस्म की छुअन के बिना रूह की छुअन बेमानी है। इश्क पहाड़ के सबसे ऊँचे शिखर पर गिरती शफ़्फ़ाक चमकीली बर्फ़ है अनछुई, अद्भुत......सामने झील पर मंडराते परिंदों में अब कहीं खंजन पक्षी नहीं है। वे सारे के सारे तुम्हारे नैनों में जो समा गए।

प्रवीण ने कैथरीन की आँखों में झाँका। उन आँखों में सामने बैठी शेफालिका का अक्स था।

प्रवीण इन दिनों कुछ तनाव में रहने लगा है।

एक तो अम्मा जिद किए बैठी थी कि उन्हें लखनऊ जाना है। वहाँ उनका पैतृक घर है। जिस घर में वे ब्याह कर आई थीं। प्रवीण उनका इकलौता बेटा है। प्रवीण के पिता के निधन के बाद वे सिडनी आ गईं थीं। दूसरे शेफालिका भी बीमार-सी नजर आने लगी थी।

"अम्मा की सेवा करते-करते वह खुद पर ध्यान नहीं दे पाती।"

प्रवीण ने एक शाम कैथरीन के घर यूँ ही बातों के दौरान बताया। तो कैथरीन ने उसे उसका टेस्ट कराने की सलाह दी।

"मैं भी देख रही हूँ कई दिनों से उसका पीला पड़ता चेहरा। एक बार सारे टेस्ट करा लो। पता तो लगे क्या बीमारी है।"

"मैं भी कितना नाकारा सिद्ध हो रहा हूँ। न पति का फर्ज निभा पा रहा न प्रेमी का।" प्रवीण ने उदास होते हुए कहा।

"ऐसा मत सोचो प्रवीण। तुम दोनों ही भूमिकाओं में सफल हो। मेरे तो जीने का सहारा ही तुम हो।"

"खैर छोड़ो, कल शेफालिका को आउटिंग के लिए ले चलते हैं। नाटक देखते हैं। मन बहलेगा उसका।"

' कौन-सा नाटक? "

"फीयरलेस एन"

"अच्छा वह जो भारत की मशहूर अभिनेत्री नाडिया के जीवन पर आधारित है?"

"हाँ।"

"न जाने क्यों प्रवीण, भारत बहुत लुभाता है मुझे। जाना है, रहना है वहाँ तीन-चार महीने।"

"नागा साधुओं पर आंकड़े भी तो जुटाने हैं तुम्हें। लिखना शुरू हुआ?"

"नहीं प्रवीण, विधिवत नहीं। ममा के जाने के बाद बहुत डिस्टर्ब हूँ। मन उचाट रहने लगा है।"

"चलो ठीक है, हम साथ ही भारत चलते हैं। मैं अम्मा को लेकर लखनऊ चला जाऊँगा। तुम शेफालिका के साथ नागा साधुओं की खोज करना।"

हँसने लगी कैथरीन।

"अभी तो कल नाटक देखेंगे। रात के शो की टिकट मंगवा लेती हूँ। मुझे लेने समय पर आ जाना।" "ओके जानेमन।" प्रवीण ने कैथरीन को आलिंगन में भरकर चूम लिया फिर उसके बालों में ऊँगलियाँ उलझाए रहा। एक रेशमी एहसास देर तक उसे टकोरता रहा।


शो निर्धारित समय पर शुरू हो गया। सब कुछ जैसे समय के बहाव में बहा जा रहा था।

आज से करीब 73 साल पहले नाडिया की सफलतम हिन्दी फिल्म 'हंटरवाली' ने सफलता के झँडे गाड़े थे। ऑस्ट्रेलिया के पर्थ नगर में जन्मी 'मैरी एन इवान' यानी नाडिया ने 1933 में पहली बार भारतीय हिन्दी फिल्म 'लाल-ए-यमन' में अभिनय किया था जिसका निर्माण वाडिया मूवीटोन्स के जी. बी. एच. वाडिया ने किया था। 'हंटरवाली' 1935 में बनी और वे होमी वाडिया के प्रेम में गिरफ्त हो गईं। उन दोनों के प्रेम के किस्से मुम्बई में रोमियो जूलिअट की तरह प्रसिद्ध हैं। 'फियरलेस नाटक' में नाडिया के जीवन, कई पुरुषों के संग अपने फ़िल्मी जीवन के दौरान हुए रोमांस के चर्चे, कला जगत में सफलता के परचम लहराते हुए लगभग 35 फिल्मों में अभिनय का लम्बा सफ़र और होमी वाडिया के संग निर्विरोध चला तीस बरसों के रोमांस के सफ़र को अभिनीत किया गया है।

कैथरीन और प्रवीण स्टेज शो की लेखिका 'नोले जेनाकजेस्कवा' से शो के बाद रेस्तरां में मिले। जब वे कॉफी पी रहे थे तब वह भी सामने बैठी कॉफी पी रही थी......उसके गंभीर चेहरे पर विजय की मुस्कान थी......"यह नाटक दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं, अब तक तीस शो आयोजित हो चुके हैं। दर्शक नाडिया की कहानी से प्यार करते हैं और प्रोडक्शन टीम को अब भारत और इंग्लैंड से प्रायोजन पेशकश मिलने का इंतज़ार है।"

अंतर्राष्ट्रीय निर्माता मारियान बार्ल्स और ऑस्ट्रेलिया की मागो फिल्म्स ने 'नाडिया दी फियरलेस' वृत्तचित्र का निर्माण शुरू कर दिया है जिसका निर्देशन भारतीय मूल की ऑस्ट्रेलियन सफीना ओबेराय कर रही हैं।

प्रवीण गर्व और पीड़ा के मिले जुले भावों से भर उठा। गर्व इस बात का कि उसके देश की अभिनेत्री पर इतना कुछ किया जा रहा है और पीड़ा इस बात की कि' यह शुरुआत भारत से क्यों नहीं? क्यों हम अपने कलाकारों अपने देश के समर्पित नेताओं की कद्र करना नहीं सीख पाए? क्यों गाँधी पर एक विदेशी फिल्म बनाता है और तब भारतीय निर्माता जागते हैं।


शेफालिका की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। उसके फेफड़ों में पानी भर गया था। लिहाजा उसे हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। एक सप्ताह हॉस्पिटल में रहकर जब वह घर लौटी तो बहुत ही कमजोर लग रही थी। उसके घर लौटते ही अम्मा ने फिर लखनऊ जाने की रट लगा दी। प्रवीण आशंका से बुझा बुझा-सा था-" कहीं अम्मा...

"नहीं प्रवीण ऐसा मत सोचो। ईश्वर इतना भी निर्दय नहीं।"

कैथरीन ने दिलासा दिया।

"निर्दयी है कैथरीन। वरना एक साथ इतनी तकलीफ, इतनी पीड़ा मुझे देता। समझ नहीं पा रहा हूँ कैसे स्थिति को फेस करूँ।"

प्रवीण ने बुझे स्वरों में कहा।

"एक उपाय है मेरे पास। तुम अम्मा को लेकर लखनऊ चले जाओ। इतने दिन मैं संभाल लूंगी शेफालिका और जास्मिन को।"

"अकेले कर पाओगी?"

"इतनी भी कमजोर नहीं जनाब।"

तय हुआ कि इतने दिन कैथरीन प्रवीण के घर पर ही रहेगी। प्रवीण सारा इंतजाम करके भारत जाएगा। गेट के बाहर तक प्रवीण कैथरीन का हाथ पकड़े रहा। "तुमने मुझे संकट से उबार दिया।" प्रवीण ने आश्वस्ति से कहा।

"और दोस्त, साथी होते किस दिन के लिए हैं?"

प्रवीण गाड़ी में बैठ चुका था कैथरीन उसे गाड़ी चलाते जाते देखती रही जैसे ख्वाबों का एक लंबा सिलसिला नींद से अलहदा हो उसके संग-संग हो चला।

लेकिन होनी समय की प्रतीक्षा में कहीं दुबकी बैठी थी। प्रवीण के भारत जाते ही शेफालिका को बेहोशी के दौरे पड़ने लगे। उसका ऑक्सीजन लेवल घटता गया। उसे अस्पताल में एडमिट करना पड़ा। प्रवीण सोचकर भारत गया था कि वहाँ के घर की मरम्मत करा अम्मा का सारा इंतजाम करके ही ऑस्ट्रेलिया लौटेगा। इस काम में महीना डेढ़ महीना लगना तो लाजमी था। पर उसे हफ्ते भर में ही अम्मा को लखनऊ छोड़ लौटना पड़ा। शेफालिका आईसीयू में थी। कैथरीन सभी बातों को लेकर बहुत व्यथित थी। पल भर में क्या से क्या हो गया। न जाने क्या होने वाला है।

शेफालिका की बीमारी लंबी चली। कभी घर, कभी अस्पताल, कभी डॉक्टर की चेतावनी, कभी सब ठीक है कि मोहर। एक-एक कर आठ महीने बीत गए। प्रवीण का बिजनेस इस आपाधापी में बहुत प्रभावित हुआ। साथ ही शेफ़ालिका की बीमारी को लेकर वह बहुत अधिक तनाव ग्रस्त था। उसे न भूख लगती थी, न प्यास। नींद भी नहीं आती थी। कैथरीन ने उसे डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी। कैथरीन ने ही दो दिन बाद का डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया।

इसकी सूचना प्रवीण को देकर वह सोने की तैयारी करते हुए नाइट गाउन पहन ही रही थी कि प्रवीण ने खबर दी

" शेफालिका चली गई। हमें छोड़कर चली गई।

ओह...एक चीत्कार कैथरीन के गले तक आकर घुट गई। आँसू की दो बूँद जैसे नदी की धार बन गई। वह बुदबुदाई" आ रही हूँ। रुकना शेफालिका, आ रही हूँ।

पर न मौत रुकती किसी के लिए, न समय। इतने महीनों की अपार पीड़ा से मुक्ति मिली थी शेफालिका को। मुक्ति के इस तांडव में प्रवीण दरक रहा था, टूट रहा था। कैथरीन ने ही सम्हाला उसे।

दो महीने गुज़र गए, शेफालिका को गए। लेकिन प्रवीण के घर में वक्त वहीं का वहीं थमा था।


लखनऊ से अम्मा ने बताया कि वे ठीक समय पर लखनऊ पहुँची। प्रवीण के दोनों चाचा लखनऊ की उनकी संपत्ति हड़पने के चक्कर में थे। हवेली नुमा पुश्तैनी मकान था। दशहरी आम की अमराई थी और अमीनाबाद में दो दुकाने जो किराए पर चढ़ी थीं। प्रवीण इस सब से उदासीन था। जब तक अम्मा है तब तक है सब। फिर तो ... शेफालिका को गए 2 महीने भी नहीं गुजरे थे कि वह प्रवीण की दूसरी शादी के लिए चिंतित हो गईं। कैथरीन को ताज्जुब नहीं हुआ। वह देख चुकी थी ममा की मृत्यु के 3 महीने बाद ही डैड ने घर बसा लिया था।

"अम्मा की चिंता वाजिब है। तुम्हारी गृहस्थी वे बिखरते नहीं देख सकतीं। सुनो, मुझे कुछ जरूरी बातें करनी है तुमसे प्रवीण। कुछ गंभीर फैसले लेने हैं। मेरा कॉलेज में ऑफ है कल। मैं लंच बना कर रखूंगी तुम्हारे लिए।"

प्रवीण के पास बोलने को कुछ न था। वह जास्मिन के बारे में बताना चाह रहा था कि अगले सोमवार को उसका 16 वां जन्मदिन है। जब तुमसे मिली थी वह तो 11 बरस की थी। कैसे देखते-देखते इतने साल गुजर गए और शेफालिका के जाने के बाद से तो वह पूरी पुरखिन हो गई है। शेफालिका की तरह ही मेरा ध्यान रखती है। पर कहा कुछ नहीं। चुप ही रहा। कैथरीन के जाते ही प्रवीण सोचने लगा कहीं शादी का प्रस्ताव तो नहीं रखने वाली है कैथरीन, फिर दूसरे ही क्षण विचार आया कि वह तो शादी नहीं करने का निर्णय ले चुकी है। हो सकता है भारत जाने की योजना बना रही हो। नागा साधुओं के बारे में जितना जान सकी है पन्नों पर उतार लिया है उसने। कई बार अपने लिखे पर चर्चा भी कर चुकी है। सोचते-सोचते जाने कब वह नींद के आगोश में समा गया।


कैथरीन ने प्रवीण की पसंद का खाना बनाकर डाइनिंग टेबल पर सजा लिया था। गेट खुलने की आवाज सुन वह बाहर आई-" आओ प्रवीण, बहुत हैंडसम लग रहे हो आज। वरना शेफालिका की बीमारी और उसके जाने के बाद तो तुम मुरझा ही गए थे। आज काफी ठीक ठाक लग रहे हो।

"प्रवीण मुस्कुराते हुए अंदर आया।" तुम भी बहुत अच्छी लग रही हो। बस ऐसे ही मुस्कुराती रहो हमेशा। "

लंच के बाद कॉफी प्रवीण ने बनाई और दोनों ड्राइंग रूम में आ गए। कैथरीन बहुत कुछ कहने को उतावली थी। सोच रही थी शुरू कहाँ से करे। फिर अपने ही विचारों में थमते हुए बोली-"जास्मिन का जन्मदिन हम घर पर ही सेलिब्रेट करेंगे। कहीं जाएंगे नहीं।"

"ऐसा क्यों? उसने तो मूवी वर्ल्ड जाने की फरमाइश की है और उसके बाद रेस्त्रां में डिनर।"

" नहीं प्रवीण, अब जो बात मैं कहने जा रही हूँ उसके लिए तुमने अगर स्वीकृति दे दी तो

हम सब तुम्हारे साथ घर पर ही भरपूर आनंद मनाते हुए जन्मदिन का उत्सव मनाएंगे। "

"कौन-सी बात कैथरीन? क्यों सस्पेंस में रखी हो?"

मेरी कजिन है लॉयेना। कैनबरा से यहाँ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर अपनी पढ़ाई करने आई है। आखिरी साल है उसका। अनमैरिड है। मिल भी चुके हो उससे तुम दो-तीन बार। वह तुम्हें पसंद करती है। मैं चाहती हूँ तुम उससे शादी कर लो और अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करो। लॉयेना से पूछ लिया है मैंने। वह तैयार है। "

"क्या!" प्रवीण ने आश्चर्य से कैथरीन की ओर देखा-"तुम जानती हो तुम क्या कह रही हो?" "मैंने अच्छे से सोच लिया है प्रवीण। मेरा तुमसे शादी करना नामुमकिन है और तुम्हारा अकेले रहना भी संभव नहीं। तुम्हें जीवनसाथी की जरूरत है और इसके लिए मैं खुद को दोषी मानती हूँ। रही बात जास्मिन की तो अगर तुम परमीशन दो तो मैं उसे अडॉप्ट कर लूँ। देखो प्रवीण, सब कुछ असंभव-सा लग रहा होगा पर इसे प्लीज संभव बना दो। जिंदगी लंबी भी हो सकती है। ऐसे में बिसूरते रहने से अच्छा है जिंदगी को जीने लायक बनाना। मैं चाहती हूँ तुम्हें कोई ऐसा साथी मिल जाए जो तुम्हारे संग घुल मिल जाए। मेरी कमी न महसूस होने दे तुम्हें। मैं तो बहती नदिया हूँ। आज यहाँ कल वहाँ और मेरे जीवन के उद्देश्य भी बड़े अद्भुत हैं। सच पूछा जाए तो मैं इस सब के लायक ही नहीं हूँ। तुम जानते हो मुझे।"

प्रवीण ने पत्थरों पर तराशी हुई फरिश्तों की मूर्तियाँ देखी थीं पर जीवित फरिश्ता पहली बार देखा। पहली बार जाना कि प्यार करने का सुख केवल पाने में नहीं बल्कि देने में है। पहली बार जाना कि देने से विशालता कितनी बढ़ जाती है। बस इतना ही कह पाया

"तुम्हारी किसी बात को इंकार करने की मुझ में हिम्मत नहीं। मैंने तो बस प्यार किया है तुम्हें।"

"तुमको लेकर बस एक ख्वाब है मेरा। अभी तक नागा साधुओं पर किताब लिखना तरीके से प्रारंभ नहीं किया है। किताब पूरी जिस दिन होगी। तुम्हारे साथ उस किताब को लॉन्च करूँगी। यहाँ भी लॉन्च करूँगी और दिल्ली में भी क्योंकि प्रकाशक दिल्ली का ही होगा। तुम्हारी शादी के बाद मैं भारत जाने का पक्का प्लान बना चुकी हूँ। बुटीक लॉयेना और जास्मिन के हवाले होगा। जास्मीन चाहेगी तो उसे चालू रखेगी वरना बंद भी कर सकते हैं।"

प्रवीण के पास कहने को कुछ शेष न था।


बहुत सादे तरीके से प्रवीण और लॉयेना का विवाह संपन्न हुआ। उसी दिन जास्मिन को गोद लेने की रस्म भी पूरी हुई।

"जास्मिन का नया जन्म हुआ है आज। अब वह मेरी बेटी आद्या है। हिंदू आध्यात्म में देवी दुर्गा को आद्या कहा गया है जो शक्ति की प्रतीक है। आद्या शक्ति है मेरी। आद्या कैथरीन बिलिंग।"

"तुम तो गलती से ऑस्ट्रेलिया में पैदा हो गईं। तुम्हें तो भारत में पैदा होना था।"

प्रवीण ने मजाक करते हुए कहा। शेफालिका के बाद पहली बार वह खुलकर हँसा।

माहौल खुशनुमा हो उठा।

जास्मिन कैथरीन के साथ उसके घर आ गई थी और अपनी नई ममा के साथ ऐसी लिपट कर सोई मानो नन्ही-सी बच्ची हो।


भारी परिवर्तन के दिन थे। कैथरीन प्रवीण से कभी-कभार ही मिलती और अपना पूरा समय आद्या के साथ गुजारती। अब एक नई लत उसे लग गई थी सिगरेट पीने की। पहले एक दो सिगरेट ही पीती थी फिर धीरे-धीरे सिगरेट की मात्रा बढ़ती गई। उसने जैसे अपने अतीत को धुँए के हवाले कर दिया था। सब कुछ को बर्दाश्त करने की कोशिश में वह कतरा-कतरा बिखर रही थी। जबकि बिखराव उसकी फितरत नहीं थी। न जाने कितना समय लगेगा अब सिमटने में।


विवाह के अवसर पर अम्मा नहीं आ पाई थीं, अब आई हैं तो कैथरीन को दुआएँ देती नहीं थक रही हैं। जास्मिन के आद्या होने पर भी उन्हें कोई एतराज नहीं है। शेफालिका उन्हें पोता नहीं दे पाई। लॉयेना दे शायद। उन्होंने लॉयेना पर हिंदू धर्म स्वीकार करने का दबाव डाला और उसका नाम बदलकर तापसी रख दिया।

"कैसा लगा तापसी नाम तुम्हें?"

"नाम तो ठीक। पर धर्म बदलने से तकलीफ हुई।"

कैथरीन लॉयेना को समझाती रही। "हम नारी बनकर पैदा हुई हैं न। उसका मुआवजा तो देना पड़ेगा।"

लॉयेना ने ठंडी आह भरी।

"चलो टॉपिक बदलते हैं। बेसब्री से इंतजार है तुम्हारे उपन्यास का।"

"अगले महीने की 20 तारीख की टिकट बुक करा ली है मैंने दिल्ली की। सारी जानकारी लेकर ही लौटूँगी।"

"यानी लंबा रहने का प्रोग्राम है तुम्हारा। यानी आद्या और बुटीक मेरे हवाले।"

"जी हाँ, हमने अपना प्रवीण जो दिया है तुम्हें।" दोनों खिलखिला कर हँस पड़ीं।

"सिगरेट पियोगी?"

"अरे यह लत कब से लगी तुम्हें?" "बस यूँ समझ लो अभी से। आद्या के लिए डैड की अलमारी खाली करते हुए उनका सिगरेट का टिन हाथ आया। बहुत मजा आया पीने में। जैसे एक दूसरे ही लोक की सैर पर थी।"


नौकरी से लंबी छुट्टी नहीं मिल पा रही थी इसलिए कैथरीन को त्यागपत्र देना पड़ा।

अगली दो शामें वृषभानु पंडित के साथ गुजारनी पड़ीं। भारत के विषय में और नागा साधुओं के विषय में जरूरी जानकारियों के लिए। नक्शे, होटलों के पते, टूर एजेंसियों के पते आदि सब उपलब्ध कराए वृषभानु पंडित ने।

फिर पूरे 4 दिन लॉयेना और आद्या के साथ विभिन्न मॉल में घूमते हुए भारत में रहने के लिए जरूरी खरीदारी की। वह प्रेम भरे सुखद आश्चर्य से भर उठी जब उसे आद्या ने उसकी पसंद की तमाखू वाली सिगरेट का टिन दिया। आद्या ही तो उसके प्रेम की कमाई है। उसने आद्या को आलिंगन में भरकर चूम लिया।

और भारत जाने के पहले सिडनी की वह अंतिम रात्रि, प्रवीण के घर सब एक साथ डिनर पर मौजूद थे।

"एक बड़े मिशन के लिए तुम जा रही हो कैथरीन, किसी भी तरह की दुश्चिंता को साथ लेकर मत जाना। हम सब यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे।"

शादी के बाद से प्रवीण अपने आप में रिजर्व-सा हो गया था। कैथरीन ने उसके इस परिवर्तित रूप को कुरेदने की कोशिश नहीं की। स्थितियाँ बदल चुकी थीं। भूमिकाएँ भी बदल चुकी थीं।


दिल्ली एयरपोर्ट से कैथरीन ने एक ट्रेवल एजेंसी से संपर्क किया और भारत दर्शन करती रही। प्रसिद्ध मंदिरों में जिनमें से कुछ ज्योतिर्लिंग भी थे। चकित थी वह मंदिरों के स्थापत्य, सौंदर्य और लोगों की आस्था से। गढ़वाल के सभी प्रयाग जहाँ विभिन्न नदियों का संगम हुआ था और चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ। जैसे स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो। इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य। इतने भ्रमण के बावजूद भी उसे कहीं एक भी नागा साधु नहीं दिखा। वे न जाने कहाँ मिलेंगे, सोचते हुए उसने गंगोत्री से गोमुख जाने का प्लान बनाया पूर्णिमा की रात्रि में। गंगोत्री से उसने नंदू को साथ लिया। नंदू जो तीर्थ यात्रियों को रास्ता दिखाकर और उनका सामान भी लादकर चलता था।

"नन्दू हमें गोमुख पूर्णिमा के दिन देखना है।"

"जी मेम साब, आप भोजवासा में रूकिए क्योंकि पूर्णिमा में अभी समय है।"

भोजवासा ने जितना मन मोहा कैथरीन का उससे भी ज्यादा उसके लिए चकित करने वाली बात थी भोजवासा की गुफा में नागा साधुओं का मिलना। यह अवश्य ईश्वरीय इशारा है वरना