कैप फीयर, डर और फैन : हिंसक पात्र / जयप्रकाश चौकसे

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कैप फीयर, डर और फैन : हिंसक पात्र
प्रकाशन तिथि :18 अप्रैल 2016


अमेरिकन फिल्म 'कैप फीयर' से प्रेरित फिल्म यशराज चोपड़ा ने 'डर' के नाम से बनाई थी। अब्बास मुस्तान की 'बाजीगर' और चोपड़ा की 'डर' दोनों में शाहरुख खान ने नकारात्मक एवं हिंसक भूमिकाएं अभिनीत की थी और उनकी लोकप्रियता इन्हीं दो फिल्मों से बढ़ी थी। आदित्य चोपड़ा ने शाहरुख खान के साथ 'दिलवाले दुल्हनियां' बनाकर बॉक्स ऑफिस इतिहास रचा और अब कुछ वर्षों के अंतराल से उन्होंने शाहरुख खान को पुन: नकारात्मक भूमिका में लेकर अपनी फिल्म 'फैन' में प्रस्तुत किया है। आदित्य चोपड़ा और शाहरुख खान के लिए उनकी ताजा फिल्म 'फैन' एक तरह से 'डर' की ही सिनेमाई जुगाली करने की तरह है। ज्ञातव्य है कि 'डर' निर्देशक जे. ली थॉमसन की 'कैप फीयर' से प्रेरित थी, जो 1962 और 1995 में दो बार बनाई गई थी। यह एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है। इसका केंद्रीय पात्र जुनूनी है और इस फिल्म के एक सितारे का प्रशंसक जुनून की हद तक अपने प्रिय सितारे के लिए पागल है। यश चोपड़ा की 'डर' में जुनूनी नायक एक कन्या से एकतरफा प्रेम करता है।

सिनेमा के अर्थशास्त्र का मेरुदंड है प्रशंसक और सितारा वही है, जो अपने लिए जुनून पैदा करे। प्रशंसक का पागलपन बार-बार फिल्म देखने को प्रेरित करता है और इसी 'रिपीट वैल्यू' पर सितारे का मूल्यांकन होता है। सितारे के लिए प्रशंसक का होना जरूरी है परंतु सितारे के पास इतना समय नहीं है कि वह अपने सब प्रशंसकों से मिल सके। प्रशंसक कभी ये नहीं समझ पाते कि सितारा एक उत्पाद है, प्रचारतंत्र द्वारा बनाया गया उत्पाद। उसके निर्माण में अनेक विभाग सक्रिय है और बाजार का एक हिस्सा है। ऋषिकेश मुखर्जी ने गुलजार लिखित 'गुड्‌डी' में एक युवा प्रशंसिका, उसका सच्चा प्रेमी अौर एक सितारे को लेकर मनोरंजक फिल्म रची थी। इत तरह की बात भी प्रकट हुई है कि फिल्मकार एचएस रवैल की पत्नी अंजना ने अपनी रिश्तेदार कन्या के धर्मेंद्र से एक तरफा प्यार की बात गुलजार को सुनाई थी और 'गुड्‌डी' की सफलता पर गुलजार मिठाई लेकर श्रीमती रवैल को देने गए तो वे खफा हो गईं कि यह कथा वे स्वयं बनाना चाहती थीं।

बहरहाल, सितारों के प्रति जुनून प्राय: अत्यंत मासूम होता है और उसके मजे लिए जाते हैं परंतु कभी-कभी ये नकारात्मक उन्माद हिंसा को जन्म देता है। लैला और मजनू, शींरी और फरहाद तथा रोमियो व जुलियट का उन्मादी प्रेम उनकी मृत्यु का कारण बना परंतु 'कैप फीयर,' 'डर,' 'बाजीगर' और 'फैन' के उन्मादी पात्र हिंसक है और दर्शक के मन में भी भय का संचार करते हैं। मनोरंजक जगत में भय कई दुकानों को जन्म देता है और खेरची माल बनता है। कुछ नेता भी भय का संचार करते हैं और इस काम के लिए उनके पास उन्मादी संगठन है। जेएफ कैनेडी और जवाहरलाल नेहरू के प्रशंसक विचारवान व्यक्ति रहे हैं, हिटलर ने सशस्त्र उन्मादी संगठन रचे थे। हिटलर ने अपने उन्मादी संगठनों के लिए एक अर्थतंत्र का भी विकास किया था। देशभक्ति का टैक्स अनूठा प्रयोग था और आज भी अनेक देशों में इस तरह के सुनियोजित संगठन सक्रिय है। स्वतंत्र मौलिक विचार शैली हमेशा निशाने पर रहती है। भीड़ की रचना एक विज्ञान भी है और व्यवसाय भी है। अपने परिवार को प्यार करने वाला, ईमानदारी से जीविका अर्जित करने वाला मासूम-सा आदमी घर से निकलकर सड़क पर आता है और नारे लगाने वाली उन्मादी भीड़ का हिस्सा बनकर हिंसक हो जाता है। यह वही आम आदमी है, जो रात में पत्नी की बांहों में सुख की नींद सोता है। सुबह अपना टिफिन लिए काम पर जाते हुए उन्मादी भीड़ का हिस्सा हो जाता है। आम आदमी के अवचेतन की इंजीनियरिंग बड़ी कुशलता से की जाती है और ये ही 'सृजक' अगर रोबो बनाने के व्यवसाय में होते तो दुनिया कुछ और ही होती परंतु ये तो अदृश्य जादूगर मैंड्रेक्स के मायाचाल में ढलकर शैतान हो जाते हैं।

यह विचित्र कीमिया विष्णु खरे की कविता 'दज्जाल' का स्मरण कराती है। इस्लाम की अवधारणा में कयामत से पहले आने वाले दानव का नाम दज्जाल है। दज्जाल अपने आगमन पर ऐसा प्रचार करता है कि वह अवाम की भलाई के लिए आया है। उसका मसीही स्रूप एक छलावा है, वह अनेक नामों से अनेक देशों में आएगा। वह जिस बीमार व्यवस्था को खत्म करने का वादा करेगा, वह उसी खूंखार व्यवस्था का नुमाइंदा है। कुछ पंक्तियां हैं, 'इबलीस का जाहिदो आबिद होगा वह, लेकिन उसकी मुखालफत का स्वांग करेगा, कहेगा उसी को नेस्तनाबूद करने उतरा है, वह सारी बदी को खत्म करने और नेकी का िनजाम लौटाने का वादा करेगा, वह बक्काल शाहे आदमजाद बनने के हौसले से बेचेगा जन्नत के ख्वाब, कहेगा मेरा ही इंतखाब करो और गुमराह कौमें उसके हाथों, कदमों और जिल्द को चूमने लगेंगी, दीवानावार उसकी मोतकिद हो जाएंगे….'