कैफी आजमी की नेहरू को आदरांजलि / जयप्रकाश चौकसे

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कैफी आजमी की नेहरू को आदरांजलि
प्रकाशन तिथि : 14 नवम्बर 2018


पुराने मित्र अधिवक्ता सतीश बागड़िया से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि 1947 से 1964 तक सारे निर्णय खुली बहस के बाद संसद में लिए जाते थे। इंदिरा गांधी के दौर में कार्यकारिणी शिखर संस्था रही और वर्तमान दौर में न्यायपालिका महत्वपूर्ण फैसले ले रही है गोयाकि भारतीय गणतंत्र किस्तों में प्रभावी रहा है। उसका स्वर्ण काल पंडित जवाहरलाल नेहरू का शासन काल रहा है। उन्होंने भाखड़ा नंगल का निर्माण किया। एक बांध अन्य स्थान पर बनाया। उन्होंने आणविक ऊर्जा केंद्र और आणविक शोध केंद्र भी स्थापित किया। इसके साथ ही साहित्य एवं कला अकादमी जैसी संस्थाओं का निर्माण किया।

उनका जन्म 14 नवंबर 1889 में हुआ। उनके पिता मोतीलाल अत्यंत सफल अधिवक्ता थे और लंदन की प्रिवी काउंसिल में वकालत करते थे। इलाहाबाद में उनका निवास स्थान आनंद भवन परिसर लगभग तीन एकड़ का है। नेहरू परिवार ने आनंद भवन कांग्रेस को सौंप दिया। बहरहाल, पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु पर महान शायर क़ैफी आज़मी की लिखी कविता सच्ची आदरांजलि है। वह इस तरह है- 'मेरी आवाज सुनो/ प्यार का राज सुनो/ मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रखा था/ उसके परदे में तुम्हें दिल में लगा रखा था/ जुदा सबसे मेरे इश्क का अंदाज सुनो/ मेरी आवाज सुनो, प्यार का राज सुनो/ ज़िंदगी भर मुझे नफरत-सी रही अश्कों से/ मेरे ख्वाबों को तुम अश्कों में डुबाते क्यों हो/ जो मेरी तरह जिया करते हैं/ कब मरते हैं, थक गया हूं मुझे सो लेने दो/ रोते क्यों हो, सो के भी जागते रहते हैं/ जांबाज सुनो, मेरी आवाज सुनो/… मेरी दुनिया में न पूरब है न पश्चिम कोई/ सारे इन्सान सिमट आए खुली बांहों में/ कल भटकता था मैं जिन राहों में तनहा तनहा/ काफिले कितने मिले आज उन्हीं राहों में और सब निकले मेरे हमदर्द को हमराज सुनो/ मेरी आवाज सुनो../नौनिहाल आते हैं, अर्थी को किनारे कर लो/ मैं जहां था, इन्हें जाना है वहां से आगे/ इन्हें कलियां न कहो, ये हैं चमनसाज सुनो/ मेरी आवाज सुनो…क्यों सवारी है ये चंदन की चिंता मेरे लिए/ मैं कोई जिस्म नहीं कि जला दोगे मुझे/ राख के साथ बिखर जाऊंगा मैं दुनिया मैं/तुम जहां खाओगे ठोकर, वही पाओगे मुझे/ हर कदम पर हैं नए मोड़ का आगाज़ सुनो/ मेरी आवाज सुनो/ प्यार का राग सुनो…'। यह गीत क़ैफी आज़मी ने सावन कुमार टॉक की 1967 में प्रदर्शित फिल्म 'नौनिहाल' के लिए लिखा था।

नेहरू ने गंगा का विवरण एक कवि की तरह किया है- 'मैंने सुबह की रोशनी में गंगा को मुस्कराते, उछलते, कूदते हुए देखा है और शाम के साए में उदास काली चादर ओढ़े हुए, भेद भरी। जाड़ों में सिमटी-सी आहिस्ता बहती सुंदर धारा और बरसात में दौड़ती हुई, समुद्र की तरह चौड़ा सीना लिए और संसार को बर्बाद करने की शक्ति लिए हुए देखा है। यही गंगा मेरे लिए निशानी है भारत की प्राचीनता की यादगार की, जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती जा रही है भविष्य के महासागर की ओर।' आज वर्तमान के हुक्मरान नेहरू के योगदान को नकारते हुए उनकी बनाई हुई संस्थाओं को नष्ट करने में लगे हैं। हुक्मरान नेहरू स्मृति को मिटाते-मिटाते खुद मिट जाएंगे और अगर सफल भी हो जाए तो नेहरू की लिखी 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' सामूहिक जीवन में पाठ्यक्रम की तरह शामिल इस ग्रंथ को नष्ट नहीं कर पाएंगे।