कैमरों की संख्या और मानव संवेदना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2022
दक्षिण भारत में बनने वाली एक फिल्म में 61 कैमरों का इस्तेमाल किया गया। दृश्य नायक के मोटरसाइकिल चलाने का है। इस तरह के दृश्य संयोजन में योजना के अनुसार काम करना होता है। एक बार राहुल रवैल, सनी देओल अभिनीत फिल्म ‘अर्जुन’ का सीन मुंबई के सबसे अधिक भीड़ भाड़ वाले स्थान फ्लोरा फाउंटेन पर फिल्मा रहे थे। सीन में सनी देओल अभिनीत पात्र पर गुंडे आक्रमण करते दिखाए गए थे। संपादन के बाद राहुल रवैल, राज कपूर को वह सीन दिखाने गए। वे राज कपूर के सहायक रहे थे। राहुल ने कहा कि उन्होंने 5 कैमरे का इस्तेमाल किया है। सीन देखने के बाद राज कपूर ने कहा कि चार कैमरे ही प्रयुक्त हुए हैं। राहुल ने स्वीकार किया कि पांचवा कैमरा तकनीकी खराबी से चला नहीं। दरअसल हर कट से बताया जा सकता है कि कितने कैमरों का इस्तेमाल हुआ है।
ज्ञातव्य है कि राहुल रवैल लंबे समय तक राज कपूर के सहायक रहे हैं और उन्हें आरके फिल्म के लिए फिल्म निर्देशित करने का अवसर भी मिला। फिल्म ‘बेन-हर’ में रथों की दौड़ को बहुत महत्वपूर्ण नहीं समझते हुए निर्देशक ने नंबर दो यूनिट को यह काम दिया। जब निर्देशक ने संपादित फिल्म देखी थी तो उन्होंने रथों की दौड़ को फिल्म में महत्वपूर्ण स्थान दिया। उसमें से कुछ भी निकाला नहीं गया। भव्य फिल्मों में समय बचाने के लिए दूसरी यूनिट को रखा जाता है।
सर रिचर्ड एटनबरो ने फिल्म ‘गांधी’ के लिए गोविंद निहलानी को दूसरी यूनिट का प्रमुख कैमरामैन बनाया था। इसी अनुभव ने उन्हें ‘तमस’ बनाने का साहस दिया। राजकुमार हीरानी अपनी पटकथा सभी साथियों को पढ़ने के लिए देते हैं। इनमें गीतकार और संगीतकार भी शामिल होते हैं। लंबी बातचीत के बाद पटकथा को अंतिम रूप दिया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई बेहतर बात निर्माण के समय सामने आती है तो उसे अनदेखा किया जाता है।
के. आसिफ की ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में शीश महल के सेट पर प्रकाश संयोजन कैसे करें कि शीश महल के आईने में प्रकाश के लैम्प नजर नहीं आएं। कैमरामैन आरडी माथुर ने प्रकाश सफेद चादर पर डाला और परावर्तित किरणों में शूटिंग की। ऐसी विधा का प्रयोग महान सत्यजीत राय ने भी कुछ दृश्यों में किया। दरअसल फिल्म निर्माण में कैमरों की संख्या इत्यादि महत्वपूर्ण नहीं है। निर्देशक किस प्रकार का समग्र प्रभाव उत्पन्न करता है यही महत्वपूर्ण है। भारतीय सिनेमा में गुरु दत्त के कैमरामैन वी.के मूर्ति, राज कपूर के राजू करमाकर और आरडी माथुर निपुण माने गए हैं। ‘शोले’ के कैमरामैन की मृत्यु के बाद रमेश सिप्पी कोई प्रभावोत्पादक फिल्म नहीं बना पाए। इसका यह अर्थ नहीं है कि निर्देशक गुणवान नहीं हैं।
दरअसल कैमरामैन और निर्देशक के बीच आपसी समझदारी जरूरी है। अनेक निर्देशकों ने पूरी फिल्म में एक ही कैमरे का प्रयोग किया। एक फिल्म पहले निर्देशक के मस्तिष्क में बनती है। बाद में शूटिंग की जाती है। महान दार्शनिक बर्गसन ने कहा कि मानव मस्तिष्क और कैमरा एक समान काम करते हैं परंतु कैमरा मनुष्य की तरह संवेदनशील नहीं होता है। सारे सृजन कार्य संवेदनशीलता से ही होते हैं। अब हम संवेदनहीन मनुष्य बनाने में लगे हुए हैं।
काफ्का की ‘आउटसाइडर’ को जो ‘स्ट्रेंजर’ के नाम से भी प्रकाशित हुआ है का मुख्य पात्र संवेदनहीन है। ‘मैट्रिक्स’ फिल्म श्रृंखला तो यह भयावह आशंका अभिव्यक्त करती है कि भविष्य में मशीन की बैटरी मानव मस्तिष्क का इस्तेमाल बैटरी बनाने में कर सकती है। चार्ली चैप्लिन कम साधनों में गहरा प्रभाव उत्पन्न करते रहे। मानव कल्पना से ही मशीनों का निर्माण हुआ है किसी मशीन ने कभी मानव नहीं बनाया।