कैरम, लूडो और ताश के खेल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2020
कोरोना के कारण परिवार के सभी सदस्य घर में रह रहे हैं और समय का सदुपयोग करने के लिए कैरम, लूडो, सांप-सीढ़ी तथा ताश खेल रहे हैं। इन खेलों के माध्यम से सार्थक जीवन जीने के सबक भी सीखे जा सकते हैं। सांप और सीढ़ी में 99 पर सांप द्वारा डंसे जाने पर गोटी शून्य पर लौट जाती है। अत: सफलता के निकट पहुंचने पर भी खिलाड़ी शून्य तक नीचे गिर सकता है। किसी भी जीत को उस समय तक अपनी नहीं समझें, जब तक वह सचमुच प्राप्त नहीं हो जाए। लूडो में जीतने के लिए मात्र एक अंक चाहिए, परंतु पांसा ऐसा पड़ता है कि एक कभी आ नहीं पाता। सभी के पास शकुनी मामा की तरह अभिमंत्रित पांसा तो नहीं होता। कैरम बोर्ड में काली, सफेद और लाल गोट होती है, जिसे क्वीन कहते हैं। क्वीन लेने के बाद एक और गोट लेनी होती है, अन्यथा जीती हुई क्वीन लौटाना पड़ती है। क्वीन सामर्थ्यवान को ही मिलती है। कैरम में रीप से टकराकर स्ट्राइकर लौटता है और अनपेक्षित रूप से किसी गोट को पॉकेट में भेज देता है। प्राय: प्रेम कहानियों में विफल प्रेमी कैरम के स्ट्राइकर की तरह रिवाइंंड में कोई गोट ले लेता है और ठीक ऐसे ही विफल प्रेमी किसी अन्य स्त्री से विवाह कर लेता है, जिसे वह सांत्वना पुरस्कार मान लेता है। अधिकांश विवाह सांत्वना पुरस्कार की तरह होते हैं। जिसे चाहते हैं, उसे पा न सको तो जो मिल गया है, उससे प्रेम करो। ज्ञातव्य है कि राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में एक युवा डॉक्टर का उम्रदराज पिता कैरम खेलने का बेहद शौकीन है।
ताश के पत्तों से ब्रिज, रमी और फ्लश खेला जा सकता है। ब्रिज में कन्वेन्शन है, संकेत है, जिनके द्वारा आप अपने पार्टनर को अपने ताश की जानकारी दे सकते हैं। इन्हीं संकेतों को समझकर बाजी खेली जाती है। रमी में हर खिलाड़ी को तेरह पत्ते बांटे जाते थे। कालांतर में यह खेल 27 पत्तों से खेला जाने लगा। अजब-गजब बात यह है कि ब्रिज और रमी खेलना अपराध नहीं माना जाता, परंतु फ्लश प्रतिबंधित है। संभवत: नकद राशि से फ्लश खेला जाता है, इसलिए प्रतिबंधित किया गया। कैशलेस व्यवस्था ठप हो गई, क्योंकि जो हाथ में है, उसे ही हम सच्चा धन मानते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद धन के अभाव के कारण समाज में असंतोष था। इसलिए क्रेडिट और डेबिट कार्ड व्यवस्था बनाई गई कि क्रेडिट कार्ड से वस्तु खरीद लो और भुगतान बाद में करो।
फ्लश के खेल में पत्ते देखकर खेला जाता है और बिना देखे खेलने को ब्लाइंड कहते हैं। पत्ते देखकर खेलने वाले को उस खिलाड़ी से तिगुनी राशि देनी होती है, जिसने पत्ते देखे बिना खेला है। इस तरह ‘सीन’ और ‘ब्लाइंड’ बाजी होती है। परंतु पत्ते देखकर चलने के बाद भी एक खिलाड़ी बिना पत्ते देखे ही पैसा लगाता है तो इसे ‘कवर’ करना कहते हैं। कवर किए जाने के बाद तीन गुना राशि का निवेश करना होता है। खिलाड़ी कमजोर पत्तों को देखकर भी खेलना जारी रखता है और अपने अभिनय के दम पर टिका रहता है। इसे ‘ब्लफ’ कहा जाता है। हुक्मरान भी ब्लफ खेलते हैं। विश्व राजनीति में यह दौर ब्लफ का है। आगा खां ताश खेलते हुए दोगुनी और तीन गुनी राशि दांव पर लगाते रहे तो सामने वाले खिलाड़ी ने शो करा लिया। आगा खां ने ताश दिखाए तो दो बादशाह निकले। उन्होंने कहा तीसरे बादशाह वे स्वयं हैं।
ताश के खेल में ‘शॉर्पनर’ उसे कहते हैं जो पत्तों को जमा सकता है? याद आता है राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ का दृश्य, जिसमें राज कपूर ‘शॉर्पनर’ हैं। यथार्थ जीवन में दिलीप कुमार ने ताश जमा देने का बहुत अभ्यास किया था और स्वयं तीन इक्के रखकर प्रतिद्वंद्वी को तीन बादशाह दे पाते थे। इसमें निष्णात होते हुए भी उन्होंने कभी जुआ नहीं खेला। दिलीप कुमार कुछ क्षणों में ही ताश 52 बार फेंट लेते थे और कनखियों से हर पत्ते की मात्रा उनके जहन में समा जाती थी।
राज कपूर दीपावली उत्सव के समय अपने घर ताश का आयोजन करते थे। सितारे, तकनीशियन और जूनियर कलाकार भी खेलते थे। संजीव कुमार बहुत शौकीन और साहसी खिलाड़ी थे। दिलीप कुमार और देव आनंद भी शिरकत करते थे, परंतु वे दोनों खेलते नहीं थे। देव आनंद ने अपनी फिल्मों में ताश खेलने के दृश्य रखे हैं। उनकी फिल्मों के क्लब दृश्यों में ताश खेले जाते समय एक स्त्री नृत्य करते हुए प्रस्तुत होती थी। ‘बाजी’ फिल्म का गीत है- ‘अपने पे भरोसा है तो एक दांव लगा ले... तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले, अपने पे भरोसा है तो एक दांव लगा ले..।’ फिल्म श्री 420 में तीन पत्ती दृश्य से ही घटनाक्रम बदलता है और नायक अपराध जगत में प्रवेश करता है।
मुंबई में ताश खेलने के क्लब हैं। क्लब में संयोजक ‘नाल’ काटता है, अर्थात हर बाजी में से कुछ राशि वह अपने आयोजन खर्च के लिए निकालता है। इन क्लबों में सब कुछ हार जाने वाले खिलाड़ी को क्लब का मालिक अपने घर लौटने के लिए कुछ धन भी देता है। सारे बुरे काम निहायत साफगोई से किए जाते हैं और उनमें ईमानदारी बरती जाती है। विष्णु खरे की ‘तीन पत्ती’ नामक कविता में इस आशय की पंक्तियां हैं कि ‘तीन पत्ती’ खेल के माध्यम से मनुष्य को समझने में सहायता मिलती है। इस खेल में लापरवाह दिखने का स्वांग करते हुए चौकस और जागरूक बने रहना होता है। यह खेल भाग्य भरोसे नहीं खेला जाता।
अमेरिका में ताश के पत्तों से तीन पत्ती जैसा पांच पत्तों का ‘पोकर’ नामक खेल खेला जाता है। खिलाड़ी अपने चेहरे को भावहीन बनाए रखता है, ताकि अन्य खिलाड़ी उसके पत्तों को भांप न सकें। इसलिए भाषा में ‘पोकर फेस्ट’ मुहावरा इस्तेमाल होता है। इस खेल का एक बॉक्स बिकता है, जिसमें ताश के साथ नकली नोट भी होते हैं। इसके नोट डीमोनेटाइजेशन के बाद आई करेंसी से बहुत मिलते-जुलते हैं।