कैरियर / उमेश मोहन धवन
"नहीं पापा आप लोगों को छोड़कर मैं किसी भी कीमत पर हास्टिल नहीं जाऊंगा. यहीं रहकर पढ़ाई करूंगा." पांचवीं पास करने के बाद जब मनीष पर हास्टिल जाने का दबाव बढ़ा तो वह दहशत के मारे जोर जोर से रोने लगा. मुकेश ने उसे गोद में बैठाकर प्यार से समझाया. " बेटा अब तुम बड़े हो गये हो. अब तुम्हारे लिये कैरियर ही सब कुछ है. रिश्ते नातों के मोह में अपना कैरियर बर्बाद मत करो." मनीष को मन मसोसकर हार माननी ही पड़ी. उसके कई साल हास्टिल में निकल गये. अब वह इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था कि एक दिन बहन का दहाड़ें मार कर रोते हुये फोन आया. " भैया तुम तुरंत चले आओ चाहे प्लेन से ही. पापा का अचानक देहांत हो गया है. मां भी सदमे से बेहोश है." मनीष परेशान हो गया. फिर थोड़ा संभल कर बोला " देखो सीमा जो होना था वह तो हो गया. मुझे अभी कम्पिटीशन की तैयारी करनी है. दो महीने बाद मेरे इम्तहान हैं. अभी मैं आकर कर भी क्या लूंगा. आने जाने में एक सप्ताह तो बर्बाद हो ही जायेगा. आखिर मेरे कैरियर का सवाल है. मैं इकट्ठा इम्तहान के बाद ही आऊंगा. पापा का सपना जो पूरा करना है. रही बात चिता में आग लगाने की तो इतना सा काम तो कोई भी कर सकता है. चचेर भाई गुड्डू से लगवा लेना. वह भी तो उनके बेटे जैसा ही है." मनीष अब कैरियर का महत्व अच्छी तरह समझ चुका था.