कैलेंडर बदलते हैं, दीवार वही रहती है / जयप्रकाश चौकसे

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कैलेंडर बदलते हैं, दीवार वही रहती है
प्रकाशन तिथि :31 दिसम्बर 2016


हर वर्ष के अंतिम दिन सफल और असफल फिल्मों का आकलन प्रकाशित होता है और कथा फिल्मों के 103 वर्षों का सार यह है कि किसी भी वर्ष सफल फिल्मों का प्रतिशत 20 से अधिक नहीं रहा और सफलता के इस आंकड़े के कारण फिल्म निर्माण रुक जाना चाहिए था परंतु इस सदा सुहागन उद्योग में नए पूंजी निवेशक हमेशा आते रहते हैं,क्योंकि इसका ग्लैमर चुंबक की तरह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करता रहा है और विचित्र बात यह है कि फिल्म निर्माण में अय्याशी के प्रलोभन में आए हुए लोग असफल होकर लौटते हैं। यहां तक कि अय्याशी की कामना भी पूरी नहीं होती। इस उद्योग की कन्याएं जानती हैं कि कितना आंचल हटाना और कितने मिलीमीटर की मुस्कान देना है। यहां सब नपा-तुला है। यहां नैराश्य माल-ए-मुफ्त और आप दिल-ए-बेरहम हो सकते हैं।

बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कुछ घाघ बैठे होते हैं और मुसाफिरों में कौन सितारा या फिल्मकार बनने आया है- यह भांप लेते हैं। वे बटुए के वजन का भी अनुमान लगा लेते हैं और उसी बजट की फिल्म का सपना बेच देते हैं। इस वर्ष सबसे अधिक भयावह बात यह हुई है कि आदित्य चोपड़ा निर्देशित फिल्म 'बेफिक्रे' ने निराश किया। सबसे सजग फिल्मकार का यूं फिसल जाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अनेक प्रतिभाएं फिल्म जगत को दी है। अपनी कमसिन उम्र से ही आदित्य चोपड़ा सिनेमाघर में फिल्में देखते रहे हैं, जबकि उनके अपने स्टूडियो के ऑडिटोरियम में अधिकतर नई फिल्मों के ट्रायल शो आयोजित होते हैं। उसे दर्शकों के साथ बैठकर फिल्म देखने का जनून रहा है और दर्शक प्रतिक्रिया का वह अध्ययन करता रहा है।

वह इतना अधिक सफल है परंतु उसने स्वयं को प्रचार से दूर रखा है। वह तन्हा और खामोश रहना पसंद करता है। स्टूडियो में उनके अपने कक्ष के बाहर रखी कुर्सी पर बैठकर वे सारे दिन का प्रतिदिन वाला काम पूरा करते हैं। प्राय: सफल लोगों के अपने निजी कक्ष होते हैं, अनेक सचिव होते हैं परंतु आदित्य चोपड़ा ने स्वयं को सारे तामझाम से बचाए रखा है। उनके सहायक रहे करण जौहर उजागर होने के लिए बेचैन रहते हैं। करण जौहर अपने माता-पिता के इकलौती संतान हैं और उसके जन्म के समय उसके पिता पचास के आसपास थे, क्योंकि उन्होंने विवाह ही देर से किया था। उनके परिवार के दबाव में एक बार वे कन्या देखने गए तो कन्या की सहेली को उन्होंने पसंद किया! अत: करण जौहर की अधिक उजागर होने की बात समझी जा सकती है। यश जौहर ने रेडीमेड कपड़ों के अपने पुराने व्यवसाय को उस समय भी जारी रखा जब बतौर फिल्मकार वे सफल हो चुके थे। उनकी पहली फिल्म का नाम 'दोस्ताना' था और यही उनका स्वभाव भी रहा है। जब 'कुली' की शूटिंग के वक्त अमिताभ बच्चन के साथ दुर्घटना हुई थी तब यश जौहर ने ही दुर्लभ दवाओं को आनन-फानन में विदेश से बुलवाने की व्यवस्था की।

वर्ष के आखिरी पखवाड़े में प्रदर्शित आमिर खान की 'दंगल' सबसे अधिक आय अर्जित करने वाली फिल्म होने जा रही है। यह क्रिसमस की छुटि्टयों के कारण विदेश क्षेत्र से अधिकतम आय अर्जित करने वाली फिल्म है। सलमान खान की 'सुल्तान' से अधिक व्यवसाय होगा, क्योंकि इस अंतराल में दर्शक संख्या में वृद्धि हुई है। विदेश में बसने वाले भारतीय लोगों की संख्या भी बढ़ी है। भारत में एकल सिनेमाघरों की संख्या मात्र 9 हजार है और चीन में ये 65 हजार हैं। अत: प्रांतीय सरकारें नियम लचीले बनाएं तो संख्या बढ़ सकती है। सच तो यह है कि अगर कोई बड़ा औद्योगिक घराना भारत में एकल सिनेमा की शृंखला खड़ी करे तो सरकारें सारे नियम बदल देंगी। सिनेमा परिसर में वे अपने अन्य प्रॉडक्ट भी बेच सकते हैं। बाबा रामदेव प्रतिदिन एक नया व्यवसाय प्रारंभ करते हैं और उन्हें अपने प्रचार का भी जुनून है। अत: पतंजलि सिनेमा शृंखला बनाना उनके लिए आसान होगा। वे तो शायद ही पढ़ते हों परंतु उनका कोई भक्त उन्हें यह सलाह दे सकता है। बाबा पांच एकड़ जमीन मांगते हैं तो धर्मभीरू मुख्यमंत्री उन्हें पांच सौ एकड़ दे बैठता है।

मानव विकास में शिकार युग तक सभी काम करते थे परंतु कृषि प्रारंभ होते समय कुछ आलसी लोग पिछड़ने लगे, क्योंकि इसमें परिश्रम करना होता है। तब इन आलसी चतुर लोगों ने धर्म का व्यवसाय प्रारंभ किया और हर क्षेत्र के मेहनतकश का न धर्म क्षेत्र में आ गया। बाबा रामदेव के प्रोडक्ट अपनी गुणवत्ता से अधिक उनके धर्मगुरु द्वारा बनाए जाने के कारण बिकते हैं। उनका वितरण प्रबंधन कुशल हाथों में है और गांवों तक में माल बिक रहा है। आज अनेक औद्योगिक घराने बाबा के हव्वे से आतंकित हैं। उनकी कंपनी खूब लाभ कमा रही है। उनके औद्योगिक विकास के अगले चरण में वे स्वर्ग में सीट का आरक्षण भी प्रारंभ कर सकते हैं।