कैलेंडर / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
आग उगलते ज्वालामुखी ...बेसाल्टी (लावा) प्रवाह से धरती ढक गईं। उसके जैसे कितने ही भस्म हो गए। उसका शरीर झुलस गया, पर वह रूका नहीं-।खोजता रहा...खोजता रहा...
मूसलाधार बारिश...समुद्र और धरती एक हो गए। उसके जैसे कितने ही लुप्त हो गए, पर वह रुका नहीं-बोता रहा...बोता रहा...
भूकम्प...भूउत्थान...पर्वतों का उद्भव...ग्लैंसियर्स...बर्फ ही बर्फ...उसके जैसे कितनों की समाधि बन गई। उसका शरीर गल गया, पर वह रुका नहीं-रचता रहा...रचता रहा...
महानगर...बहुमंजिला इमारतें...लोग ही लोग...गर्द...धुआँ...चिल्ल-पों...जहरीली हवा...उसके सीने में दर्द जागा, डाक्टर ने उसे बेडरेस्ट की सलाह दी और वह बिस्तर पर पडा अपनी बीमारी केेे बारे में सोचता रहा..., सोचता रहा...
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