कैसा ये इस्क है? ये तो रिस्क है! / ममता व्यास

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अक्सर इश्क और मुश्क का नाम इक साथ लिया जाता है। ज्ञानी कहते हैं की दोनों ही छिपाए नहीं छिपते हैं। लेकिन आज इश्क और मुश्क की बात नहीं, जनाब। आज बात है करते है इस्क और रिस्क की। जी हाँ, रिस्क यानी खतरे की। देखिये इस्क में खतरे तो हमेशा से ही रहे है पहले दिल को खो देने के खतरे फिर रातों की नींद और दिन का सुकून और फिर करार... लेकिन इतना सब होने के बाद भी एक राहत, एक संतुष्टि, एक आनन्द, एक शान्ति इश्क में है। यही वजह है कि हम सब की तलाश इश्क पर ही पूरी होती है। लेकिन इन दिनों ये इश्क यानी इस्क, रिस्क क्यों बनता जा रहा है?

चलिए, लफ्जों में उलझाने की बजाय मैं सीधे पॉइंट पर ही आती हूँ।

दोस्तों, पिछले दिनों हुई दो घटनाओं से मन बहुत दुखी हुआ। पहले घटनाएँ सुन ले। फिर इस्क पर चर्चा करती हूँ। पिछले दिनों भोपाल में वायु सेना की पूर्व फ्लाइंग अधिकारी, जो आसमान नापने के सपने देखा करती थी, अंजली ने पंखे से लटक कर जान दे दी। नागपुर में पदस्थ 49 वर्षीय ग्रुप कैप्टन अमित को धारा 306 के तहत अंजली को खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया है। अमित के साथ अंजली पिछले करीब आठ साल से लिव-इन रिलेशनशिप में थी, यानी दोनों बगैर शादी के साथ रह रहे थे। अंजली ने भोपाल स्थित गुप्ता के घर में ही आत्महत्या कर ली।

दूसरी घटना जमशेदपुर की है। जिसमे आई.आई.ऍम-बी की ऍम.बी.ए. की स्टुडेंट मालिनी मुर्मू ने सिर्फ इस बात पर आत्महत्या कर ली कि उसके बॉयफ्रेंड ने फेसबुक की वॉल पर लिख दिया कि "फ़ीलिंग सुपर कूल टुडे dumped माय न्यु गर्लफ्रेंड, हैप्पी इंडीपेंडेंस डे......" ये पोस्ट पढ़ कर मालिनी इतनी दुखी हो गई की उसने खुद को समाप्त कर दिया।

उपरोक्त दोनों घटनाओं के मूल में इश्क, बेवफाई, फरेब, दुख, पीड़ा और अपमान ही है। किसी स्त्री का अपमान। प्रेम का अपमान। उन सुन्दर पलों का अपमान जो साथ गुजारे। उन क्षणों का अपमान जब दो लोग ईश्वर को साक्षी मान कर इश्क में खो जाते हैं। किसी की सुन्दर कोमल भावनाओं का अपमान। किसी के प्रेम का वो कलश जो सिर्फ किसी ख़ास के लिए भर जाता है उस अमृत का अपमान।

अब सवाल ये कि क्यों करे कोई किसी का अपमान? किसने दिया अधिकार? स्त्री हो या पुरुष, क्यों खेला जाए किसी के अहसासों से? कोई अपने भाव आपको समर्पित करता रहे और आप उससे खेलते रहे? अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए? अपनी किसी कमजोरी की वजह से आप किसी का भावनात्मक उपयोग करते रहे और जब आपको उसकी जरुरत नहीं या कोई अन्य विकल्प मिल जाये तो उसे दिल से बाहर निकाल फेंके।

मेरी नजर में इससे बड़ा पाप कोई नहीं। चलो मालिनी अपरिपक्व थी, नासमझ थी। पर अंजली तो समझदार थी, पढ़ी लिखी थी। आठ साल से किसी पुरुष को प्रेम और देह के साथ समर्पित। फिर क्या हुआ?

क्या चाहती है एक स्त्री? सिर्फ इमानदारी ना। सिर्फ एक ऐसा कोना, एक स्थान, उस प्रिय के मन में जो सिर्फ उसका हो। जहाँ से कोई उसे हिला ना सके। प्रेम के सिवा और क्या चाहा अंजली ने?

कितनी पीड़ा और दुख महसूसा होगा उसने उस क्षण जब उसने खुद को देह से ख़तम कर दिया। रूह तो खैर --- सदियों तक सवाल करने आएगी ही अमित की दहलीज़ों पर।

और मालिनी, जो अपनी कोमल, पवित्र, भावनाओं को सहेजती रही। प्रेम के कलश को भरती रही ऐसे कुपात्र के लिए जो उसके लायक ही नहीं था। क्या समझते है आजकल के युवा खुद को। अपने खीसे में {जेब में} चार-पांच गर्लफ्रेंड डाल कर घूमने से दोस्तों पर रौब पड़ता है। प्रभाव जमता है, है ना?

अपरिपक्व युवा हो या परिपक्व अमित गुप्ता जैसे लोग ये नहीं जानते कि -सच्चा प्रेम किसी हाट या बाजार में नहीं बिकता। ये हार किसी स्त्री की नहीं सिर्फ प्रेम की हार है। अपमान है प्रेम का। क्या ईश्वर इन्हें माफ़ कर सकेंगे?

अब आखरी बात --क्यों ना इश्क करने से पहले इश्क को समझ लिया जाए। प्रेम इश्क या मोहब्बत कोई भावना नहीं है, कोई विकार नहीं है। कोई जूनून भी नहीं है। ये इक गहरी समझ है। इसे हमें पहले समझना होगा। सिर्फ देह के तल पर मिलने को प्रेम मानने की भूल न की जाए। प्रेम के बदले प्रेम मांगा भी न जाए। सिर्फ दिया जाए। कोई आपसे प्रेम करे न करे, आप करते रहिए। उसके लिए न जान देने की जरुरत है न जान लेने की। बस प्रेम को जान लेना होगा। मांगने से भी भला कभी प्रेम मिलता है? ये धारा तो खुद बहने लगती है। किसी ख़ास के प्रति। उसकी उपस्थति मात्र आपको रोमांचित कर दे। उससे मिल कर आप सम्पूर्ण हो जाए। आज़ादी हो आपकी और उसकी। न कि हम उसकी हर साँस का हिसाब मांगे। पहरा न लगाए। गला न घोटा जाए। बंधन ढीले कर दे और फिर महसूस करे इश्क की खुश्बू।

इस इश्क को (इस्क) को हम रिस्क ना बनाए। ये बहुत पावन है, पवित्र है। इसे सिर्फ महसूस कीजिए और अगर ये महसूसने की की शक्ति ईश्वर ने आपको नहीं दी तो आप कम से कम अपमान तो मत कीजिए।

ज़रा सोचिये तो सही। कोई क्यों आपको अपने भाव, अपने शब्द, अपने अहसास भेजता है। हज़ारों की भीड़ में कोई किसी इक के लिए क्यों तरसता है? क्यों कोई आपके दर्द को अपने दिल में महसूस करने लगता है? कोई क्यों आपकी ख़ुशी चाहता है? क्या यूँ ही? किसी के लिए खुद को मिटा ही देना और कमाल ये कि साथ रहने वाले को अहसास भी नहीं... उफ़! क्या कीजियेगा ऐसे मशीनी लोगों का? मुझे लगता है जब से हम इंसान, मशीनी हो गए है तब से इस्क भी रिस्की हो गया है। कैसा ये इस्क है? अजब सा रिस्क है...