कैसी-कैसी पाठशालाएं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2013
कॉलेज के शिक्षक का एक घंटा अर्थात पीरियड मात्र 45 मिनट का होता है और सप्ताह पांच दिन का तथा महीना लगभग 21 दिन का और वर्ष लगभग छह माह का होता है। समय का हिसाब हर व्यवसाय में अलग ढंग से रखा जाता है। मसलन सियाचिन में किसी सैनिक को चार माह से अधिक नहीं रखा जाता क्योंकि मौसम इतना प्रतिकूल होता है कि वहां लंबे समय तक रहना शरीर को तोड़ सकता है। मौसम से अधिक वहां अकेलापन मनुष्य को मार सकता है। बर्फ गिरने के मौसम में अनेक दिनों तक सैनिक अपने छोटे-से बंकर में रहता है। एक अनावश्यक युद्ध की संभावना के कारण दोनों देशों ने अपने सैनिक वहां तैनात कर रखे हैं। स्पेस शटल में महीनों बिताने वाले लोगों की दिमागी मजबूती को प्रणाम। इसी तरह खदानों में काम करने वालों के लिए भी समय का अलग आकलन किया जाता है। समुद्र के गर्भ से पेट्रोल निकालने वालों के काम और आराम का समय अलग ढंग से तय किया जाता है। संसद में दशकों से जमे लोगों का काम सबसे कम होता है और वे एक तरह सवैतनिक छुट्टी पर ही रहते हैं। पश्चिम के विश्वविद्यालयों में हर पांच वर्ष के पश्चात शिक्षक को एक वर्ष की सवैतनिक छुट्टी मिलती है। सारांश यह कि व्यवस्था स्वीकार करती है कि मनुष्य को एकरसता से बचाना आवश्यक है और छुट्टियां मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
फिल्म उद्योग से सारी व्यवस्था सितारे के मूड पर आधारित होती है। अमिताभ बच्चन हमेशा अनुशासित रहे हैं और सुबह 9 बजे की शिफ्ट में घर से मेकअप करके स्टूडियो आठ बजे पहुंचते रहे हैं। सलमान खान प्राय: बारह बजे आते हैं। दिलीप कुमार ने अनेक बार शूटिंग निरस्त की है, क्योंकि अभिनय के लिए उनकी भीतरी तैयारी उनके लिए महत्वपूर्ण रही है। एक जमाने में शशि कपूर इतने व्यस्त कलाकार थे कि एक दिन में चार घंटे का समय चार निर्माताओं को देते थे। उन दिनों राज कपूर उसे टैक्सी सितारा कहते थे, जिसके मुआवजे का मीटर हमेशा चलता रहता है।
स्वयं राज कपूर की सुबह बारह बजे होती थी और वे स्टूडियो चार बजे पहुंचते थे। राज कपूर के प्रारंभिक दौर में 'सरगम'(१९५०) नामक फिल्म के निर्देशक पी.एल. संतोषी इस बात से तंग आ गए कि राज कपूर सुबह १० बजे से 6 बजे वाली शिफ्ट में दो बजे आते हैं। उन्होंने इसके खिलाफ अदालत के दरवाजे खटखटाए और राज कपूर को निर्देश दिया कि वे दस बजे पहुंचें। राज कपूर ने आदेश का पालन तो किया, परंतु वे इतने मशीनी ढंग से अभिनय कर रहे थे कि सारा उपक्रम नकली लग रहा था। निर्माता ने स्वयं अदालती आदेश बदलवा दिया, क्योंकि दो बजे आने पर राज कपूर मन लगाकर अभिनय करते थे और उन्हें 6 बजे जाने की जल्दी भी नहीं होती थी। वे काम पूरा करके ही जाते थे। दरअसल, उस प्रारंभिक दौर में राज कपूर दिन में दूसरों की फिल्म करते थे और सारी रात स्वयं की फिल्म शूट करते थे। फिल्म निर्माण के लिए धन जुटाने हेतु अन्य निर्माताओं की फिल्में करना आवश्यक था। प्रारंभिक वर्षों की आदत सारी उम्र कायम रही। स्वयं की फिल्मों के लिए भी वे चार बजे आने लगे। रतजगा उनकी सृजन प्रक्रिया के अंग हो गए।
अपनी सफलता के दौर में गोविंदा की लेटलतीफी ने उनके स्वयं का और निर्माताओं का बहुत नुकसान किया। 'पार्टनर' के बाद निर्देशक डेविड धवन ने कहा कि मेरा दिल जानता है कि मैंने गोविंदा और सलमान के साथ कैसे मात्र छह महीनों में फिल्म पूरी की, क्योंकि एक देर से आता था तो दूसरा आकर भी नहीं आता था। सलमान खान केवल अपने कष्ट में फंसे दोस्तों के लिए समय पर आ जाते हैं।
दरअसल, फिल्म बनाना भावनाओं को परदे पर इस तरह से प्रस्तुत करना होता है कि दर्शक के दिल तक पहुंचे, इसीलिए उन्हें मूवीज कहते हैं। अत: कलाकार का भावना में डूबकर काम करना अनिवार्य है। इसके लिए एकाग्रता आवश्यक है। संजय दत्त कभी भी अनुशासित और समय के पाबंद सितारे नहीं रहे। वे अपनी सुविधा एवं मौज के द्वारा शासित व्यक्ति हैं। अदालत द्वारा प्राप्त चार सप्ताहों में 'उंगली' को छोड़कर अन्य सभी फिल्मों का काम आराम से हो सकता है। 'उंगली' के लिए 40 दिन चाहिए अर्थात अभी 10 या 15 दिन का ही काम संजय दत्त के साथ हुआ है। सजा के साढ़े तीन साल जो छुट्टियां और व्यवहार का बोनस मिलाने पर मात्र दो या ढाई साल ही रहते हैं, अत: उंगली का निर्माता इंतजार करे या दूसरे कलाकार को लेकर फिल्म बनाए।
फिल्म उद्योग का व्यावहारिक सत्य यह है कि संजय दत्त के नाम पर फिल्म नहीं बेची जाती, वह पैकेज का हिस्सा है। अत: मीडिया में प्रचारित तीन सौ करोड़ सचमुच में तीन सौ करोड़ नहीं हैं, वे शिक्षक के एक घंटे के सम के ४५ मिनट की तरह ही हैं। यह आश्चर्य की बात है कि जेल और शिक्षण संस्था में समय का आकलन समान है। जेल रूपी शिक्षा संस्था से पास व्यक्ति प्रशिक्षित अपराधी हो जाता है।