कॉकरोच और कॉकरोचनी / पल्लवी त्रिवेदी

Gadya Kosh से
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एक सरकारी ऑफिस के एक सेक्शन में अलमारी के पीछे एक कॉकरोच और कॉकरोचनी निवास करते थे। ये उनके पुरखों का घर था जिसमे वे दोनों ख़ुशी ख़ुशी अपने बालगोपालों के साथ रहा करते।इसी कमरे में दो चूहों ,आठ छिपकलियों और बीस पच्चीस मकड़ियों का परिवार भी था। वे सभी अपने मोहल्ले में प्रेम पूर्वक रहते थे।कॉकरोच कॉकरोचनी दिन भर अलमारी के पीछे विश्राम करते और रात होते ही बाहर तफरी के लिए निकल पड़ते। यह ऑफिस एक पार्क की तरह था जिसमे सभी आनंद करते और मौज मनाते थे। दिन में यह बाबू पार्क बन जाता जहां बाबू लोग समय काटने आया करते और रात्रि को कीट किलोल पार्क में तब्दील हो जाया करता।

रात को मोहल्ले के सभी बच्चे टेबलों पर खूब खो खो, कबड्डी खेला करते। उनके माता पिता बाबुओं द्वारा छोड़े गए खट्टे मीठे नमकीन के टुकड़े , समोसे के चूरे, मीठी सुपारी आदि राशन सामग्री एकत्र करने में व्यस्त हो जाते।चाय के खाली गिलासों में बची हुई चाय के साथ समोसे खाकर सभी अपना जीवनयापन करते।कभी कभी बीड़ी के ठूंठों को चाट चाटकर या गुटखे के पाउचों में मुंह डालकर किशोर बच्चे नशा पत्ता भी कर लिया करते थे। मकड़ियां दिन रात बुनाई कार्य में लगी रहती थीं और उन्होंने पूरे कमरे में सुन्दर सुन्दर डिजाइन के जाले बन रखे थे। इसके पूर्व वे किसी के घर में निवासरत थीं किन्तु वहाँ हर सप्ताह उनके जालों को क्रूर गृहस्वामिनी द्वारा नष्ट कर दिया जाता था। कई बच्चे भी इस साप्ताहिक मकड़ी संहार में फौत हुए। रोते कलपते वो घर छोड़ा और कॉकरोच के कहने पर इस ऑफिस में अपना नया आशियाना बनाया। जब से यहाँ आयी तब से बुनाई केंद्र बहुत फल फूल रहा है। भगवान की दया से बच्चे भी बेख़ौफ़ झूला झूलते रहते हैं। एक बच्चा तो इतना मिलनसार है कि बड़े बाबू की टेबल की टांग पर ही जाले बनाने का अभ्यास करता है मगर बड़े बाबू बहुत दयालु हैं। कुछ नहीं कहते।

चूहे पूरे कमरे में दौड़ दौड़ कर पकड़म पकड़ाई और छुपन छुपाई खेला करते।यहाँ छुपने के लिए सैकड़ों अड्डे थे।कभी फाइलों के सागर में गोता लगा जाओ , कभी डस्टबिन में हफ्ते भर से डले कागजों और पौलिथिनों में छुप के बैठ जाओ तो कभी टेबल की टूटी दराज के छेद में से अन्दर गुड़क जाओ और मजे इसे एक मीठी झपकी मार लो।कभी कभी दोनों चूहे अपने दांत तेज़ करने के लिए लकड़ी की अलमारियों को कुतर जाते। चूहों की हितैषी सरकार ने अलमारी के साथ साथ कुतरने के लिए भारी मात्रा में फाइलें भी उपलब्ध करा रखी थीं।वे सरकार के तहे दिल से आभारी थे।

कॉकरोच और कॉकरोचनी का प्रेम विवाह था। वे दुनियादारी की चिंता से मुक्त अपने प्रेम प्रसंग में ही डूबे रहते और निरंतर परम पिता ईश्वर को अपनी तीव्र वंश वृद्धि के लिए धन्यवाद देते।

इस प्रकार मानव और कीट प्रजाति के सभी सदस्य गण एक ही स्थान पर आनंदपूर्वक समय व्यतीत कर रहे थे।

एक दिन कॉकरोच एक बुरी खबर लेकर भागा भागा आया जिसे सुनकर कॉकरोचनी चिंता में डूब गयी। उस कॉकरोच ने स्वीपरों को आपस में बात करते सुना कि सरकार ने सफाई अभियान चलाया है , सभी सरकारी कार्यालयों के अन्दर और बाहर से सारी गंदगी हटा दी जायेगी। कीड़े मकोड़े भी बेमौत मार दिए जायेंगे।

दोनो प्राणी चिंता में डूब गए। दोनों को पूरे दिन नींद न आये। रात भर हाय हाय करें। अब क्या होगा ?उन्होंने तत्काल मोहल्ला कमेटी की बैठक बुलाई और इस बारे में विचार विमर्श किया। कॉकरोच ने प्रस्ताव रखा कि इस स्थान को छोड़कर कहीं और बस जाना उचित होगा मगर मकड़ी, चूहों और छिपकलियों ने मना कर दिया। वे अपनी रक्षा करने में सक्षम थे। बेचारे कॉकरोच और कॉकरोचनी ही सबसे कमज़ोर जीव थे जो एक चप्पल में भी धराशायी हो सकते थे।


दोनों ने आंसू भरी आँखों और भारी हृदय से अपने पुश्तैनी घर को छोड़कर पलायन करने की सोची और अलमारी के ऊपर अपने विशालकाय जाले में झूला झूल रही पड़ोसी मकड़ाइन से घर का ध्यान रखने को कह विदा ले चले।अलमारी के पीछे से निकल कर दोनों ने बगल के ऑफिस के स्टोर रूम में बक्से के पीछे एक कुटिया बना ली। पूरा स्टोर घूमकर देखा , कोई और कॉकरोच न दिखा। वे दुबारा चिंता में डूब गए। " यहाँ तो ज्यादा मारकाट हुई है , लगता है "

कॉकरोचनी को सुबह होते ही अपने पुराने घर की याद सताने लगी। बच्चे भी रो रोकर अपने दोस्तों के पास जाने की ज़िद करने लगे। कॉकरोचनी शोक के मारे मुच्छी लहराकर बोली " चलो प्रिय ..एक चक्कर लगा आयें।साढ़े दस बजते ही वापस आ जायेंगे "

दोनों जने आतंकवादी झाडुओं , स्प्रेओं और चप्पलों से छुपते छुपाते पुराने ठिकाने पर पहुंचे। वहाँ जाकर देखा तो एक दूसरा कॉकरोच कपल अपना आशियाना बना चुका था। कॉकरोचनी के गुस्से का ठिकाना न रहा। जिस घर में वो ब्याह कर आई , जहां सास ससुर की अर्थी सजी , जहां वह पहली बार माँ बनी , आज उसके सपनों के घर में कोई और घुस आया है।

दोनों मियाँ बीवी मूंछ कसकर नए घुसपैठियों को ललकारने लगे। नयी कॉकरोचनी ने डरते हुए बताया कि वे तो सरकार की घोषणा से घबड़ाकर बगल के ऑफिस के स्टोर रूम से भागकर यहाँ शरण लेने आ गए हैं।तब कॉकरोच ने दबी ज़ुबान में बताया कि उनके छोड़े हुए घर को उन्होंने अपना घर बनाया है।

दो मिनिट को सन्नाटा छा गया।सभी एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। तभी एक बुज़ुर्ग झींगुर और झींगुरनी ने नेपथ्य से झींगुरी लोकभाषा में एक दोगाना सुनाया जिसका भावार्थ यह था कि " हे मूर्खो .. जिसको स्वच्छता रखनी होती है वह सरकार के आदेश का इंतज़ार नहीं करता ,जिसके यहाँ कॉकरोच पुश्तों से रहते आये हैं उसकी सात पीढ़ियों का भविष्य वैसे ही उज्जवल है और वैसे भी वे सरकारी कॉकरोच हैं इसलिए चिंता का त्यागकर आनंद मनाएं "

दोनों जोड़ों को यह सुनकर राहत मिली। चारों ने एक साथ बड़े बाबू की मेज पर झिंगालाला बोल बोलकर समूह नृत्य किया और पार्टी मनाकर अपने अपने आशियाने को कूच किया।

अगले दिन सुबह दोनों ने बड़े बाबू को जब बगल की दीवार पर गुटखा थूकते और छोटे बाबू को समोसा खाकर परदे से हाथ पोंछते देखा तब उनकी जान में जान आई।दोपहर को उन्होंने देखा कि बड़े बाबू की टेबल पर चाय फ़ैल गयी जिसे सोखने के लिए उन्होंने तत्काल एक अखबार उस पर पटक दिया। अखबार के ऊपरी पेज पर हाथ में झाड़ू लेकर सफाई करते नेताओं की तस्वीर छपी थी। यह नज़ारा देखकर मियाँ बीवी का रहा संशय भी जाता रहा।

अगले दिन उन दोनों ने समाज सेवा करते हुए ऑफिस के चूहों , मच्छरों और छिपकलियों के लिए भी को भी झींगुर झींगुरनी का शो आयोजित कर उनका मोटिवेशनल दोगाना मुफ्त में सुनवाया। सभी प्राणियों में हर्ष छा गया।और वे सभी निश्चिन्त होकर सुखपूर्वक निवास करने लगे।