कॉपीराइट का अर्थ नकल का अधिकार? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2018
इन दिनों शंकर की रजनीकांत एवं अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म '2.0' सुर्खियों में है। फिल्म का संदेश तो महान है कि मोबाइल के उपयोग से हुआ विकिरण मनुष्य की सेहत को नुकसान पहुंचाता है। शंकर की फिल्मों में अतिरेक किया जाता है। जहां एक गोली चलानी चाहिए, वहां उनके पात्र हजार गोलियां दागते हैं और पात्र का मुंह मशीनगन का काम करता है। बहरहाल फिल्म में अक्षय कुमार अभिनीत पात्र पक्षी है जो अपने विराट पंख फैलाकर कुछ भी कर सकता है। यह विचार हॉलीवुड फिल्म 'कैप्टन अमेरिका' से उठाया गया है। इस तरह की 'प्रेरणा' हिंदुस्तानी सिनेमा में न पहली बार ली गई है और न ही आखिरी बार यह कार्य हो रहा है। संजय लीला भंसाली की फिल्म 'सांवरिया' का मुख्य सेट 'फैंटम ऑफ द अॉपेरा' नामक फिल्म की 'प्रेरणा' से बनाया गया है। भंसाली साहेब की दीपिका-रणवीर अभिनीत फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में राज दरबार के सेट के मध्य में पानी की नहर जैसा कुछ बना है। यह अमेरिकन फिल्म 'ट्रॉय' के सेट की 'प्रेरणा' से बना है। दरअसल, यह 'प्रेरणा' का सिलसिला फिल्म के प्रारंभिक चरण से ही जारी है। एक दौर में हॉलीवुड फिल्म की प्रचार सामग्री की बुकलेट का हिंदुस्तानी भाषा में अनुवाद का काम करने वाले व्यक्ति ने ऐसी प्रेरणा से कुछ कथाएं लिख डालीं जिन पर फिल्में भी बनी हैं। दक्षिण भारत या बंगाल की फिल्म की 'प्रेरणा' से हिंदुस्तानी भाषा में फिल्म बनाने की प्रक्रिया को कहते हैं कि हम इस क्षेत्रीय फिल्म का अखिल भारतीयकरण कर रहे हैं। जैसे मानसून के बादल केरल में बरसकर तमिलनाडु में बरसते हुए मुंबई तक आते हैं, वैसे ही फिल्म की 'प्रेरणा' भी केरल से मुंबई या बंगाल से मुंबई की ओर आती है। इतना ही नहीं हमारे गीतकार भी 'प्रेरणा' ग्रहण करते हैं और कभी-कभी जाने किस का जूता किसे पहना देते हैं। यहां तक कि पाकिस्तान से भी माल उड़ाया जाता है।
शम्मी कपूर ने हॉलीवुड फिल्म 'इरमा ला डूस' की प्रेरणा से 'मनोरंजन' नामक फिल्म बनाई। जिसमें पंचम का एक मधुर गीत था 'इतना प्यारा वादा है, यह गोयाकि चुनांचे' इस फिल्म में एक प्रेमी को उसका लव गुरु यह परामर्श देता है कि वह एक लखनऊ के नवाब का भेष धरकर प्रेमिका से मिले तो परामर्श देने वाला अपने उत्साही शागिर्द से पूछता है कि उसे अदब का कोई इल्म है तो वह कहता है कि उसे बहुत जानकारी है क्योंकि उसने सारी उम्र ईरानी होटल में मुगलिया खाना खाया है। बहरहाल इस 'इरमा ला डूस' और मनोरंजन प्रकरण में यह जान लेना जरूरी है कि 'इरमा ला डूस' के बनने के दो दशक पहले शांताराम की फिल्म 'आदमी' भी एक पुलिस वाले और एक तवायफ की प्रेम कथा बयां कर चुकी थी। शांताराम जी का 'स्वदेशी' के प्रति इतना प्रबल आग्रह था कि एक बार उन्होंने सिने कैमरा बनाने का प्रयास भी किया था परंतु सफल नहीं हो पाए। किसी भी क्षेत्र में किसी भी प्रयास के सफल होने से अधिक जरूरी है कि प्रयास तो किया जाए। फिल्म के कैमरे में भांति-भांति के लेंस और फिल्टर का उपयोग किया जाता है और गुणवत्ता के कारण उपकरण जर्मनी में बनते हैं। बहरहाल सही ढंग से नकल करने के लिए भी कुछ अक्ल का होना जरूरी होता है। एक बार स्कूल की परीक्षा में नकल प्रदान करने वाले मित्र ने पर्ची के अंत में व्यक्तिगत संदेश लिखा था कि रात का खाना साथ खाएंगे। धन्य है वह नकलची कि उसने व्यक्तिगत संदेश भी अपनी उत्तर पुस्तिका में लिख दिया। कॉपी जांचने वाले शिक्षक को लगा कि यह उद्दंड छात्र है कि उनके साथ शाम का भोजन करना चाहता है।
एक छात्र बारीक अक्षरों में नकल की पर्चियां बनाया करता था। उससे कहा गया कि इससे कम परिश्रम करके स्वयं परीक्षा पास की जा सकती हैं तो उसका जवाब था कि नकल करके पास होने में जो आनंद है वह पढ़कर पास होने में नहीं है। गोयाकि नकल करना अपने आपमें एक साध्य है, जिसे साधन नहीं समझा जाना चाहिए। इसी तरह की विचारधारा हमारे जीवन गीत का 'स्थायी' भाव है। अदम का एक शेर इस तरह है 'अक्ल हर काम को जुल्म बना देती है/बेसबब सोचना, बेसूद पशीमां होना।'