कॉमेडी शो में ग्रीक ट्रेजडी का नायक / जयप्रकाश चौकसे

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कॉमेडी शो में ग्रीक ट्रेजडी का नायक
प्रकाशन तिथि : 15 मई 2014


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विदाई पार्टी बुधवार को दी गई। उन्होंने अपना सामान पैक कर लिया है। वे भारत के तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिसने सबसे अधिक समय तक शासन किया। उनके दस वर्षों में भारत को कभी किसी देश से युद्ध नहीं करना पड़ा परन्तु सरहदों पर शांति बनाए रखने वाले नेता के देश में युद्ध जैसी स्थितियां बनी रहीं जिसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं। विगत कुछ समय में जितने अधिक अपमानजनक अनुत्तरदायी मजाक उनके बनाए गए उतने आज तक किसी प्रधानमंत्री के नहीं बनाए गए, यहां तक कि चंद्रशेखर और आई.के गुजराल के भी नहीं। उन्हें बुजुर्ग और तथाकथित तौर पर जिम्मेदार लोगों ने सार्वजनिक रूप से अपशब्द कहे। उनके दस वर्षों के कार्यकाल का मूल्यांकन इतिहास करेगा और वह इतना निर्मम एवं आक्रामक नहीं होगा जितने उनके समकालीन रहे हैं। सच तो यह है कि उनका अभद्र मखौल और अपमान केवल हमारे कालखंड के सांस्कृतिक शून्य को ही रेखांकित करता है। इस वाचाल युग में उनकी गरिमामय खामोशी को गलत समझा गया।

मनमोहन सिंह शेक्सपीयर के ट्रैजिक हीरो की तरह रहे हैं जो शूरवीर जीवन के जंग जीतने की प्रक्रिया में अनचाहे, अनजाने कोई छोटी सी चूक कर जाता है जो उसके सारे जीवन के करे-धरे को शून्य बना देती है। जीवन की सांप-सीढ़ी के खेल में मनमोहन ने समाज की निचली पायदान से अपने परिश्रम और प्रतिभा से प्रारंभ करके यात्रा को 99 के अंक तक पहुंंचाया जहां एक अजगर ने उन्हें निगलकर फिर शून्य पर भेज दिया। आजकल शायद बच्चे यह खेल नहीं जानते क्योंकि मनमोहन सिंह के उदारवाद ने ऐसा बाजार केन्द्रित समाज रच दिया है जहां खिलौने ही नहीं बदले, पूरा बचपन ही बदल गया है। अब अमेरिका से आयात किए गए वीडियो गेम्स के मकडज़ाल में बचपन उलझ गया है।

उनके व्यक्तिगत मूल्यों में '99' या 'सौ' की कोई आकांक्षा कभी नहीं रही और शून्य का भय भी नहीं रहा। वे तमाशबीन नुमा छिछोरे लोग जिन्होंने सोशल मीडिया पर मनमोहन सिंह पर चुटकुले रचे हैं, एक बार अपने उसी मंत्र पर मनमोहन सिंह का बॉयोडाटा देखें तो उन्हें बीस पेज डाउनलोड करने होंगे और वे जान पाएंगे कि क्या विलक्षण कॅरिअर रहा, कितने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पदों को उन्होंने गरिमा दी है और जिस ऑक्सफोर्ड में वे स्कॉलरशिप पाकर ही अध्ययन कर पाए, उसी विश्वविद्यालय ने उनके नाम की स्कॉलरशिप प्रारंभ की है। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन उनके सहपाठी रहे हैं और प्रशंसक भी हैं।

मनमोहन सिंह सादगी पसंद व्यक्ति रहे हैं और जब वे वित्त सचिव थे तब सरकारी कार के बदले बस से ही दफ्तर आते थे। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में नेहरू के बाद वे ही दुनिया भर के नेताओं का आदर पाने में सफल रहे। संकीर्णता से ग्रसित लोग इस आदर का मूल्य नहीं जानते। एक जबरदस्त प्रचार के अंधड़ ने मनमोहन के दस वर्षों को शून्य और भारत का 'शापित काल' मान लिया है क्योंकि वे सत्य की ओर देखना ही नहीं चाहते। सन 2004 में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की संख्या 17 थी और सन 13 तक चवालीस हो गई, गोल्ड इम्पोर्ट 2004 में 6516 अमेरिकन मिलियन डॉलर से बढ़कर 41465 मिलियन डॉलर हो गया। बिजली सन 2004 में 1,12,683 मेगावाट से बढ़कर 2,11,766 मेगावाट हो गई और प्रांतीय सरकारें श्रेय ले गईं। अनाज उत्पादन 213 से बढ़कर 257 मिलियन टन हो गया, चौदह करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठे, मोबाइल 21 मिलियन से बढ़कर 247 मिलियन हो गए। सीमेंट उत्पादन 124 मिलियन टन से बढ़कर 272 मिलियन टन हो गया।

मनमोहन सिंह के पहले आठ वर्ष के दौरान विकास दर आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती गई परंतु अंतिम दो वर्षों में देश आर्थिक रूप से पिछड़ गया और इसी को खूब प्रचारित किया गया। राजनैतिक अंधड़ कुछ ऐसा हो गया कि अंतिम दो वर्ष ही सत्य हैं और गरिमामय आठ वर्ष काल्पनिक बना दिए गए हैं। इन दो 'कलंकित वर्षों' में बहुत कुछ ऐसा घटा जिस पर उनका नियंत्रण नहीं रहा। वे एक बहुत महीन धागों से बुने षडयंत्र को समझ नहीं पाए। समाजवादी अर्थ-व्यवस्था की ओर बढ़ते उनके झुकाव को उद्योगपति और कॉर्पोरेट नापसंद करने लगे क्योंकि 'लाभ में हानि' उन्हें अरुचिकर लगी। उसी समय इस वर्ग को यह संदेश भी मिला कि वे विरोध की सहायता करें जो उनके लाभ के मार्ग में रोड़ा नहीं अटकाएगा। बाजार और विज्ञापन की शक्तियां भी नहीं चाहती थीं कि उनके उडऩे वाले घोड़े की लगाम कोई खींचे। लाभ, लोभ और लालच की शक्तियां एक 'भलेमानस' को सहन नहीं कर पा रही थीं। अफसर वर्ग को सरकारी वेतन के साथ उद्योगपतियों से भी अतिरिक्त 'वेतनalt16 मिलता था और इस तरह की खबरें भी हैं कि भारत में मौजूद चीनी एजेन्ट 'तीसरा वेतन' देने लगे कि भारत की विकास दर रुक जाए। इसके समानांतर एक षडयंत्र दो दशकों से चल रहा है जिसने सेना, पुलिस और प्रशासन में अंधी धार्मिकता को स्थापित कर दिया था।

अफसरशाही से उभरा पहला प्रधानमंत्री उसी अफसरशाही द्वारा ठगा गया। मनमोहन सिंह इन षडयंत्रों के कारण 'गुलिवर्स ट्रेवेल्स' के नायक की तरह अपने ही देश के बदले हुए टापू स्वरूप में चहुं ओर रस्सियों से बंधे व्यक्ति हो गए जिसकी छाती पर बौने नृत्य कर रहे थे। अंतिम दो वर्षों के अटके हुए फैसलों का कारण उपरोक्त षडयंत्र और बौनों द्वारा बांधा जाना है। मनमोहन सिंह ने अपने आर्थिक उदारवाद द्वारा मध्यमवर्ग नौकरी पेशा वर्ग को अवसर दिए परंतु मुंह में विकास का खून लगे इन खूंखार शेरों के बढ़ते सपनों को अनदेखा करके मनमोहन सिंह ने 'शाइनिंग इंडिया' के परे पसरे बड़े गरीब वर्ग की ओर ध्यान दिया और भ्रष्ट अफसरशाही ने गरीब वर्ग तक कुछ नहीं पहुंचने दिया अर्थात श्रेष्ठि वर्ग के 'लाभ में हानि', मध्यम वर्ग के फैलते स्वप्र संसार और गरीब वर्ग तक केवल सपने ही पहुंचे- इन तीन चीजों ने पराजय का पथ प्रशस्त किया।

मनमोहन सिंह ग्रीक ट्रेजडी के नायक रहे और उनके उदारवाद ने सिनेमा, टेलीविजन और साहित्य को कॉमेडी शो का तलबगार बना दिया था, अत: उनकी त्रासदी फूहड़ हास्य के संसार में कैसे बयान की जा सकती है।