कॉर्वस - भाग 2 / सत्यजित राय / हेमन्त शेष
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16 नवम्बर
घटनाओं को डायरी में मैं कल ही दर्ज करना चाहता था पर रात को मुझे इस बात का कतई कोई अंदाज न था कि आने वाले कुछ घण्टों में ऐसी खतरनाक घटनाएं घटेंगी। सवेरे की सभा में सबसे उल्लेखनीय था - जापान के पक्षी विशेषज्ञ तोमासाका मोरीमोती का काफी दुरूह भाषण, जिसमें मैं कॉवर्स को भी अपने साथ ही ले गया था। कोई एक घण्टे तक धाराप्रवाह बोलते रहने के बाद अचानक मोरीमोती महाशय यह भूल गए कि उनकी वार्ता का असल सूत्र था क्या? और उलझन में लगे बगलें झांकने। तभी एकाएक अपनी चोंच को मेरी कुर्सी के हत्थे पर उत्साह में खटखटाते हुए कॉर्वस ने जैसे तालियां बजा दी। इसे सुनना था कि भीड़ बेतहाषा हंसी से फूठ पड़ी और मैं तो मारे शर्म के बस जमीन में ही गड़ गया।
हमें होटल में दोपहर का भोजन कुछ प्रतिनिधियों के साथ करना था। वहां जाने से पहले मैं अपने कमरा नं0 71 में पहुंचा। कॉर्वस को उसके पिंजरे में छोड़ा, उसे खाना दिया और कहा “तुम यहीं रहो। मैं भी लंच खा कर अभी वापस आ रहा हॅूं। “ आज्ञाकारी कॉवर्स ने सहमति से सिर झुका दिया।
जब तक मैं खाना खा कर लौटा ढाई बज चुके थे। ज्यों ही कमरा खोलने के लिए मैंने चाबी की-होल में डाली, मुझे पता चल गया कि कमरा पहले से ही खुला हुआ था।
मेरा खून आशंका से जम गया। कमरे में पहुंचते ही तो मुझ पर जैसे बिजली गिर पड़ी। बिल्कुल वही हुआ जिसका अंदेशा था।
कॉर्वस और उसका पिंजरा कमरे से गायब था।
तूफान के बगूले की तरह मैं बाहर कॉरीडोर में आया। कुछ ही दूर दो कमरों के नीचे रूमबॉय का कमरा था। वहां मैं भागता हुआ पहुंचा। दो रूमबॉय वहां गुमसुम खड़े थे - भावरहित। उनकी फटी फटी आंखें इस बात का गवाह थीं कि उन्हें हिप्नोटाइज़ किया गया था। मैं ग्रेनफैल के कमरे 107 की तरफ दौड़ पड़ा। उसे संक्षेप में जल्दी जल्दी सारी बातें कह सुनाईं। हम दोनों तेजी से नीचे स्वागत कक्ष तक पहुंचे।
“आपके कमरे की चाबियां किसी ने हम से नहीं मांगीं। कमरे की डुप्लीकेट चाबी रूमबॉय के पास रहती है। हो सकता है उसी ने किसी को दी हो।” क्लर्क ने हम से कहा। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था कि रूमबॉय किसी और को मेरे कमरे की चाबी दे दे। मैं समझ गया कि ऑर्गस ने उस पर जादू डाल कर चाबियां हथिया लीं थीं और गुपचुप अपना काम कर डाला था।
अन्त में होटल के दरबान से असल कहानी का पता लगा। उसने बतलाया कि कोई आधा घण्टा पहले ऑगर्स अपनी सिल्वर कैडलक में होटल आया था। कोई दस मिनट बाद वह हाथ में एक सेलोफेन बक्स लेकर बाहर निकला और वापस लौट गया था।
सिल्वर कैडलक! वह कहां गया होगा? अपने घर या कहीं और? हमने सोचा।
अन्ततः हमने कॉवेरूबियस की मदद लेने का फैसला किया। उसने कहा “ऑर्गस कहां रहता है यह जानना कोई कठिन काम थोड़े ही है। पर उसका घर का पता जान कर भी क्या होगा? वह कॉर्वस को चुरा कर कोई घर थोड़े ही गया होगा। कॉर्वस पर हाथ साफ कर तो वह कहीं छिप जाने की सोचेगा। हां, अगर वह शहर से बाहर कहीं जाना चाहता है तो इसका केवल एक ही मार्ग है। मैं तुम्हें एक बढ़िया कार, ड्राइवर तथा पुलिस की मदद दिलवाए देता हूं। आधे घण्टे के भीतर भीतर रवाना हो जाओ। राजमार्ग पकड़ लो। अगर तुम्हारी किस्मत तेज हुई तो अब भी शायद ऑर्गस हाथ आ सकता है।”
कोई सवा तीन बजे हम निकल चले। चलने से पहले मैंने होटल से फोन किया और पता लगाया कि ऑर्गस-जिसका असली नाम डोमिगो बार्टोलेम सरमैंन्टोे था - अपने घर पर नहीं था। हम दो सशस्त्र पुलिसमैंनों के साथ पुलिस कार में थे। पुलिस वालों में से एक नौजवान का नाम था कैरिरस और उसे ऑर्गस के बारे में कई उपयोगी बातों की जानकारी थी। उसने बतलाया कि सेन्टियागो शहर में और उसके आसपास ऑर्गस के छिपने के बहुत से ठिकाने हैं। ऑर्गस उन्नीस साल की उम्र ही से जादू के प्रोग्राम दे रहा है। उसने पिछले कोई चार साल से ही अपने कार्यक्रमों में पक्षियों का इस्तेमाल शुरू किया है और इसी से वह एकाएक बहुत लोकप्रिय हो उठा है।
“क्या वह वास्तव में करोड़पति है?”
“लगता तो ऐसा ही है” कैरिरस बोला “ पर इस आदमी का स्वभाव इतना शक्की और अजीब है कि इसके सब दोस्तों ने इससे किनारा कर लिया है।”
शहर पीछे छोड़ कर हम राजमार्ग पर आ तो गए पर एक और नई समस्या उठ खड़ी हुई। एकाएक सड़क दो अलग अलग हिस्सों में बंट गई थी और हम दोराहे पर खड़े थे। दो सड़कों के बीच एक रास्ता तो जाता था उत्तर में लॉस ऐंडीज़ के पहाड़ों की ओर और दूसरा जाता था वाल्पराइसो। पर सौभाग्य से सड़कों के मुहाने पर बीच में बने एक पैट्रोल पम्प से जब पूछताछ की तो पता लगा कुछ ही देर पहले सिल्वर रंग की एक कैडलक वाल्पराइसो की तरफ जाने वाली सड़क पर गई तो है।
हमारी मर्सडीज़ फिर बन्दूक से निकली गोली की तरह भाग छूटी। मैंने सोचा कि कॉर्वस को आर्गस कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा क्योंकि उसे तो उसकी सख्त ज़रूरत है। पर कल रात को कॉर्वस के व्यवहार को देख कर मैं समझ चुका था कि उसे जादूगर फूटी आंखों नहीं सुहाया था। मेरे सामने कॉर्वस की मानसिक-यंत्रणा मूर्त हो उठी। एक शैतान के षिकंजे में फंस कर वह किस कदर हताश और दुखी होगा मैं अनुभव कर सकता था।
रास्ते में हमें दो पैट्रोल पम्प और मिले और दोनों ने इस बात की पुष्टि कि कि उन्होंने एक सिल्वर कैडलक को उधर से गुजरते देखा है।
स्वभाव से मैं आशावादी हॅूं। पहले भी बड़ी से बड़ी परेशानियों से मैं अप्रभावित निकला हूं। मैंने आज तक अपने किसी भी अभियान में नाकामयाबी का मुंह नहीं देखा। पर मेरे साथ बैठा ग्रेनफैल निराशा में डूबा सिर हिला रहा था। “भूलो मत शंकु ..... तुम्हारा साबका एक बेहद शातिर आदमी से पड़ा है। उसने कॉर्वस पर हाथ साफ कर ही डाला है तो इतनी आसानी से वह उससे जुदा होने वाला भी नहीं।”
“और सीनोर ऑर्गस हथियारों से भी तो लैस होगा” केरिरस ने मानो जलती आग में घी डाला- “मैंने उसे अपने जादू के खेलों में असली रिवाल्वर चलाते भी देखा है।”
रास्ता ढलवां था। एक हजार छः सौ फुट ऊंचे सैन्टियागो शहर की तुलना में अब हम इस समय करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर थे। हमारे पीछे पहाड़ों की श्रृंखलाएं सघन से सघनतर हो रही थीं। हम चालीस मील तो चल ही चुके थे। और अगले चालीस मील का मायना था कि हम वाल्पराइसो में होते। ग्रैनफैल का लटका हुआ चेहरा देख कर मुझ पर भी निराषा तारी होने लगी। अगर वह राजमार्ग में ही पकड़ में नहीं आता तो हमें उसे शहर में खोजना होगा जो कि इससे भी सौ गुना कठिन काम होता। अचानक सड़क की ऊंचाई बढ़ने लगी। ऐसा लगा जैसे गाड़ी किसी पहाड़ी पर चढ़ रही हो। फिर गहरी ढलान का दौर शुरू हुआ। सड़क के किनारे ऊंचे ऊंचे पेड़ थे और वे हवा में सिर हिला रहे थे। कुछ पर आदमी नाम की कोई चीज़ हमें देखने को नहीं मिली। रास्ता बिल्कुल सुनसान था। कोई चौथाई मील दूर नीचे हमें सड़क पर एक चीज़ चमकती दिखलाई पड़ी।
करीब चार सौ गज से दृष्य और भी साफ हुआ। धूप में चमचमाती हुई एक कार सड़क के किनारे रूकी हुई थी।
हम और नजदीक पहुंचे।
कैडलक। सिल्वर कैडलक। हां, वही थी यह। हमारी मर्सडीज इसके पीछे आ कर थम गई। हमें अब पता लगा कि वह कार रूकी हुई क्यों थी? वह पेड़ के तने से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। सामने का हिस्सा तो एकदम चकनाचूर ही हो गया था।
कैरिरस के मुंह से निकला - “अरे। यही तो मिस्टर ऑर्गस की कार है।” “इसी रंग की सैन्टियागो में एक कार और है जो बैंकर मिस्टर कैलडेमस की है। पर इस गाड़ी को तो मैं इसकी नंबर प्लेट से भी जानता हॅूं।”
कार तो मिल गई पर ऑर्गस कहां गया? कॉर्वस का भी कोई पता न था। गर्दन डाल कर मैंने कार की खिड़की से भीतर झांका।
ड्राइवर की सीट के बगल में कॉर्वस का पिंजरा खाली पड़ा था। इसकी चाबी मेरी जेब में थी। मैंने इसे ताला नहीं लगाया था, दोपहर को वैसे ही बन्द किया था। ऐसे में कॉर्वस दरवाजा खोल कर पिंजरे से बाहर भी आ सकता था। पर वह आखिर था कहां?
अचानक हमने कुछ दूर से आती एक तेज चीख सुनी। कैरिरस तथा दूसरे सिपाही की उंगलियां बन्दूकों पर जम गईं। पर ड्राइवर बड़ा डरपोक निकला।
“जादूगरों के नाम से ही मुझे तो जाने क्यों बड़ा डर सा लगता है” वह डर कर जमीन पर बैठ गया और लगा प्रार्थनाएं करने।
ग्रेनफैल का चेहरा भी लटक गया था।
“तुम वहीं कार में रहो ग्रेनफैल!” मैंने उसे सलाह दी।
चीख-चिल्लाहटें और पास आ गर्इं। सड़क के बाईं तरफ पेड़ों और झाड़ियों के नीचे से कोई शोर मचा रहा था। कल रात मैंने ऑर्गस को केवल धीमे फुसफुसाते स्वर में ही बोलते सुना था इसलिए पहचान पाने में थोड़ी देर जरूर लगी पर मैं समझ गया कि यह आवाज ऑर्गस की ही थी। वह स्पेनिश में चुन चुन कर कॉर्वस को गालियां दे रहा था। मैंने कई बार उसे कॉर्वस के लिए “षैतान” कहते सुना।
“कहां है वह बदमाश कौआ? कॉर्वस सत्यानाश जाए कॉर्वस का शैतान कहीं का....!”
अचानक ऑर्गस की धाराप्रवाह गालियों की बौछार जैसे थम सी गई। उसकी और हमारी निगाहें चार हुईं। हाथ में रिवाल्वर लिए वह हम से कोई सौ कदम दूर झाड़ियों के पास खड़ा था।
कैरिरस चिल्ला पड़ा - “पिस्तौल नीचे रख दो मिस्टर ऑर्गस......” पर वाक्य पूरा होने से पहले ही कानों के पर्दे फाड़ती उसकी एक गोली चली और कार के दरवाजे में घुस गई। कैरिरस फिर चीखा “मिस्टर ऑर्गस! हम पुलिस वाले हैं! हथियार फैंक दो। अगर तुमने अपनी रिवाल्वर नहीं फेंकी तो हम भी गोली चलाने पर मजबूर हो जायेंगे।”
“तुम मुझे मारोगे?” ऑर्गस चिल्लाया। “क्या वास्तव में पुलिस आ गई है? पर मुझे तो कुछ भी नहीं दिखलाई देता।”
ऑर्गस अब हम से केवल पच्चीस गज़ दूर था। मैं एक ही पल में उसकी असलियत समझ गया। आंखों पर चश्मा न होने की वजह से वह बिल्कुल अंधा सा हो गया था और उल्टी-सीधी गोलियां दाग रहा था।
आखिर में ऑर्गस ने पिस्तौल फैंक ही दी और लड़खड़ाता सा आगे आया। पुलिस वाले भी तेजी से आगे बढ़े। मैं जान गया कि संकट की इस घड़ी में अब ऑर्गस की कोई बाजीगरी काम न आएगी। वह सचमुच बहुत दयनीय हालत में था। कैरिरस ने आगे बढ़ कर जमीन पर पड़ा उसका पिस्तौल उठा कर अपने कब्जे में ले लिया। ऑर्गस बड़बड़ा रहा था........वह कौआ न जाने कहां मर गया सत्यानाश हो जाये उसका....... कितना चालाक था वह....
ग्रेनफैल फुसफुसा कर मुझ से कुछ कहने की कोशिश कर रहा था। मैंने सुना वह कह रहा था - “षोंकू... कौआ वहां है...वहां।” मैं नहीं समझा उसका मतलब क्या था? मुझे तो कॉर्वस कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ रहा था। तभी ग्रेनफैल ने सड़क के पार एक ऊंचे पेड़ की चोटी की तरफ इषारा किया।
मैंने पाया मेरा दोस्त, मेरा शागिर्द, चिरपरिचित प्यारा कॉर्वस पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बैठा हमारी तरफ प्यार भरी निगारों से ताक रहा था।
मैं पेड़ की तरफ भागा।
पर वह किसी पतंग की तरह शान से तैरता हुआ हमारी मर्सडीज़ की छत पर उतर आया।
कॉर्वस ने झुक कर चोंच खोली और मेरे कदमों में रख दिया - ऑर्गस का माइनस बीस का वही हाई पावर चश्मा, जिसकी सुनहरी कमानियां शाम की ढलती हुई धूप में चमचमा रहीं थीं।
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