कॉलम लेखन में निर्मल आनंद / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 नवम्बर 2021
आज से यह कॉलम 27 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इसके लिए मैं अपने परिवार, भास्कर परिवार और पाठकों को धन्यवाद देता हूं। इसे लिखते-लिखते मैं एक बेहतर इंसान बनने की प्रक्रिया से गुजरा हूं। इस कॉलम को लिखने में मेरे मित्र कुमार अंबुज, हेमचंद पहारे और डॉक्टर शिवदत्त शुक्ला ने समय-समय पर मुझे मदद की और जानकारियां उपलब्ध कराई हैं। मैंने 1985 से 1995 तक भास्कर में साप्ताहिक कॉलम लिखे हैं। जब 1995 में भास्कर परिवार ने मुझसे मनोरंजन पर प्रतिदिन प्रकाशित होने वाला स्तंभ लिखने को कहा उस समय तक भारत के किसी भी समाचार पत्र में मनोरंजन पर इस तरह का कॉलम प्रकाशित नहीं होता था। साप्ताहिक सामग्री जरूर होती थी। भास्कर की ओर से सुझाव दिया गया कि कॉलम में जानकारियां मनोरंजन और कुछ दार्शनिकता का समावेश हो। मेरा प्रयास रहा है कि मेरे लेखन से पाठक, तर्क और वैज्ञानिक सोच-विचार कर अपने फैसले लें। मैंने तर्क सम्मत विचार की बात बार-बार की परंतु कुछ पाठकों ने उसे भी खारिज किया। कुछ पाठक लंबे फासले तय करके मुझ तक भी पहुंच गए।
एक प्रशंसक ने कहा कि मेरे लेखन में उसे बहुत सी बातें समझ नहीं आतीं परंतु वह जानता है कि बात महत्वपूर्ण है। इससे मैंने यह सीखा कि बिना पूरी बात समझे भी बहुत कुछ मिलता है। लेखिका एजरा पाउंड की कविताएं भी बिना पूरी तरह समझे मुझे अच्छी लगी हैं। इस यात्रा में मुझे महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा 2013 में सुब्रमण्यम हिंदी सेतु पुरस्कार दिया गया। जानकारी प्राप्त हुई है कि अमेरिका में बच्चे हिंदी भाषा सीखने के लिए ‘परदे के पीछे’ कॉलम पढ़ते हैं ताकि सरल भाषा में विचारों को अभिव्यक्त करना सीख सकें। विचार करने और लिखने में मिला निर्मल आनंद ही मेरे लिए असली पुरस्कार है। लेख का विषय चुनकर उसे फिल्म और साहित्य से जोड़ने में समय लगता है। कुछ अदृश्य जंजीरें भी जकड़े रहती हैं। निदा फाजली फरमाते हैं कि ‘यह जीवन है शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक है सारा सैर-सपाटा।’ गौरतलब है कि गुज़िश्ता वर्षों में चार बार मेरी शल्य चिकित्सा हो चुकी है। महान लेखक अन्तोन पावलोविच चेख़व प्रशिक्षित डॉक्टर रहे हैं। उनके एक प्रसिद्ध कथन का आशय कुछ इस तरह है कि डॉक्टर का पेशा उनकी पत्नी की तरह है और साहित्य रचना उनकी प्रेमिका की तरह रहा है। श्रीमती ऊषा चौकसे द्वारा बताई गई कविताएं भी मेरे लेखों में शामिल रही हैं। वे हर लेख में मात्राएं इत्यादि दुरुस्त करती रही हैं।
गोया की मेरे एक मित्र की फिल्म का एक सितारा समय नहीं दे रहा था। महज 4 दिन की शूटिंग शेष रह गई थी। मैंने अपने कॉलम में यह विवरण दिया तो सितारे ने मानहानि केस की धमकी दी। मैं क्षमा पत्र लिए भास्कर दफ्तर पहुंचा। भास्कर प्रबंधन ने सारी बात जानकर क्षमा पत्र प्रकाशित नहीं किया। सितारे से अदालत में निपटने की बात की। रणधीर कपूर ने सितारे को समझाया कि उसने गलती की है और वह अदालत में जीत नहीं सकेगा। मामला सुलझ गया अत: अखबार प्रबंधन द्वारा पत्रकार का साथ दिया जाना जरूरी है।
गुजरात के विद्यालय में एक बार मेरे भाषण के विषय ‘महात्मा गांधी और सिनेमा’ पर प्राचार्य द्वारा एतराज किया गया कि गांधीजी और सिनेमा का तो कोई संबंध ही नहीं है। मैंने उनसे निवेदन किया कि भाषण सुनें तो आपको ज्ञात होगा कि गांधी आदर्श ने ही चार्ली चैपलिन तक को फिल्म की प्रेरणा दी है। बहरहाल प्राचार्य ने पूरा भाषण पसंद किया। उन्हीं के निवेदन पर मैंने ‘गांधी और सिनेमा’ पुस्तक लिखी। भोपाल की श्रीमती रितु शर्मा पांडे ने मेरी जीवन यात्रा लिखी है। एक संकलन की भूमिका विष्णु खरे और दूसरी की निदा फ़ाज़ली ने लिखी थी। राजकमल प्रकाशन ने ‘राज कपूर सृजन प्रक्रिया’ प्रकाशित की। नई किताब ‘फिल्मी जलसाघर’ सेतु प्रकाशन दिल्ली द्वारा जारी होगी। बहरहाल यात्रा जारी है। थक जाने पर राह खुद ही यात्री को अपनी बाहों में लेकर चलने लगती है।