कोई दर्द के बीज बोता नहीं / ममता व्यास
एक मित्र बड़े हैरान, परेशान से मेरे पास आये बोले आजकल बहुत दुखी हूं जि़न्दगी में कोई रस नहीं रह गया। हजारों जगह प्रेम किया हमेशा नाकामी क्यों मिलती है। दर्द और दुख जैसे जीवन के हिस्से बन गए हैं। प्रेम खोजने गया था दुख मिला क्यों? मैंने कहा अबकी बार दर्द खोजने जाना प्रेम मिलेगा। वो हैरानी से देखने लगे। मैंने आगे कहा जब आप प्रेम और खुशी को खोज रहे हैं तो दर्द पीछे पड़ रहा है। तो इस बार दर्द की खोज की जाए यकीनन प्रेम मिलेगा। आप किसी का दर्द महसूस तो कीजिये। प्रेम खुद-ब-खुद आएगा। दोनों ही गाँव में रहते हैं एक को आवाज दो दूजा संग आ जाता है। खुशी और गम, दर्द और चैन सब एक-दूसरे के ही हिस्से हैं। आप खुशी को पाने जायेंगे तो गम खुद ही बिना बुलाये चला आएगा दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
दरअसल आज, हम सभी सिर्फ खुश होना चाहते हैं हँसना चाहते हैं कोई भी नहीं चाहता कि उसका वास्ता आंसुओं से पड़े और सारी उम्र खुश होने की तीव्र इच्छा में न जाने कितनों को दुखी किये जाते हैं।
लेकिन यदि हम सभी के हिस्सें में खुशियाँ आ गयी तो बेचारे गम कहाँ जायेगे दुख कहाँ जाकर अपना बसेरा बनायेंगे? उन्हें भी तो अपने होने का अहसास होना चाहिए।
हम सभी दिल की बगिया में खुशियों के बीज बोते हैं। दिल की जमीन पर सपनों के पौधे रोपते हैं फिर क्यों कर उनमें दुख के कांटे निकल आते है? हमने तो सिर्फ सुख, खुशी और आनन्द को ही न्यौता दिया था ये बिन बुलाये अतिथि गम, दर्द, दुख क्यों कर चले आये? और हम इन्हें देख दिल का दरवाजा बंद करना चाहते हैं जबकि हमें इन्हें गले लगाना चाहिए। ये वो मेहमान है जो एक बार आपका हो गया तो जन्मों तक आपका साथ निभाएगा। खुशियां आपसे फ्लर्ट करती हैं और दर्द आपसे सच्ची मोहब्बत-आपके साथ चलते हैं मीलों तक, आपके अकेलेपन के साथी होते हैं आंसू, आपकी तन्हाइयों को रौशन करती हैं यादें तो फि र कौन सगा हुआ? बेशक गम ही अपना है।
जि़न्दगी इतनी लम्बी है कि यहाँ मीलों तक आपका साथ निभाने धूप ही आएगी। छांव आएगी भी तो पल दो पल, चांदनी दिखेगी तो भी क्षण भर के लिए इसलिए आप गम को देख ना घबराएं और आखिरी बात।
हर व्यक्ति अपनी जि़न्दगी में खुशियों के ही बीज बोता है, कोई भी जान बूझ कर दर्द उगाना नहीं चाहता, लेकिन ये वो खरपतवार है जो स्वयं ही उगती है किसी ने कहा है कि, उसे भूल जाऊं ये होता नहीं कोई वक्त हो दर्द सोता नहीं।
ये वो फसल है जो उगे खुद-ब-खुद कोई दर्द के बीज बोता नहीं।