कोठी नम्बर छप्पन / श्याम सुन्दर अग्रवाल

Gadya Kosh से
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गाँव से आई भागवंती पूछ-ताछ कर जब तक आनंद नगर पहुँची, सूर्य अग्नि-पिंड बन कर उसके सिर पर लटक रहा था। उसके भानजे ने शहर के इसी मुहल्ले में पिछले दिनों नई कोठी बनाई थी। उसी से मिलने आई थी भागवंती। गरमी बढ़ गई थी और गलियाँ सूनी पड़ी थीं। भागवंती साठ वर्ष की हो चुकी थी। वह घुटनों को सहारा देती धीरे-धीरे चल रही थी। वह गाँव के स्कूल में पढ़ने जाती रही थी, इसलिए थोड़ा बहुत पढ़ लेती थी। उसने कई कोठियों के नंबर पढ़े, परंतु भानजे की छप्पन नंबर कोठी उसे नज़र नहीं आई। स्कूल से आ रही सुन्दर वर्दी पहने दो लड़कियाँ दिखाई दीं तो भागवंती को थोड़ी आस बंधी। उसने उन्हें रोक कर पूछा, “बेटे, छप्पन नंबर कोठी किधर है?” लड़कियों ने एक-दूसरी की ओर हैरानी से देखा और फिर, “मालूम नहीं।” कह कर अपनी राह चली गईं। भागवंती थोड़ा आगे बढ़ी तो लगभग बारह वर्ष का एक लड़का साइकिल पर आता दिखाई दिया। उसने लड़के से भी छप्पन नंबर कोठी बारे पूछा। लड़का भी लड़कियों की तरह हैरान हो कर उसकी ओर देखने लगा तो वह बोली, “बादली वाले बिरजू की कोठी है। अभी बनाई है, पाँच-छह महीने हुए।” “मुझे नहीं पता।” कह कर लड़का साइकिल पर सवार हो गया। कई घरों के दरवाजों पर दस्तक देने के पश्चात अंतत: भागवंती छप्पन नंबर कोठी तक पहुँच ही गई। कोठी का गेट खुला तो वह हैरान रह गई, सामने वही साइकिल वाला लड़का खड़ा था। “आपका पोता है मौसी जी।” जब भानजे की पत्नी ने लड़के के बारे में बताया तो वह बोली, “अरी बहू, यह कैसा बेटा है तेरा! इसे तो अपने घर का नंबर भी नहीं पता।” बहू ने लड़के की ओर सवालिया नज़रों से देखा तो वह बोला, “छप्पन नंबर-छप्पन नंबर करे जा रही थी। अपनी कोठी का नंबर कोई छप्पन है?…अपना नंबर तो फिफ्टी-सिक्स है।”