कोढ में खाज / रामस्वरूप किसान
फाग आळै दिन सूरज उगाळी सूं पैलां ई राजियो मैतर होळी रै नेग सारू आ धमक्यो। म्हैं उठ्यो ई हो। अजे चा ई कोनी पी ही। म्हनैं झूंझळ-सी आई। बेटी रा बाप, अैड़ी के भाजण होयरी है। झांझरकै ई आयगी मांगत। इत्ती ई थ्यावस कोनी। दिन ई कोनी ऊगण दियो। गांव के भाजै कठैई। मांची रै उठाण ई भाज छुटी गूंग!
म्हारी झूंझल गेड़ चढै ही कै राजियो पगां लागतो बोल्यो- 'राम-राम मायतां। सोच्यो, भलै घर सूं बूणी ठीक रैसी।' म्हैं ऊपर सूं तळै तांई सीतळ हुग्यो। उण रो सिर पळूंसतै थकां पूछ्यो-
'होळी किंयां रैयी?'
'ठीक ई रैयी मायतां। पण म्हारै तो बारणो आवै जद खाज आज्यै। अर खाज तो भोत बर आज्यै पण अबकाळै खाज मांय कोढ और हुग्यो।'
उल्टै मुहावरै पर हांसी नै दाबतै थकां म्हैं बोल्यो-
'किंयां? म्हैं समझ्यो कोनी।'
'थे के समझो मायतां। म्हारी गरीबां री बिडम्बणा थे कोनी समझ सको।'
'फेर ई। बता तो सरी।'
'के बतावूं। म्हैं भोत दुबध्या में हूं। तावळ कर'र नेग द्यो थे। छिप्यै सूं पैलां-पैलां गांव मे हर घर रा दो गेड़ा काटणा चावूं म्हैं।'
'दो गेड़ा?'
'हां, आ ई तो कांस है। रात चांद रो घैण हो। होळी अर घैण भेळा हा। म्हारै देखण में ओ पैलो कांड है। होळी अर घैण कदे ई भेळा नीं आया।'
उण अफसोस साथै माथै में ताळी मार'र कैयो। अर उण रो कांपतो हाथ म्हारै साम्हीं पसरग्यो।
'तावळ करो मायतां। जिको पूण-पावलो देणो है, तावळा-सा ल्या द्यो। म्हनै हर घर रा दो गेड़ा काटणा है।'
म्हैं उळझण में पड़ग्यो। म्हारै कीं समझ में नीं आयो। हर घर रा दो गेड़ा? होळी अर घैण भेळा होवणो एक कांड? म्हैं राजियै री आंख्यां में देख्यो। थोड़ी-थोड़ी लाल ही। स्यात रात री बच्योड़ी गळ में गेर'र चाल्यो हो। म्हैं उण नै नीचै सूं ऊपर तांईं जोयो। डील में कंपकंपी। चै'रै पर बेताबी। लाग्यो, बो भोत बेओसाण है। उण रै भीतर एक ऊंतावळ रो तूफान है। बो धूजतै होठां भळै बोल्यो-
'ईंयां के देखो म्हारै कानी। रात डफ पर भोत नाच्यो हो। दिनगै भोत ओखो उठीज्यो। ईं सारू दो पैक मार राख्या है।... ल्यावो थे नेग ल्यावो। दूसरो गेड़ो और मारणो है।'
'पूरी बात तो बता। म्हैं तो कीं कोनी समझ्यो।'
'थे कोनी समझो काका, म्हारै गरीबां री बात।'
'समझूं के डांग। यार थूं समझावण आळै तरीकै सूं बतावै ई कोनी। आडी-सी आडै। सावळ बता।... पैलां तो थूं बैठ। ओ ले मूढो।'
'ना-ना-ना ! बैठूं कोनी। कैय दियो नीं, मरण नै ई बिरियां कोनी। खड़्यो-खड़्यो ई बता देस्यूं। ...हां के पूछै हा थे?'
'तेरै बाप रो पग पूछै हो।... के पूछै हा थे! थनै ओ ई ठा कोनी म्हैं के पूछूं ?... हां, पैलां तो आ बता कै थूं ईंयां भूताड़ीजेड़ो-सो किंयां हो‘रयो है? बिचळाइजेड़ो-सो। बिदकोर ढांढो-सो।'
उण माथै में भळै ताळी मारी-
'सारी रात रोयो अर एक ई मरयो । अर बोई पड़ोसी रो। वा रै वा काका! पूछै, बिचळाइजेड़ो-सो किंयां हो‘रयो है। तो और रांडी रोणो ई के है। ओ ई तो कजियो है। होळी अर घैण भेळा। अर ऊपर सूं रंडारू नै चढगी ताव। होगी नीं कोढ में खाज।'
'यार, तेरी भासा ई बड़ी पेचीदी है। अब तांईं तो कैवै हो कै खाज में कोढ हुग्यो अर अब कैवै कोढ में खाज।'
म्हैं मुक्को बा'यो। बो टेढो होय'र टाळग्यो। अर हांसतै थकां बोल्यो-
'एक ई बात है काका। खाज में कोढ कैयद्यो भावूं कोढ में खाज। दोनू रळ्यां पछै ईसां रै बटका भरवा द्यै।'
'हां तो तेरै अै दोनूं रळ्या किंयां? म्हैं मुळकतै पूछ्यो।'
'सुणो काका, गांव रा कारू हां। कार करां। गांव नै मिंदर बरगो राखां। पण समाज री रिवाज आ है कै म्हानै पगार कोनी मिलै। काम रै बदळै नेग मिलै। अेडै-टेडै, बार-त्यंूहार, अर मरणै-परणै मिलै म्हानै ओ नेग। इण रै अलावा दो टेम रो आटो ई नित मांग'र ल्यावां। म्हे म्हारी भोळप रै कारण म्हारी मजूरी ई मंगतां री भांत घर-घर मांग'र ल्यावां। अेक गुमेजी मजूर री भांत ठरकै सूं नीं लेय सकां म्हे म्हारी पगार। बडेरां री जड़्योड़ी इण भोळप री बेड़ी नै म्हैं तोडं़ूगा। क्यूं कै लोग म्हानै मंगता समझण...।'
'अरै तोड़ देई यार। म्हैं तेरै सागै हूं। ओ विसै भोत लाम्बो अर गै'रो है। इण पर कदे फेर बतळास्यां। पैलां तो आ बता तेरै कोढ में खाज किंयां होई?' म्हैं राजियै री बात रै बिचाळै ई पूछ्यो।
'अरै म्हैं ई बावळो हूं। फालतू ई बकग्यो। टेम कठै है आं बातां नै। अब म्हैं मैन मुद्दै पर आवूं। बात ईंयां है काका, म्हे मांगां हां। होळी नै ई मांगां अर घैण नै ई। फरक ओ कै होळी नै पीसा अर घैण नै दाणा। थानै के ठाह कोनी कै घैण री करड़ाई उतारण सारू थे हमेस ई सरधा सारू दाणा म्हारै खातर टाळ'र छोडो हो। ओ घर रो आर-बार हुवै। जिकै ने करड़ो दाणो ई कैवां। ओ करड़ो दाणो म्हे खींचां। ईंयां कै थारै घरां री करड़ाई खींचां म्हे। खैर जाण द्यो। म्हैं भळै विसै सूं हटग्यो।... हां, अब थे सोचो, थारी बीनणी नै ताव चढगी। नीं तो घैण रा दाणा बा मांग ले ज्यांवती। अर म्हैं होळी रो नेग। अब अै दोनूं काम म्हनै ई करणां पड़सी। अर म्हनै ओ ई ठा है कै तड़कै म्हनै कोई बाळ ई फाडग़े कोनी द्यै। क्यूं कै मैतरां रा घर पच्चीस है। भाज्या फिरै सगळा। लुगाई-टाबरां समेत ढाण होर्या है मादर...।' अर ऊपर सूं गांव में भांड आर्या है जिका न्यारा। गळ में ढोल घाल'र ठुरियां होर्या है। सगळै गांव नै छाण'र छोडसी भैण रा भाई। तड़कै म्हनै कुण बड़ण द्यै घरे। म्हैं अेकली ज्यान कठै-कठै हो ल्यूं काका! म्हारी आंख्यां साम्हीं म्हारो लाटो लूटीजण लागर्यो है। मेरो गांव गैरां रै हाथां दुहिजण लागर्यो है। ऊंतावळ करो होळी रो नेग द्यो। अर घैण रा दाणा घाल'र छोड द्यो। दाणां सारू आथण तांईं दूजो गेड़ो मारूंगा। अब तो समझ में आयगी हुसी कोढ में खाज आळी बात। म्हारी चांदी तो तद बणती जद होळी अर घैण न्यारा-न्यारा आंवता। कै फेर लुगाई बीमार नीं पड़ती। पण के सा'रो पड़ै। तकदीर रो पतळौ भोत हूं। कर्म में कांकरो है। टीकाळी बगत माथो सदां ई टळै।
राजियै रो डील थर-थर कांपै हो। उण रै धीजै रो बाँध टूटै हो। भीतर री गति भूचाळ रो रूप लेय राख्यो हो। बो आखै गांव नै अेक ई झटकै मांय दूहणो चावै हो। हालत आ ही कै उण कनै चमत्कार हुवै तो अेक राजियै रा हजार राजिया बण'र पूरै गांव नै छिनेक मेें चूंट'र सरीकियां रो मूं फूंक-सो कर द्यै। पण के सारौ पड़ै। काळजै मेें पगबळणी रै सिवा उण कनै कीं कोनी हो। फगत डर हो। नेग री कुड़्योड़ी खेती पर सरीकियां रै झंखेडै़ अर औळां रो डर। इत्ती बडी खेती अेकली ज्यान किंयां लूणै। बो चेताचूक-सो हुयोड़ो म्हारै साम्हीं खड़्यो हो। म्हैं उण रै पसर्योड़ै हाथ पर भावुकता में पचास रो लोट धर दियो। जको सामान्य नेग सूं दस गुणो हो।
बो ऊंतावळ में माथै रै लगावणो ई भूलग्यो अर बिना समट्यो ई जेब में दाब'र बारणै सूं निकळतो ई दिख्यो।
दूजै ई पल म्हैं सोच्यो, पचास रो लोट देय'र भोत गळती करी। इण नै पचास रो लोट नीं देवणो चइयै हो। जे इणी भांत लगातार पंाच-सात घरां में पचास-पचास रा लोट मिलता रैया तो राजियो पागल हो सकै। क्यूं कै इण हिसाब सूं गांव रै दो हजार घरां में नेग री खेती अेक लाख बैठै। जे आ कूंत राजियै रै खानै बैठगी तो उण री ऊंतावळ रो तूफान इत्तो बध सकै, इत्तो कै उण रो विस्फोट हो सकै।
म्हैं भगवान सूं अरज करी कै हे ईश्वर, गांव आळां नै सदबुद्धि दे। भावुकतां सूं बचा। अर बां री मनगत इसी कर, कै दो, का पांच रै सिक्कां सूं बेसी उण री हथेळी पर कोई नीं धरै। राजियै नै बचा म्हारा प्रभु! इणी अरज साथै अेकर तो सोच्यो कै भाज'र राजियै सूं पचास रो लोट पाछो झांप ल्यावूं। पण म्हैं आ नीं कर सक्यो।
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भींतां री छियां लांबी हुगी ही। सूरज गांव रै आथूणै पासै आग्यो हो। गांव फाग खेल'र धापग्यो हो। लोगां न्हा-धो'र गाबा बदळ दिया हा। गळियां रो गीलो रंग सूखण लागग्यो हो। इसै में गांव रै आथूणै पासै बिणवाळां रै बास में डफ बाजै हो। बंसरी री सुरीली तान सुणीज्यै ही। धमाळ गाईज्यै ही। संगीत रै अण सुरीलै घुरळियै म्हनैं ई आप कानी खींच लियो। म्हैं जाय'र देख्यो तो म्हारा रूं फाटग्या। तीन डफ। एक बंसरी। अर सात-आठ धमाळियां पूरो दंगल ठठा राख्यो हो। आं रै बिचाळै तीन मै'री अर अेक मजाकियो। भोत फूटरा नाचै हा। देखणियां रो मन मौवै हा।
पण इतराक में देखण आळी चीज अेक और आयगी। राजियो मैतर। सिक्कां सूं ऊपरी-नीचै री दोनूं जेब तंतूड़। फगत सिक्का ई सिक्का। अेक, दो अर पांच रा। निचली जेब री झाल सूं कुड़तै री गळबीणी बांकी होयरी ही। तो ऊपरली जेब रै लोड सूं बटण खुलर्या हा।
बो आंवतो ई दंगल में घुसग्यो। अर डफ री थाप पर नौ-नौ ताळ नाचण लागग्यो। ऊपरली जेब रा पीसा उछळ-उछळ खिंडण लाग्या। निचली जेब गेड़ चढगी। किलै नेड़ौ धातू भूं-भूं'र उण री साथळां कूटण लाग्यौ। राजियै आव देख्यो न ताव। नाचतै-नाचतै निचली जेब सूं मुठ्ठïो भर्यो अर मैÓरियां पर ऊंवार'र उछाळ कर दी। देखतां-देखतां राजियो हळको हुग्यो। ऊपरली आपो-आप रितगी अर तळली ऊंवार-ऊंवार फैंक दी। गांव रा टाबर ऊपर-थळी होंवता दंगल मेें आ घुस्या। अर खिंड्योडै़ पीसां पर टिड्डी दळ ज्यूं टूट पड़्या।
राजियै डफ झांप'र ऊंचै सुर में धमाळ गाई-
'हां रे भरदे मायरियो सांवरिया थांरी नानी बाई रो भर दे मायरियो...'
सुण'र सगळां री आंख्यां गीली हुगी।