कोना / मनोहर चमोली 'मनु'
इया सोकर जाग उठी। वह टीवी के पास गई। दया चीखी। बोली,‘‘पीछे हटो। कोने वाली चेयर में बैठ जाओ।’’ इया ने सुना। वह बाहर चली गई। इया खलिहान में जाकर बैठ गई। पुकार लगी,‘‘इया। रसोई में आओ। खाना परोस दिया है।’’ वह रसोई में पहुँची। माँ ने कहा,‘‘अपनी थाली लो। कोने में बैठो।’’ वह थाली लेकर बाहर आ गई।
आज सोमवार था। स्कूल बस आई। वह बस में चढ़ गई। नुसरत बोल,‘‘इया। देख सबसे पीछे कोने की सीट खाली है।’’ इया खड़ी ही रही। सड़क पर जाम लगा था। बस देर से स्कूल पहुँची। इया कक्षा में गई। टीचर बोलीं,‘‘उधर कोने में खड़ी रहो।’’ किसी तरह दिन बीता। अवकाश हुआ। वह घर जा रही थी। सड़क पर उसे एक चूजा मिला। वह चच-चच कर रहा था। उसके पैर में चोट लगी थी। वह उसे घर ले आई। दादी ने चूजे के पैर पर दवा लगाई। कहा,‘‘चूजा डर गया है। कुछ देर उसे अकेला छोड़ दो।’’ इया ने ऐसा ही किया।
रात हुई। सब सोने लगे। इया चूजे के साथ थी। माँ ने पुकारा,‘‘इया। बिस्तर लगा है। कोने वाली जगह पर सो जाओ।’’ इया लेट गई। उसे नींद नहीं आई। सुबह हुई। चूजा चच-चच कर रहा था। आवाज़ सुनकर इया उसे खोजने लगी। वह बरामदे में गई। चूजा कोने में दुबका हुआ था। इया हँसी। बोली,‘‘यह कोना अच्छा है।’’ वह चूजे के साथ कोने में बैठ गई।