कोरोना कालखंड में देखिए हास्य फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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कोरोना कालखंड में देखिए हास्य फिल्में
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2020


कोरोना कालखंड में ठहाके लगाने से फेफड़ों की कसरत होती है और मानसिक तंदुरुस्ती भी बनी रहती है। बगीचों में सुबह की सैर करने वाले सामूहिक ठहाके लगाते हैैं। इसे लाभ होता है, परंतु बरबस ठहाका लगाया जाना ही अधिक लाभप्रद है। प्रयास करके हंसना या रोना अभिनय माना जा सकता है, परंतु मानसिक तंदुरुस्ती में इससे कोई इजाफा नहीं हो सकता। हंसते-हंसते रोना या रोते-रोते हंसना स्वाभाविक है। राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ में एक बिंब यह आभास देता है मानो आंसू के माध्यम से मुस्कान का बिंब बनाया गया हो।

हास्य-व्यंग्य की फिल्में हर दौर में बनती रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनी फिल्मों में किशोर कुमार और मधुबाला अभिनीत ‘चलती का नाम गाड़ी’ सर्वश्रेष्ठ हास्य फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म में बड़े भाई अशोक कुमार और मंझले भाई अनूप कुमार ने भी अभिनय किया था। ‘चलती का नाम गाड़ी’ में सचिन देव बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी ने माधुर्य की रचना की थी। गीत ‘एक लड़की भीगी भागी सी...सोती रातों में जागी सी…’ आज भी लोकप्रिय है।

महमूद ने किशोर कुमार, सायरा बानो और सुनील दत्त अभिनीत फिल्म ‘पड़ोसन’ बनाई थी। इस फिल्म को राज कपूर के सहायक रहे ज्योति स्वरूप ने निर्देशित किया था। महमूद तो निर्देशक के निर्देशक रहे हैैं। बहरहाल, इस फिल्म का गीत ‘मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है..’ सर्वकालिक लोकप्रिय गीत है। इस फिल्म में मेहमूद अभिनीत पात्र चंचल और प्रेमल व्यक्ति है। एक दृश्य में वह प्रेम में अपने प्रतिद्वंद्वी को किराए के गुंडों से पिटवाता है, परंतु वह अपने इस कार्य पर शर्मिंदा भी है। इस तरह यह पात्र प्रेमल हृदय का खलनायक माना जा सकता है। इस फिल्म में ओमप्रकाश ने एक चरित्र भूमिका निभाई।

कलकत्ता की फिल्म निर्माण संस्था न्यू थिएटर्स को छोड़कर बेहतर अवसर की तलाश में बिमल रॉय बंबई आए थे। उनका निकटतम मित्र हास्य कलाकार असित सेन भी उनके साथ आया था। असित सेन मोटे और थुलथुले से दिखने वाले व्यक्ति थे। बिमल रॉय ने उन्हें निर्देशन का अवसर दिया। असित सेन ने शेक्सपीयर की ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ से प्रेरित फिल्म ‘दो दुनी चार’ बनाई। उस समय संभवत: गुलजार भी बिमल रॉय के सहायक थे। कालांतर में गुलजार ने उसी कथा को अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हुए संजीव कुमार, देवेन वर्मा और मौसमी चटर्जी अभिनीत ‘अंगूर’ बनाई थी। संजीव कुमार और देवेन वर्मा की दोहरी भूमिकाएं थीं। इस फिल्म की नामावली के दृश्य में एक बिंब में शेक्सपीयर की तस्वीर दीवार पर लगी है और उसमें शेक्सपीयर को आंख मारते हुए दिखाया गया है। इस तरह गुलजार ने शेक्सपीयर को शुकराना अदा किया था। उत्पल दत्त, दीना पाठक और अमोल पालेकर अभिनीत ‘गोलमाल’ सफल हास्य फिल्म मानी गई। ‘गोलमाल’ टाइटल से रोहित शेट्टी और अजय देवगन ने एक सीरीज रची है, परंतु इन फिल्मों में ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित पहली ‘गोलमाल’ की तरह स्वाभाविकता का अभाव है। अमेरिका में लारेल एंड हार्डी शृंखला बनी है, जिसे स्लेपस्टिक कॉमेडी कहते हैं। शारीरिक क्रियाओं द्वारा हास्य की रचना की गई है। ज्ञातव्य है कि रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘बर्फी’ एक महान फिल्म है। इसके प्रदर्शन के समय कुछ आलोचकों ने इसे चार्ली चैपलिन शैली की फिल्म माना, परंतुु इस पर बस्टर कीटन का प्रभाव था जो चार्ली चैपलिन के समकालीन थे, परंतु दोनों शैलियों में भारी अंतर है। दरअसल ‘बर्फी’ प्रियंका चोपड़ा का अभिनव प्रयास है।

आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म ‘ड्रीमगर्ल’ भी मनोरंजक फिल्म है । ‘हाउसफुल’ और ‘धमाल’ सीरीज भी लोकप्रिय रही है। गुरु दत्त की ‘मिस्टर एंड मिसेस 55’ एक हास्य फिल्म थी। इस फिल्म के एक दृश्य में कठोर हृदय वाली स्त्री नायक से कहती है कि क्या वह कम्युनिस्ट है तो नायक जवाब देता है वह कार्टूनिस्ट है। महिला कहती है कि एक ही बात है। इस दृष्टि से सर्वकालीन महान कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण भारत में पहले कम्युनिस्ट माने जा सकते हैैं। अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, शर्मिला टैगोर और ओमप्रकाश अभिनीत फिल्म ‘चुपके चुपके’ बहुत सफल रही। युद्ध जैसे विषय पर भी हास्य फिल्म बनी है ‘वॉर छोड़ यार’। हास्य हर रोग की दवा है, परंतु यह हृदय से स्वाभाविक रूप से निकलना चाहिए। हंसने-हंसाने का माद्दा जीवन को ऊर्जा से भर देता है। अपने जीवन में नैराश्य से उभरने के लिए दिलीप कुमार ने हास्य फिल्म ‘राम और श्याम’ की थी। इस हास्य थैरेपी से उनका नैराश्य दूर हो गया था। एक सेंव फल और एक ठहाका बीमारियों को दूर भगा देते हैं।