कोरोना काल खंड में मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 जून 2020
नई सदी के पहले वर्ष में आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ का प्रदर्शन हुआ। साधन संपन्न के विरुद्ध, साधनहीन लोगों के संघर्ष और विजय की इस फिल्म ने नई राह बनाई और छद्म देशप्रेम की थोती नारेबाजी वाली फिल्मों से हटकर फिल्मों की इस श्रेणी को ताजगी प्रदान की। अजय देवगन की ‘तान्हाजी...’ देशप्रेम की नारेबाजी वाली फिल्म की वापसी का प्रयास रही। युवा दर्शक देशप्रेम भावना की उन फिल्मों को पसंद करता है, जो थ्रिलर की तरह रची गई हैं, जैसे विद्या बालन अभिनीत ‘कहानी’, नसीरुद्दीन शाह अभिनीत ‘अ वेडनेसडे’ और तापसी पन्नू अभिनीत ‘नाम शबाना’, ‘बेबी’ इत्यादि।
जॉन अब्राहम अभिनीत ‘मद्रास कैफे’ राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी थ्रिलर है। फिल्मकार शूजित सरकार विगत में बंगाली फिल्मकारों से अलग ‘एकला चलो रे’ वाली भावना से प्रेरित फिल्मकार हैं। दरअसल देशप्रेम की फिल्मों का अलग स्वरूप राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आमिर खान अभिनीत ‘रंग दे बसंती’ से प्रारंभ हुआ है। विशुद्ध प्रेम कहानियां और हिंसा की कहानियों पर आधारित फिल्मों की संख्या विगत दौर की तुलना में बहुत घट गईं। अब ‘शोले’ या ‘लैला मजनू’ किसी युवा फिल्मकार का आदर्श नहीं है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के निरंतर फैलते दायरे के कारण ‘विकी डोनर’ जैसी फिल्म संभव हुई हैं। आधुनिक महिला ‘पिंक’, ‘छपाक’ और ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों के द्वारा अभिव्यक्त हो रही है।
खेलकूद की पृष्ठभूमि पर ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘चक दे इंडिया’ और अक्षय कुमार अभिनीत ‘गोल्ड’ ने नया रास्ता बनाया है। सलमान अभिनीत ‘सुल्तान’ और आमिर खान अभिनीत ‘दंगल’ ने खेलकूद पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों को भी नया विस्तार दिया। कंगना रनोट अभिनीत ‘पंगा’ भी इस श्रेणी में सराही गई है। आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव और विकी कौशल अभिनीत फिल्में भी अपने बजट पर मुनाफा कमा रही हैं। प्रियंका चोपड़ा और कटरीना कैफ को टक्कर दे रही हैं, भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू। सब मिलाकर फिल्म उद्योग में ताजगी और नया उजास दिख रहा है। ज्ञातव्य है कि तापसी पन्नू आईआईटी ग्रेजुएट हैं। इसके साथ ही तापसी सामाजिक सरोकारों के प्रति भी सजग हैं। प्रायोजित हुड़दंग से डरे बिना, तापसी ने किरीट खुराना और विवेकानंंद रॉय घातक की रचना को अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर जारी किया है। रचना के शब्द जलते दहकते अंगारों की तरह हैं- ‘फासले तय किए हजारों मील के, कुछ साइकिल पर, कुछ नंगे पैर, मरे कई भूख से, कई धूप से, हिम्मत न टूटी बड़ों के झूठ से।’
पत्रकार राजेश आगाह करते हैं। अब बात नहीं खतरे की, अब सभी को सभी से खतरा है। युवा वर्ग पूरी तरह नींद में गाफिल नहीं है, उसकी अंगड़ाई उसके हौसलों का परिचय दे रही है। राजकुमार हिरानी को इस समय प्रतिनिधि फिल्मकार माना गया है। कोरोना कालखंड अस्पताल और डॉक्टरों का इम्तिहान ले रहा है। अस्पताल का आर्थिक प्रबंधन टूट गया है। डॉक्टर अपने वेतन का मात्र 25 प्रतिशत लेकर खतरे का सामना कर रहे हैं। कुछ अस्पताल मालिकों से अपनी क्रूरता छुपाए नहीं छुपती परंतु अधिकांश स्वास्थ्य संस्थाएं नोबल प्रोफेशन के आदर्श से डगमगाई नहीं हैं। राजकुमार हिरानी को अब नए सिरे से अपनी फिल्म ‘मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस’ की तीसरी कड़ी प्रस्तुत करना चाहिए। जादू की झप्पी फासले से लेनी होगी। हीरानी को अपने सिनेमा में कुनैन की मात्रा बढ़ानी होगी और शक्कर के बदले गुड़ के प्रयोग को रेखांकित करना होगा। चाय में हल्दी, दालचीनी, तुलसी पत्ते की मात्रा बढ़ाने पर ही डॉक्टर, नर्स और वार्ड बॉय घंटों अथक काम कर सकेंगे। इसी तरह तिग्मांशु धूलिया भी अपनी ‘साहेब, बीबी और गैंगस्टर’ में वर्तमान समय का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। निष्क्रिय साहब का निजाम गैंगस्टर ने हथिया लिया है। आनंद एल रॉय के पात्र तनु और मनु अस्पताल में बहैसियत मरीज दाखिल होकर डॉक्टर और नर्स के काम में सहयोग कर सकते हैं। अयान मुखर्जी की ‘ब्रह्मास्त्र’ में पात्र कोरोना का इलाज तलाशते हुए प्रस्तुत किया जा सकता है।
देशप्रेम की फिल्मों में अतीत के वैभव का राग अलापने के बदले देश की कठोरता, वास्तविकता प्रस्तुत करते हुए नए नागरिक पात्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं। नारी पात्र का आदर्श विष्णु खरे की कविता से लिया जा सकता है। यह वीणा वादिनी कालिका में विलीन होने का वर मांग रही है।
हंस पर नहीं शार्दूल पर आओ भवानी और रचने दो यहां अपना नूतन स्त्रोत। या देवी सर्वभूतेषु विप्लव रुपेतु हूं तिष्ठतिता।