कोविड मंथन : वैक्सीनेशन का अमृत / जयप्रकाश चौकसे

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कोविड मंथन : वैक्सीनेशन का अमृत
प्रकाशन तिथि :14 अप्रैल 2021


रूस में बनी स्पूतनिक वैक्सीन को भारत आयात करने जा रहा है। यह महामारी कोविड का इलाज करने व इसे रोकने के काम आती है। सभी देश अपनी योग्यता और निष्ठा से महामारी से लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। आपसी सहयोग से लड़ाई लड़ी जा रही है। संकट के समय राजनीतिक मतभेद हाशिए पर डाल दिए जाते हैं। संकट गुजर जाने पर हम अपनी संकीर्णता और ओछेपन पर लौट आते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि संकट बना रहना चाहिए। नागरिकता बोध ही संकट से बचने का एकमात्र रास्ता है। हर संकट एक तरह का समुद्र मंथन होता है। देवताओं को मिलने वाले अमृत की चोरी, दानव कर लेते हैं। भागमभाग में अमृत छलक जाता है। अमर होने की इच्छा बलवती है, परंतु हजार वर्ष के यौवन का आशीर्वाद पाने वाले के कष्ट, क्षणभंगुर जीने वाले से हजार गुना अधिक होते हैं।

दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर के खिलाफ संयुक्त सेना का गठन हुआ। अंग्रेजों ने अपनी युद्ध योजना में निवेश किया, अमेरिका ने भी पूंजी निवेश किया, रूसी सैनिक सबसे अधिक संख्या में मारे गए। उसके बाद आणविक बम अनेक देशों ने बना लिए और भय आधारित शांति स्थापित हो गई। दूसरे विश्व युद्ध से प्रेरित फिल्में बनीं और उपन्यास लिखे गए। रूस में बनी फिल्में ‘द क्रेंस आर फ्लाइंग’ और ‘बेलाड ऑफ ए सोल्जर’ लोकप्रिय हुईं। अमेरिका में ‘द लांगेस्ट डे’ ‘सेविंग ऑफ सोल्जर रॉय’ ‘द गन्स ऑफ़ नवरोन’ और स्टीवन स्पीलबर्ग की ‘शिंडलर्स लिस्ट’ कालजयी रचना है।

‘समर ऑफ 1942’ में प्रस्तुत किया गया कि एक सैनिक के शहीद हो जाने का समाचार मिलने के थोड़ी ही देर बाद उसकी विधवा पत्नी के पास एक किशोर आता है। पहली नजर में किशोर को विधवा स्त्री से प्रेम हो जाता है। बाद में कुछ इसी तरह ईरान में बनी फिल्म भी 40 वर्ष की महिला और 16 वर्ष के किशोर की प्रेम कहानी है। प्रेम, उम्र की खाई पर विजय पाता है।

रोगों से मनुष्य को मुक्त करने के लिए निरंतर शोध किए जा रहे हैं। मैडम क्यूरी ने विषम हालात में निरंतर काम किया। उन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। शल्य क्रिया के पूर्व मरीज को क्लोरोफॉर्म दिया जाता है। जब इस दवा का आविष्कार नहीं हुआ था, तब शल्य क्रिया के पूर्व मरीज को थोड़ी सी शराब पिलाई जाती थी। शल्य क्रिया किए जाने वाले अंग पर ढेर सारी शराब डालकर उसे सुन्न किया जाता था। अल्कोहल दवा भी है, नशा भी है।

शल्यक्रिया के बाद मरीज के होश में आने का समय, अलसभोर की तरह होता है, सुरमई उजाला, चंपई अंधेरा।

विक्रम गोखले अभिनीत इंटरनेट पर प्रस्तुत कार्यक्रम में गोखले अनुभवी शल्य चिकित्सक हैं। सफलता ने उन्हें अहंकारी बना दिया। उसकी छात्रा शल्य चिकित्सक हो चुकी है। पैथोलॉजी की रपट के आने के पहले ही वह शल्य चिकित्सा प्रारंभ करता है। एक नाजुक मोड़ पर उसे रुकना था, परंतु अहंकार का नाइफ कहां रुकता है। मरीज की मृत्यु हो जाती है। उसकी छात्रा रही सर्जन सारे दबाव को सहकर मेडिकल काउंसिल में रपट दर्ज कराती है। जांच कमेटी पर अहंकारी डॉक्टर दबाव बनाता है। छात्रा रही डॉक्टर भी नैतिक मूल्यों पर डटी है। जोड़-तोड़, जतन से विक्रम गोखले अपने पक्ष में निर्णय के प्रति आश्वस्त घर लौटता है, तो उसकी पत्नी दरवाजा बंद कर देती है। पत्नी उसे यह दंड देती है। सारी आशाएं निष्ठावान महिला पर टिकी हुई हैं। वैक्सीनेशन, प्रक्रिया जारी है। इस संकट के समय अफवाह नहीं फैलने देना है। चुटकुलेबाजी से बचें। निदा फ़ाज़ली ने कहा है, ‘यहां हर शै मुसाफिर है, सफर जिंदगानी है।’