कोशिश /फ़ज़ल इमाम मल्लिक
Gadya Kosh से
अंधेरों के ख़िलाफ़ बरसों से वह जूझ रहा था, रोशनी के लिए। रोज़ अपनी देहरी पर वह एक दिया जलाता। तेज़ हवाएँ दिये को फौरन बुझा डालतीं...पर वह विचलित नहीं हुआ। वह फिर दिया रोशन करता...हवाएँ फिर अपना काम करतीं...लेकिन उसने अपनी कोशिश जारी रखी...अब हर रात उसकी देहरी पर एक दिया रोशनाई देता रहता...आंधियाँ आईं...तूफ़ान भी आए...लेकिन दिया आंधियों में भी जलता रहा।