कौआ राजा / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
वैशाख जेठ भीषण गर्मी या वर्षात या कड़ाका रोॅ सर्दी होवे मतरकि आपनो चारा रोॅ वास्ते इधर-उधर भटकना ज़रूर पड़ैले लागै छै। पक्षी सब्भै केॅ आपनोॅ खुराक आरोॅ गृहस्थी वास्तें तत्पर रहि छै। कौआ आपनोॅ हिल्ला पकड़ी लै छै कुछ नदी। किनारे में गाछ रहि छै, वही दिनो में बसेरा बनाय छै कोय गांव, बस्ती नै अलग-अलग घरोॅ आरोॅ हसामी केॅ पकड़ै छै कुछ-कुछ कौए घुमी-घुमी केॅ चरांय करै छै।
एक गामोॅ में चार भाई छेलै, चारो रोॅ अलग-अलग हवेली, दो भाय, पश्चिम तरफ आरोॅ दो भाय पूरब भाग में रहै छेलै। बीचोॅ में सड़क चारोॅ भाय रोॅ नीजी छेलै, सड़को रोॅ पूरब भागोॅ में एक नारियल केरोॅ पेड़ छेलै, है सड़कोॅ सें कुछ दूरोॅ में ग्रामीण सड़कोॅ सें मिली जाय छेलै, हौ वृक्षों पर एक जोड़ी कौआ रोॅ दिन भर बसेरा रहि छेलै, हे गाछी पर दूसरो जोड़ी आवै छेलै, मतरकि तुरते चलोॅ जाय छेलै। अधिक देर रहै तेॅ लड़ी झगड़ी केॅ भगाय दै छेलै।
चारो रैयत केॅ आपनोॅ हलका में लै लेने छेलै। मतरकि है चारोॅ भाय केॅ, है बातोॅ रोॅ मालूम नै छेलै नारियल गाछी पर आवास करै छेलै, आरोॅ घरोॅ रोॅ बच्चा-बुतरु घरो रोॅ जूठन पर दृष्टि गड़ैने राखै छेलै, आरोॅ आपनोॅ प्रबन्ध करै छेलै। बच्चा सब्भै रोॅ हाथोॅ सें रोटी रोॅ टुकड़ा या चावल दूधोॅ रो सौनो-मौनो कटोरी में रहि छेलै, झपट्टी केॅ लोल डाली दै छेलै आरोॅ अहार सुलभ बनायलै छेलै। पानी हौता मेॅ या लादी में जूठो सब बर्तनोॅ के गिराय छेलै, मवेशी लादी में सानी पानी कुट्टी खाय छेलै, दूसरो तरफ भात, रोटी रोॅ टुकड़ा चुनी-चुनी खाय छेलै।
रात्रि में पूरे है क्षेत्रोॅ रोॅ कौआ कोय एक वृक्षों पर आवास करै छै आरोॅ सुबह बेला में आपनोॅ-आपनोॅ हिसाब-किताबोॅ सें अलग-अलग गामोॅ में चराय करै लेॅ चलोॅ जाय छै। है पक्षी रोॅ दिनचर्या छै कै, रोहिन नक्षत्र या जेठ मास में आपनोॅ गृहस्थी रोॅ समय आवै छै तवे रात्रि दिनोॅ में अलग वृक्षोेॅ पर आवास करै छै, अंडा, बच्चा केॅ आपनोॅ में बारी-बारी सें सेवै छै, कुछ दिनोॅ रो बाद उड़ात बनायकेॅ छोड़ै छै जवेॅ बच्चा उड़ात होय जाय छै आरोॅ आपने सें चराय करेॅ लागै छै। गृहस्थी खत्म होला रोॅ वाद, पूर्व जगह जे आवास छेले, वही जगह पर फेरू आवास करे लागै छै। है स्वभाव प्रायः सब्भै पक्षी में पैलो जाय छै।
चारो भाय कन जुट्ठन-जाट्ठन काफी मिली जाय छेलै, मतरकि एक भाय कन जुट्ठन-जाट्ठन नै रोॅ बराबर मिलै छेलै। एक जोड़ी कौआ कई वर्षों सें यहे नारियल वृक्षों केॅ आपनोॅ बसेरा दिन भर बनाय के रहि छेलै। दिनोॅ यदा-कदा कुछ समय रोॅ वास्ते, आपनोॅ जाति रोॅ पंचायतोॅ में जैतै होतै, फेरू यही वृक्षों पर आपनोॅ अड्डा जमाय छे लै।
उच्च विद्यालय गामोॅ सें दूर पावै छेलै, गामोॅ रोॅ मुख्य सड़क जे राज पथोॅ में मिली जाय छेलै। विद्यालय रोॅ हाथा में मैदान छेलै, बगलोॅ में होस्टल छेलै, करीब एक सौ छात्र रहि छेलै, साढ़े नौ बजे दिन में खाना खाय छेलै, विद्यालय परिसर में बहुत आमोॅ र शीशम अन्य चीजोॅ र वृक्ष छेलै, साढ़े आठ बजे सें कौआ रोॅ जमाव शुरू होय जाय छेलै। गर्मी समय में बारह बजे दिन में आरो अन्य समय नै साढ़े नौ बजे खाना खाय लै छेलै। लड़का जहाँ-तहाँ वृक्षो रोॅ नीचे छैया में खाना खाय छेलै। खाना रोॅ घंटी बजै छेलै आरो कौआ वृक्षों पर कॉव-झॉव करै छेलै।
लड़का सब खैला रोॅ बाद जहां-तहां जूठन फेंकी दे छेलै, होकरा बाद कौआ सब जुठन चुंगे लागै छेलै, हौ समय कौआ वृक्षों सें उतरी केॅ छिना-छपटी करे आरोॅ आहार चुनै छेलै। चुगला रोॅ बाद सब्भे कौआ कुछ क्षणों तक वृक्षोॅ पर कांव-कांव करै या गलगलावै छेलै, पूरे होस्टल केरोॅ वातावरण शोरगुलेॅ में तब्दील हो जाय छेलै। सब्भे आपना में खुशी जाहिर करै छेलै।
सब्भे लड़का खाना खैला रो बाद आपनोॅ-आपनोॅ वर्गो में दाखिल होय जाय छेलै, रूटीन रोॅ मोताविक पहले प्रार्थना होय छेलै। होकर वाद वर्ग संचालन शुरू होय जाय छेलै। हिन्ने कौआ सब्भै के भोजन-भात मिली जाय छेलै, सब्भै कौआ रोॅ आपनोॅ-आपनोॅ हिल्ला मोहल्ला, गांव, बाटलोॅ रहि छेलै, विद्यालय रोॅ बगलोॅ रोॅ गांव-पुनसिया, केवाड़ी, चंगेरी, मिर्जापुर, भोजपुरा नेमुआ, मसुदनपुर, जगदीशपुर, कटिया, चपरा-कोलहथा अन्य जगह उड़ान भरै छेलै आरो जुटन सब चुगै छेलै, आरो शाम केॅ हौ क्षेत्रोॅ रोॅ सभे कौआ एक गाछी पर अवास करै छेलै। कोलहथा रोॅ आमोॅ बगीचा रोॅ एक गाछी पर।
है पक्षी बड़ा क्रुएल प्रवृत्ति रोॅ होय छै। जय मवेशी रोॅ पुट्ठा पर या बगलोॅ में घाव-घोस हो जाय छै, ते बथानी पर किसान नै रहिला पर पीठी पर बैठी केॅ आपनोॅ चोचों से खोदी-खोदी केॅ बड़ो घाव बनायै छै, कौआ सें बचाय लेली, घावोॅ में कारखी या काला कपड़ा बगलोॅ में पाँच या दस हाथोॅर उच्चोॅ बॉस गाड़ी केॅ ओकरा में काला कपड़ा बाँधी दै छै या मरलो कौआ बाँधी दै छै, तेॅ कॉव-कॉव करै छै आरोॅ उड़ै छै मतरकि मवेशी रोॅ पीठी पर बैठै रोॅ साहस नै करै छै। तवेॅ घाव वाला मवेशी सुरक्षित होय जाय छै। नै तेॅ चोंचोॅ सें बड़ो घाव करि के मवेशी केॅ मारिये दै छै।
मकई रोॅ खेतोॅ में, जबे भुट्टा दूधभर होय जाय छै, तेॅ मोचानी पर बैठी केॅ जोगनिया खंजड़ी या टीना बजाय छै या काला कपड़ा एक बॉसोॅ में बांधी दै छै, या मोचानी के उपरोॅ में छड़ी में काला कपड़ा या मरलो कौआ के बॉधी दै छै, तेॅ कॉव-कॉव करै छै, मतरकि भुट्टा पर नै बैठै छै।
कहावत छै-
पक्षी में कौआ
आदमी में लौआ
लकड़ी में झौआ
है युक्ति बड़ी सटीक आरोॅ दुरूस्त छै, कौआ जवेॅ छप्परोॅ पर या दिवालोॅ पर बैठे छै तेॅ, मुँह आँख, पंख चौकन्ना सें लैस रहि छै। धोखाधड़ी में बहुत कम कौआ मारे परै छै। अचानक रात या दिनोॅ में आँधी-बारिश आवै छै, बसेरा तेॅ वृक्षे रहि छै, डाली टूटला पर या वृक्ष उखड़ला पर दबाय-चपाय जाय छै। हेकरोॅ औरदा सो वरस रहि छै। है मंसा हारी पक्ष्ी छेकै, मरलोॅ जानवरोॅ रोॅ सुलभ अहार करै छै। मवेशी भरलो नदी। किनारो पर या गामोॅ र दूरोॅ में परती-पराटो में फेंकी दै छै। कुत्ता, गिद्ध रोॅ सामना में ऐकरोॅ कोय मुराद नै छै, मतरकि बुद्धि में तेज छै, मरी खाय में गिद्धोॅ रोॅ पीठी पर बैठी जाय छेलै गिद्धोॅ केॅ मरी खाय में बाधा पहुँचा दै छेलै।
बुढ़ोॅ पुरानोॅ लोग बोलै छै, आरोॅ है बात अखनियोॅ देखै छियै कि कौआ छपरोॅ पर या दिवालोॅ पर बैठे छै, आरोॅ गलगलाय छै, तेॅ मेहमान आवै वाला छै, या आय पछिया हवा बड़ी जोरोॅ से बहै बाला छै, है किवदंती नै छेकै, है दोनों में कोय एक बात ज़रूर होय छै। है चीजो पर सब्भै लोगोॅ केॅ हाँ भरैल लागै छै। बिना सोचले-समझले स्वीकार करैलेॅ लागै छै।
एक कहावत छै-कोक वियैलोॅ आरोॅ कौआ लेलकोॅ ढ़ड़सेद कोयल जबेॅ अंडा दै छै, तेॅ पहले कौआ रोॅ घोसला में डुकी के, ऐकरोॅ अंडा नीचे गिरा दै छै, आरोॅ अपनोॅ अंडा घोंसला में सेवैलेॅ दै छै। कौआ आपनोॅ अंडा समझी केॅ सेवै छै। जबेॅ अंडा फोड़ी के बच्चा होवे छै। कोयलोॅ रोॅ बच्चा केॅ आपनोॅ बच्चा समझी केॅ पाली पोशी केॅ उड़ात बनाय छै, आहार चुगाय छै, देख रेख करै छै, जबे बड़ोॅ होय जाय छै, रंग रूपोॅ चोंचो सें बोली सें पहचानी जाय छै। है बच्चा हमरोॅ नै छेकै, बल्कि कोयला रो छेकै, तबे कौआ नें आपनोॅ चोंचो मारे, रगेदै छै, कोयलोॅ रोॅ बच्चा भागलोॅ फिरै छै।
नारियलोॅ रोॅ गाछी पर बैठलोॅ कौआ सोचै छै है छोटका मालिक आपनोॅ खपड़ैलो छौनी पर पाँच-छह कपटी में मूढ़ी में एलेड्रिन दै केॅ रखी देने छै, है कपटी देखी केॅ कौआ हिनका कपटी मालिक समझै छै, है छोटका मालिक आय हमरा दोनोॅ पर बड़ी दर्पलोॅ छै, सब्भे दिनां हाथों में गुलेल लै चमकैते, चलैते रहि छेलै, हिनका कन जुठो अनाज मिलना कठिन छेलै।
मतरकि आय पश्चिम में सूरज उगलोॅ छै, जे आय है हमरा दोनों वास्तें प्रबन्ध करने छै, कपटी रोॅ पास जाय छै, कूदै-फानै गलगलावै, कॉव-कॉव करै छै, मतरकि लोल कपटी में नै डालै छै। लागै छै कौआ अगरजानी छै, एक टा दाना नै उठाय छै, गंधोॅ सें एक भी मूढ़ी नै उठाय छै। महादेवी वर्मा के अनुसार-कौआ एक समादृत, अनादृत और अवमानना पक्षी मानै छै।
सीधी-साधी, भोली-भाली, छोटो पक्षी बगरोॅ, मैना, गुमैना बड़ी चावोॅ से मूढ़ी चुगे लागलै, बिना, सोचने-समझने, भूखोॅ रोॅ अग्नि केॅ शांत करेॅ लागलै आरोॅ आपनोॅ जीवन लीला केॅ समाप्त करि देलकै, कोय खपड़ेलोॅ, कोय वृक्षोॅ रोॅ पास नीचो में, गोसर वाला जमीनोॅ में, पकलोॅ फलोॅ नाकी तूवी-तूवी केॅ गिरी गेलै।
पक्षी में बानगी वनी केॅ कौआ एक ठो अन्न नै उठैलकै, अगरजानी आरो परखै रोॅ शक्ति छै, है लेली ई नाम धरलोॅ गेलै। "कौआ राजा"