कौम / बालकृष्ण भट्ट

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नया उत्‍साह, नई उमंग, नया जोश, नई सभ्‍यता, नई तालीम से भरे हमारे नव शिक्षितों की चंद्रकला समान बढ़ती हुई नई नसल ने अपनी मीठी तोतरी बोल से ज्‍यों ही कुछ बोलना आरंभ किया त्‍यों ही पहले यही द्विअक्षरी महामंत्र-कौम-कौम-कौम एक समय तुतला उठे। क्‍या विचित्र कारगरी और अद्भुत महिमा इन दो अक्षरों की है जो एक नगर या एक प्रांत को कौन कहे संपूर्ण देश के या यों कहिये संपूर्ण बर्रेआजि़म (Contenant) भर को एक कर सकता है। कहो अथाह समुद्र को पाट कर गोष्‍पद तुल्‍य कर डाले। कहो बड़े-बड़े पहाड़ों को चूर-चूर कर रेत में मिला दे। कहो डूब कर आताल पाताल को थहा लावे। हंड्रेड हार्स पावर इंजिन हजार मत्‍त गयंद गजराज इसकी ताकत के आगे शरमाकर मुँह छिपा लेते हैं। हमारे यहाँ लिखा है अमुक योद्धा में दस हजार हाथी का बल था। इसका तात्‍पर्य भी यही है कि उस वीर में इतना कौमी जोश था कि 10,000 हाथी की सेना युद्ध में ला सकता था। दारा और सिकंदर से फमेहआब इसकी विजयनी शक्ति के सामने कोना झाँकते हैं। रोम के सीजर्स और नेपोलियन बोनापार्ट से विजयी पुरुषों को भी इसने अपने विक्‍टरी के मुकाबले रास्‍ते को ठिकरी समान बेकदर कर डाला। ऐक्‍य, सहाय, स्‍वत्‍वाभिमान, शौर्य, वीर्य आदि पौरुषेय गुणों की यह यहाँ तक संजीवनी बूटी है कि इस जातीय 'कौम' का भरपूर जोर जिस समय जब और दुनिया के जिस हिस्‍से में जहाँ मौजूद रहा उस समय उस देश के लिए सत्‍ययुग (गोल्‍डेन पीरियड) या जो कुछ उसे कहिये सब फबता है। इसके रहते उस देश को उन आदमियों को देवता आर्यश्रेष्‍ठ जेता या जो कुछ कहिये हमें सब स्‍वीकार है। इस जातीयता का साम्राज्‍य रहते उस भूमि को हम स्‍वर्गभूमि वैकुंठदेव यजन आर्यभूमि जो कहैं सब उचित है।

अपनी कौमियत बनाये हुए इंग्लैंड एक क्षुद्र टापू बड़े-बड़े देशों का हिमायत करने वाला राजनीति, कलाकौशल, साइन्‍स, विज्ञान, कविता, फिलासोफी आदि यावत् विद्या का भंडार बना हुआ सभ्‍यता, श्रेष्‍ठता, विज्ञता की प्रथम श्रेणी में पहुँच सभ्‍यातिसभ्‍य देशों का मुकुटमणि बना हुआ जो चमक रहा है स्‍वयं साक्षात् नंदनवन है। पुत्र उसके सुपुत्र नंदनवनविहारी अमरगण है। पुत्रियाँ उसकी सब मेनका, उर्वशी, तिलोत्‍तमा को लजाने वाली वीरप्रसू वीरमाता कहलाती हैं। दूर-दर देश के महाराजा शाहंशाह जिनसे इनको कुछ वास्‍ता नहीं वे इज्‍जत के साथ अपनी वचन रचना से जो इसे प्रसन्‍न रखा चाहते हैं। सो यह सब उसी बीज रूप महामोहन दो अक्षरी 'कौम' इस मंत्र के साधन से। हम उस साधन से वंचित होने ही से काले, असभ्‍य, जित, नेटिव, मूर्ख, अर्द्धशिक्षित, अशिक्षित गँवार हैं। कौमियत का शुभ लक्षण दूसरे पर अपना स्‍वामित्‍व रखने की कौन कहे गवर्नमेंट की सेवा, गवर्नमेंट की नौकरी के लिये भी ललाते और तरसते फिरते हैं। तब उसकी समता या उस पर उलटा अपना प्रभुत्‍व जमाने की बात जीभ पर लाना ही हमारे लिये महापाप है।

इस मंत्र के साधक Religion, creed, race मतमतांतर के झगड़े चित्‍त के विश्‍वास या जाति पाँति से कुछ वास्‍ता नहीं रखते। उनका मोटो है -

Human Race is all brethren and god is their Common father.

मनुष्‍य मात्र सब भाई हैं और ईश्‍वर उन सबों का साधारण पिता है। उनको इससे कुछ वास्‍ता नहीं जो पूछने बैठें कि आप किस ऋषि के वंश में हैं? किस पैगंबर को पूजते हैं? आप काले रंग के तो नहीं हैं? आप उसी खित्‍ते में बसते हैं? जहाँ हम हैं तब बस आप हमारी कौम के बड़े भारी दायरे में लाचारी कि आ गये। जिस देश का उत्‍थान या पतन होना होता है वहाँ उस देश के लोगों में पहले ही से कौमी तरक्‍की या कौमी तनज्‍जुली के आसार नजर पड़ने लगते हैं। अभीरुत्‍व, उदारभाव, उत्‍साह, साहस, वीरता आदि कौमी तरक्‍की के आसार हैं। दैन्‍य, डर, कोमलता, जनखापन, भोग-लिप्‍सा, लौल्यल्‍य, अधैर्य आदि अध:पात के चिह्न हैं। हिंदुस्‍तान में इधर पीछे-पीछे सिक्‍ख और मरहठों में कौमी जोश कुछ-कुछ आ चला था। पर ऐसे थोड़े समय तक रहा कि पूर्ण प्रौढ़ता को न पहुँच जल्‍द छिन्‍न-भिन्‍न हो लेशमात्र की भी कहीं जातीयता का भाव बच न रहा। अब फिर जातीयता की बेल इस बड़े देश के प्रत्‍येक प्रांत में जहाँ तहाँ पसरते हुए देश आशा होती है कि कदाचित् हमारे नव शिक्षितों ही का उद्योग सफल हो और नये सिरे से खोये हुए धन के समान फिर से हमारे में जातीयता का भाव आ जाय तो क्‍या आश्‍चर्य है।

(जनवरी, 1889)