कौवे ने क्या देखा / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / प्रगति टिपणीस
बर्फ़ से ढके असीम मैदान के ऊपर एक कौवा अपने थके हुए पंख बमुश्किल उठाए उड़ा जा रहा था। ऊपर का आसमान धुँधलाने लगा था। आसमान एक तरफ़ तो धुंधलकों में ज़मीन के पास कहीं ग़ायब हो रहा था और दूसरी तरफ़ इसके बावजूद कि सूरज अभी-अभी ही वहाँ डूबा था रोशनी के आख़िरी निशान भी नदारद होते जा रहे थे। हालाँकि कौवे को डूबते सूरज की झिलमिलाती हुई लाल गेंद अभी भी दिख रही थी, लेकिन मैदान पर सर्दियों की लम्बी रात का अन्धेरा पसर चुका था। जहाँ तक नज़र जाती थी, धूसर मैदान था, जो चिलचिलाती ठण्ड से ढका हुआ था। कौवे के थके हुए पंखों की फड़फड़ाहट से उठ रही तरंगें चुभती हवा की ठहरी हुई ख़ामोशी को समय-समय पर तोड़ रही थीं। कौवा उस जंगल की ओर उड़ा जा रहा था जो केवल उसे दिखाई पड़ रहा था और जहाँ उसने रात बिताने का फ़ैसला किया था। कौवे के उस घने जंगल में पहुँचने तक बर्फ़ से ढकी सफ़ेद धरती भी धुंधली हो चुकी थी। रात के अन्धेरे ने धरती को बर्फ़ के ठण्डे कफ़न में ढक दिया था और आसमान में तारे चमक उठे थे। ठण्ड से पेड़ों और उनकी टहनियों के चटकने की आवाज़ें आ रही थीं। शिकार की तलाश में निकले किसी जंगली जानवर के सावधानी भरे क़दमों के तले भी टहनियाँ चटक रही थीं। कौवे को दूर बीहड़ से आती भेड़ियों के क़दमों की धीमी और डरावनी आवाज़ सुनाई दी। भारी थकान के बावजूद कौवे ने उड़ान की दिशा तेज़ी से बदलने में अपनी पूरी ताक़त लगा दी। अब वह उस तरफ़ उड़ पड़ा, जिधर उसके मुताबिक़ सड़क थी।
उसे इनसानी सोहबत पसंद थी और जंगल बिलकुल नापसन्द।
सड़क आने वाली थी। सड़क के नज़दीक होने की बात घोड़े की लीद की तेज़ बू से पता लग जाती थी। घोड़े की लीद को कौवा वैसे तो कभी नज़रंदाज़ नहीं करता था, मगर उस समय उसे बहुत नींद आ रही थी। जल्दी ही उसे पास वाली गहरी खाई के पार बने पुल की काली रेलिंग तो दिखने लगी, लेकिन अंधेरे के घेरों में डूब जाने के कारण खाई नहीं दिखी।
इस खाई के साथ कौवे की एक दुखद याद जुड़ी थी। एक साल पहले तक़रीबन इसी वक़्त और इसी जगह पर काली मूँछों वाले एक नौजवान की आँखें निकालने में वह कामयाब रहा था। वह नौजवान ठण्ड से पत्थर हो गई बर्फ़ पर कड़ाके की सर्दी होने के बावजूद बिना किसी जुंबिश के पड़ा हुआ था। उसके फटे सिर से गाढ़ा लाल ख़ून रिस रहा था। अगर नौजवान की छोटी उँगली और पलकों में हलकी-सी हरकत न हुई होती तो कौवे को यह समझ में भी न आता कि उसने अपना काम समय से थोड़ा पहले शुरू कर दिया था। लेकिन इनसानी सोहबत के आदी हो चुके परिन्दे के लिए इस तरह की छोटी-मोटी भूलें कोई मायने नहीं रखती थीं।
अगले दिन जब वह अपने कुछ साथी कौवों को लेकर भरपेट खाना खाने के इरादे से उस जगह पर लौटा था तो उसके हाथ सिर्फ़ मायूसी लगी थी और वह ग़ुस्से का घूँट पी कर रह गया था। ठण्ड से जमे नौजवान के बजाय उसे वहाँ पर केवल ख़ून का एक काला धब्बा दिखा था जिसके चारों तरफ़ भेड़ियों का एक झुण्ड चक्कर लगा रहा था। भेड़ियों के उस झुण्ड ने न केवल कौवे की पूरी दौलत सफ़ाचट कर दी थी, बल्कि देर से पहुँचे कुछ भेड़ियों ने ख़ून से सनी बर्फ़ को भी चाट डाला था। बेचारे कौवे को उस दिन सिर्फ़ और सिर्फ़ एक लम्बी और ज़ोरदार चीख़ लगाकर इत्मीनान करना पड़ा था। वह चीख़ ही उसकी नाराज़गी का इज़हार था।
एक आरामदेह पेड़ चुनकर कौवा उसकी एक पतली शाख़ पर आराम से बैठ गया। वह शाख़ सूखी और बारीक़ बर्फ़ के वज़न से झुक गई थी। ठण्ड से अकड़ गए अपने गले को साफ़ करने के लिए कौवे ने एक कूक भरी और ख़ुद को गेंद की तरह समेटकर पहले एक आँख मूँदी फिर दूसरी, और सो गया। गेंद की तरह सिमटना इसलिए ज़रूरी था ताकि पाला अपनी बाहें कितनी भी क्यों न फैलाए, उसकी किसी नाज़ुक जगह पर वार न कर पाए।
घड़ी न होने के कारण कौवे के लिए यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि उसकी नींद कितनी देर बाद टूटी थी। लेकिन वह इस बात से नाख़ुश था कि गहरी नींद के आग़ोश में पहुँचे बिना ही उसे जागना पड़ा था। इनसानों के आसपास होने की वजह से ही उसकी नींद खुली थी। पुल के पास दो धुँधले-से साये खड़े थे। दरअसल वो कौवा नहीं, एक कौवी थी, इसलिए औरताना कौतूहल के चलते उन इनसानों की बातें सुनने के लिए वो पुल के पास वाले पेड़ पर जा बैठी। ठण्ड से जम गईं अपनी मूँछ और दाढ़ी पर साँस की भाप छोड़ते हुए और दाँतों को किटकिटाते हुए उन दोनों में से जो ज़्यादा लम्बा था, बोला :
— देखो कितना पाला पड़ रहा है! इस भयानक रात में यहाँ आख़िर कौन आएगा?
— चलो आधा घण्टा और इन्तज़ार करते हैं। दूसरे ने अपने हाथ आपस में रगड़ते हुए जवाब दिया। गरम कपड़ों से पूरी तरह से लदे वे साये ख़ुद को थोड़ा और सिकोड़कर पुल के नीचे जाकर छुप गए। कौवा जितनी आसानी से गहरी नींद सो सकता है, उतनी ही आसानी से जाग भी सकता है। वह मायूस होकर फिर सो गया, लेकिन जल्दी ही एक आवाज़ ने उसे जगा दिया। जमकर पूरी तरह सपाट हो गई सड़क के मोड़ के पास से बर्फ़ पर किसी चीज़ के घिसटने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। फिर एक छोटी सी बर्फ़-गाड़ी (स्लेज) दिखाई दी। एक छोटा घोड़ा अपनी ठिठुरी टाँगें तेज़ी से बढ़ाता चला आ रहा था। कोचवान की सीट पर एक आदमी ठण्ड से दोहरा हुआ बैठा था, पीछे भी कोई इनसान बैठा हुआ था...
पुल के नीचे छुपे बैठे दोनों साये फ़ौरन हरकत में आ गए और सड़क पर कूद पड़े :
— रुको !
ख़ुशी ज़ाहिर करने के लिए जिज्ञासु कौवी ने धीमी-सी एक कूक भरी और अपना ध्यान सड़क से आ रही आवाज़ों की ओर लगाया। घोड़ा रुक गया। कोचवान ने बर्फ़-गाड़ी में बैठे आदमी से कुछ कहा तो वह खड़ा हो गया। उसने समूरी (जानवर की खाल का) कोट पहन रखा था, जिसके कॉलर से उसका चेहरा और सिर ढके हुए थे। पुल के नीचे छुपेे बैठे जोड़े में से एक ने घोड़े की लगाम अपने हाथों में ले ली। दूसरा आदमी जो लम्बा था, वह भी अब बर्फ़-गाड़ी के पास पहुँच चुका था। उसके एक हाथ में भारी-सी कोई चीज़ थी। वह चिल्लाया :
— रुको !
गाड़ी में पीछे बैठा आदमी बोला :
— आप सेहतमंद रहें !
बड़ी बेहूदगी से लम्बा आदमी बोला :
— चल, बाहर आ। तेरा मुक़ाम आ गया है !
समूरी कोट के नीचे से दबी-सी आवाज़ आई :
— डाकुओ, हत्यारो। तुम लोग यह क्या कर रहे हो ?
— तू अभी ख़ुद देख लेगा।
कोचवान बोला :
— सुनो, भले आदमी, हमें छोड़ दो। इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा।
लम्बा आदमी अपनी काली आँखें तरेरकर चिल्लाया :
— अगर ज़िंदा रहना चाहता है तो चुपचाप बर्फ़-गाड़ी से बाहर निकल !
— सुनो, भले आदमी...!
लम्बे आदमी ने हाथ में पकड़ी चीज़ हवा में लहरा दी जो तारों की हल्की झिलमिलाहट में भी चमक उठी। कोचवान फ़ौरन गाड़ी से उतर गया। और यह देखकर कि उठी हुई कुल्हाड़ी नीचे नहीं आ रही वो धीरे-से फुसफुसाया :
— लगता है कि बहुत ग़ुस्से में है ! — बर्फ़-गाड़ी में पीछे बैठा आदमी भी बाहर आ गया, जिसके बाल लम्बे थे। वो झुककर सीट पर रखी किसी चीज़ को खोलने लगा। फिर उस चीज़ को अपने हाथों में लेकर वह धीमे-धीमे उस लम्बे आदमी की ओर बढ़ा जो बेसब्री से इस बात का इन्तज़ार कर रहा था कि ये क़िस्सा जल्दी ख़त्म हो।
इससे पहले या इसके बाद कौवी कभी भी इतनी हैरत में नहीं पड़ी थी। हुआ यों कि लम्बा आदमी अपनी तरफ़ बढे चले आ रहे लम्बे बालोंवाले आदमी को देख मोरचा छोड़ने लगा, उसने कुल्हाड़ी भी फेंक दी। वो अपने साथी के पास गया, जिसने लम्बे बालोंवाले आदमी के हाथों में पकड़े सामान को लगभग न के बराबर रोशनी में देखकर घोड़े की लगाम छोड़ दी थी और पीछे हटने लगा था। मन्ज़र कुछ यों था : बर्फ़-गाड़ी से उतरी सवारी आगे बढ़ रही थी और दोनों लुटेरे पीछे हट रहे थे। उनमें से एक ने झिझकते हुए अपना हाथ उठाया और अपनी टोपी उतार ली; दूसरे ने भी झट से अपनी टोपी फेंक दी। यह देखकर सवारी रुक गई, वे दोनों भी रुक गए।
कोचवान ने कुल्हाड़ी उठाई और कहा :
— मैंने तुमसे कहा था न, कि हमें हाथ मत लगाओ। देखा, मैं पादरी साहब को लेकर जा रहा था। उफ़्फ़, यह कौवा !
कौवी नाराज़गी से कूकी थी। लेकिन न ही उसकी कर्कश कूक और न ही कोचवान की बात उन लोगों ने सुनी, जो आमने-सामने खड़े थे।
— अरे आज के दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था और तुम लोग यह क्या कर रहे हो, हत्यारो, लुटेरो ! धीमी आवाज़ में उस उम्रदराज़ सवारी ने कहा।
कुछ देर कोई कुछ नहीं बोला।
— मैं भगवान का एक मामूली-सा मुलाज़िम हूँ। मैं किसी मर रहे आदमी के लिए रोटी और लाल शराब (ईसाई धर्म में रोटी ईसा मसीह के बदन और लाल शराब उनके खून की निशानी मानी जाती है) लेकर जा रहा हूँ। तुम लोग भी कभी तो मरोगे, तुम लोग तब किसकी अदालत में अर्ज़ी लगाओगे?
कौवी जिस डाल पर बैठी थी अगर उसके हिलने की आवाज़ न होती तो वहाँ पूरी तरह से सन्नाटा होता।
— ईसा मसीह की क़ुरबानी हमें एक दूसरे से मुहब्बत करने की सीख देती है। लेकिन आप क्या कर रहे हैं? आप ईसाइयों का ख़ून बहाते हैं और अपनी रूह को मैला करते हैं। आप जिन्हें मारेंगे वो तो जन्नत में जाएँगे और आप कहाँ जाएँगे ?
लम्बा आदमी घुटनों के बल बैठ गया और सिर झुका दिया। अपने साथी की देखादेखी दूसरे आदमी ने भी ज़मीन पर अपना सिर टेक दिया। वे बर्फ़ में लेटे थे पर उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि उनकी उंगलियाँ सुन्न हो चुकी हैं। ऊपर से उम्रदराज़ पादरी कह रहे थे :
— मेरे नहीं आप ईसा मसीह के सामने घुटने टेकिए जिसने मुझे आपसे मिलने के लिए भेजा है। वह इन्सानियत का प्रेमी है और हत्यारों और लुटेरों को भी माफ़ कर देता है।
— पादरी साहब, मुझे माफ़ कर दीजिए । — लम्बा आदमी फुसफुसाया।
— माफ़ कीजिए, पादरी साहब। हम आइंदा ऐसा नहीं करेंगे, ख़ुदा की क़सम ! — दूसरे ने अपना सिर उठाते हुए कहा।
पादरी चुपचाप मुड़ा और वापस जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया।
कौवी को यह मानने में हिचकिचाहट हो रही थी कि वो मामला अब उसकी ज़ाती दिलचस्पी का हो चुका था।बद्दुआ देते हुए और काँव-काँव करते हुए वह ख़ुद को यह समझा रही था कि वो तो सिर्फ़ अपने जमात के हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त को लेकर परेशान है। इनसान अगर सचमुच एक-दूसरे के लिए रहमदिल और नेक हो जाएँगे तो बेचारे कौवों का क्या होगा ! अपने इस तंज़ पर कौवे ने पंख फड़फड़ाए और यह जताया कि उसे आदमज़ात में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन फ़ौरन ही ख़ुश-अखलाक़ी के उसूलों को भुलाकर वह उन लोगों को टेढ़ी नज़र से देखने लगा जो जानवरों के ज़िन्दगी में तालमेल बिठानेवाले क़ायदों की नाफ़रमानी कर रहे थे।
— भले आदमी, मैंने कहा था न तुमसे कि हमें हाथ मत लगाओ ! चलो, अपनी बेल्ट उतारो !
लम्बे आदमी ने उसकी बात सुनते ही घबराकर अपनी पतलून पर कसी पेटी खोली और कोचवान को सौंप दी जिसने बड़ी हुनरमन्दी से उस बेल्ट से लम्बू के हाथ उसके शानों पर कस दिए।
दूसरे की ओर मुड़कर वह बोला :
— चलो, तुम भी उतारो ! अपनी बेल्ट दो।
— ठीक है, ठीक है ! पादरी की ओर उम्मीद भरी नज़र से देखते हुए उसने ऐतराज़ जताना चाहा, लेकिन बेल्ट खोलकर दे दी।
— उन्हें छोड़ दो, स्तिपान ! — पादरी ने कहा।
— यह कैसे हो सकता है, फ़ादर ? ऐसा करने पर मुझे मालकिन की फटकार सुननी पड़ेगी।
— छोड़ दो उन्हें। वैसे भी सबको जवाब किसी इनसान को नहीं बल्कि ख़ुदा को देना होगा।
स्तिपान ने बड़े अनमने मन से लम्बे आदमी के हाथ खोले, उसके साथी की गर्दन पर हलकी-सी चपत लगाई और बर्फ़-गाड़ी में कोचवान की सीट पर बैठ गया। घोड़े को हाँकते हुए वह बोला :
— लेकिन कुल्हाड़ी को तुम लोगों को अलविदा कहना ही पड़ेगा !
जल्द ही बर्फ़-गाड़ी और सवार रात के अन्धेरे में ग़ायब हो गए, बस, यह आवाज़ सुनाई दी :
— कहा था न हाथ मत लगाओ। आह... !
पूरी तरह से हैरान और नाराज़ कौवी ने अपनी गर्दन वहाँ रह गए दो लुटेरों की तरफ़ इस उम्मीद में घुमाई कि शायद कहानी अभी भी कोई दिलचस्प मोड़ ले ले। लम्बा आदमी अपनी नज़रें झुकाए चुपचाप खड़ा था। उसके साथी ने उसके हाथ को छूकर कहा :
— चलो चलें।
लम्बा आदमी चुपचाप आगे बढ़ने लगा, उसका साथी भी पीछे-पीछे चलने लगा। जल्दी ही वे दोनों भी अन्धेरे में ग़ायब हो गए, और आदम की सोहबत से बेहद प्यार करने वाला कौवी अकेली रह गई। इस बार आदमज़ात ने उसे बहुत ना-उम्मीद किया था।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : प्रगति टिपणीस
भाषा एवं पाठ सम्पादन : अनिल जनविजय
मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है — श्तो विद्जिला गालका (Леонид Андреев — Что видела галка)