कौवों की कहानी / जातक कथाएँ

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » संकलनकर्ता » [[]]  » संग्रह: जातक कथाएँ

वर्षों पहले एक समुद्र में एक नर और एक मादा कौवा मदमस्त हो कर जल-क्रीड़ा कर रहे थे। तभी समुद्र की एक लौटती लहर में कौवी बह गयी, जिसे समुद्र की किसी मछली ने निगल लिया। नर कौवे को इससे बहुत दु: ख हुआ। वह चिल्ला-चिल्ला कर विलाप करने लगा। पल भर में सैंकड़ों कौवे भी वहाँ आ पहुँचे। जब अन्य कौवों ने उस दु: खद घटना को सुना तो वे भी जोर-जोर से काँव-काँव करने लगे।

तभी उन कौवों में एक ने कहा कि कौवे ऐसा विलाप क्यों करे; वे तो समुद्र से भी ज़्यादा शक्तिशाली हैं। क्यों न वे अपनी चोंच से समुद्र के पानी को उठा कर दूर फेंक दें। सारे कौवों ने इस बात को समुचित जाना और अपनी-अपनी चोंचों के समुद्र का पानी भर दूर तट पर छोड़ने लगे। साथ ही वे कौवी की प्रशंसा भी करते जाते।

एक कहता, "कौवी कितनी सुंदर थी।" दूसरा कहता, "कौवी की आवाज़ कितनी मीठी थी।" तीसरा कहता, "समुद्र की हिम्मत कैसे हुई कि वह उसे बहा ले जाय"। फिर कोई कहता, "हम लोग समुद्र को सबक सिखला कर ही रहेंगे।"

कौवों की बकवास समुद्रको बिल्कुल रास न आयी और उसने एक शक्तिशाली लहर में सभी कौवों को बहा दिया।